भारत में भूस्खलन की बढ़ती घटनाएं: जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियां जिम्मेदार

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नई दिल्ली, 01 सितंबर 2025: देशभर में बार-बार और बड़े पैमाने पर हो रहे भूस्खलन ने चिंता बढ़ा दी है। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) के अनुसार, ये घटनाएं केवल प्राकृतिक कारणों तक सीमित नहीं हैं। जलवायु परिवर्तन, बारिश के पैटर्न में बदलाव, जंगलों की अंधाधुंध कटाई और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में अनियंत्रित निर्माण कार्य इसके प्रमुख कारण हैं।

जीएसआई के डायरेक्टर जनरल असित साहा ने रविवार को बताया कि प्रदूषण भूस्खलन का प्रत्यक्ष कारण नहीं है, लेकिन वायु प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा दे रहा है। इससे बारिश का पैटर्न बदल रहा है, जिसका असर खासतौर पर उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे भूगर्भीय रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में देखने को मिल रहा है। साहा ने कहा, “पहाड़ी क्षेत्रों की भौगोलिक बनावट, बदलती जलवायु और मानवीय हस्तक्षेप मिलकर इन इलाकों को जोखिम में डाल रहे हैं।”

हिमालय और पश्चिमी घाट में बढ़ा खतरा

हिमालय और पश्चिमी घाट जैसे क्षेत्रों में भूस्खलन हमेशा से एक चुनौती रहे हैं, लेकिन हाल के वर्षों में इनकी संख्या और तीव्रता में खतरनाक वृद्धि हुई है। साहा ने बताया कि हिमालय के ऊपरी क्षेत्रों में भूस्खलन के कारण हिमनद झीलें बन रही हैं, जो फटने पर अचानक बाढ़ और ढलानों की अस्थिरता का कारण बनती हैं। खड़ी ढलानें, युवा और खंडित भूवैज्ञानिक संरचनाएं, बारिश और भूकंप जैसे कारक इन क्षेत्रों को और कमजोर बनाते हैं।

मानसून और मानवीय गतिविधियों का दुष्प्रभाव

लंबे समय तक होने वाली मूसलाधार बारिश मिट्टी और चट्टानों में नमी बढ़ाती है, जिससे ढलानों की स्थिरता कमजोर पड़ती है। मानवीय गतिविधियां जैसे सड़क निर्माण, जंगलों की कटाई और प्राकृतिक जल निकासी प्रणालियों में रुकावट इस समस्या को और गंभीर बना रही हैं। जीएसआई के राष्ट्रीय भूस्खलन संवेदनशीलता मानचित्रण (एनएलएसएम) कार्यक्रम ने जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और पश्चिमी घाट के कुछ हिस्सों जैसे केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र और तमिलनाडु के नीलगिरी और कोंकण तट को अति संवेदनशील क्षेत्रों के रूप में चिह्नित किया है।

विशेषज्ञों की चेतावनी

वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यदि पर्यावरण के प्रति संवेदनशील नीतियां और नियंत्रित विकास कार्य नहीं किए गए, तो भूस्खलन का खतरा और बढ़ेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि टिकाऊ विकास और जंगलों के संरक्षण पर ध्यान देना इस समस्या से निपटने के लिए जरूरी है।

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