किशोर-युवा मिर्गी की चपेट में: नॉन एपिलेप्सी सिंड्रोम का बढ़ता खतरा
वाराणसी, 17 नवंबर 2024, रविवार। वाराणसी में आईएमएस बीएचयू के न्यूरोलॉजी विभाग में हर महीने 30 नए मरीज पहुंच रहे हैं, जिनमें ज्यादातर को बेहोशी और झटके आने की समस्या हो रही है। इसे साइकोलॉजिकल नॉन एपिलेप्सी सिंड्रोम कहा जाता है। डॉक्टरों के अनुसार, अगर समय से जांच, इलाज करवाया जाए तो इस बीमारी से निजात मिल सकती है। मिर्गी के कारण, बचाव के प्रति जागरूकता के उद्देश्य से हर साल 17 नवंबर को राष्ट्रीय मिर्गी दिवस मनाया जाता है।
बीएचयू में न्यूरोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. विजयनाथ मिश्र ने बताया कि मिर्गी का इलाज करवाने से इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है। बहुत से लोग इलाज करवाने के बजाय झाड़ फूंक पर विश्वास कर बीमारी को बढ़ा रहे हैं। ओपीडी में आने वाले किशोर, युवाओं की बात करें तो झटके आने, कभी हाथ हिलना तो कभी चेहरा हिलने लगता है। कभी मुंह से झाग आने की समस्या भी मिल रही है। मनोवैज्ञानिक दबाव की वजह से भी झटके आते हैं। चिंता की बात यह है कि ओपीडी में आने वाले 30 किशोरों-युवाओं में 10 की उम्र 15 साल से कम रहती है। हालांकि अब जागरूकता के कारण लोग अस्पताल में आ रहे हैं। वहीं, प्रदूषण की वजह से न्यूरो सिस्टि सरकोसिस बीमारी भी बढ़ रही है।
काशी में नाव और घाट पर ओपीडी: न्यूरोलॉजिकल बीमारी से बचाव के लिए अभियान
वाराणसी में न्यूरोलॉजिकल बीमारी से लोगों को बचाने के लिए अनोखा अभियान चलाया जा रहा है। गंगा नदी के किनारे नाव और घाट पर ओपीडी लगाई जा रही है, जहां लोगों की निशुल्क जांच और उपचार किया जा रहा है। अब तक 950 लोगों की जांच हुई है, जिसमें 45 मरीज मिर्गी वाले मिले हैं। इसके अलावा 17 जिलों में जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है, जहां लोगों को मिर्गी की भ्रांति दूर करने के लिए फिल्म भी दिखाया जा रहा है। मिर्गी के बारे में जानकारी देते हुए प्रो. विजयनाथ मिश्र ने बताया कि 80 प्रतिशत लोगों में मिर्गी का असर 30 सेकेंड तक रहता है, जबकि 15 प्रतिशत में 5 मिनट तक और 5 प्रतिशत में 30 मिनट तक रहता है।