नई दिल्ली, 4 अप्रैल 2025, शुक्रवार। 4 अप्रैल को थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में एक ऐतिहासिक मुलाकात हुई, जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बांग्लादेश के अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने 40 मिनट तक गहन चर्चा की। यह बैठक छठे बिम्सटेक (BIMSTEC) शिखर सम्मेलन के मौके पर हुई, जो न केवल दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण रिश्तों को सामान्य करने की दिशा में एक कदम माना जा रहा है, बल्कि क्षेत्रीय सहयोग और स्थिरता के लिए भी महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। आइए, इस मुलाकात के महत्व, पृष्ठभूमि और संभावित परिणामों पर नजर डालते हैं।
पृष्ठभूमि: तनाव के बीच एक नई शुरुआत
यह मुलाकात इसलिए खास थी क्योंकि यह शेख हसीना के अगस्त 2024 में सत्ता से बेदखल होने के बाद मोदी और यूनुस के बीच पहली औपचारिक बातचीत थी। हसीना के भारत में शरण लेने और बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों, खासकर हिंदुओं पर हमलों की खबरों के बाद दोनों देशों के रिश्तों में ठंडक आ गई थी। इसके अलावा, यूनुस के हालिया चीन दौरे पर दिए गए बयानों ने भी विवाद को जन्म दिया था। उन्होंने भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को “लैंडलॉक्ड” बताते हुए इसे चीन की अर्थव्यवस्था के विस्तार के लिए अवसर करार दिया था, जिससे भारत में नाराजगी बढ़ी थी। ऐसे में यह बैठक दोनों नेताओं के लिए एक-दूसरे के विचारों को समझने और मतभेदों को दूर करने का मौका लेकर आई।

40 मिनट की चर्चा: क्या-क्या हुआ?
इस 40 मिनट की बैठक में कई संवेदनशील और महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात हुई। सूत्रों के मुताबिक, पीएम मोदी ने बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का मुद्दा जोर-शोर से उठाया। उन्होंने यूनुस से कहा कि भारत एक लोकतांत्रिक, शांतिपूर्ण और समावेशी बांग्लादेश का समर्थन करता है, लेकिन इसके लिए वहां अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा पर रोक जरूरी है। विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने प्रेस ब्रीफिंग में बताया कि मोदी ने सीमा सुरक्षा पर भी जोर दिया और अवैध घुसपैठ को रोकने के लिए सख्त कदम उठाने की बात कही।
दूसरी ओर, यूनुस ने शेख हसीना की प्रत्यर्पण और उनके भारत से दिए गए बयानों का मुद्दा उठाया। बांग्लादेश का मानना है कि हसीना के बयान दोनों देशों के रिश्तों में तनाव बढ़ा रहे हैं। इसके अलावा, गंगा और तीस्ता नदी के जल-बंटवारे जैसे लंबित मुद्दों पर भी चर्चा हुई। यूनुस के प्रेस सचिव शफीकुल आलम ने इस बैठक को “रचनात्मक, प्रभावी और फलदायी” करार दिया, जिससे यह संकेत मिलता है कि दोनों पक्ष सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ना चाहते हैं।
मोदी का सख़्त संदेश: “माहौल खराब करने वाली बयानबाजी से बचें”
मोदी ने यूनुस को साफ शब्दों में कहा कि ऐसी कोई भी बयानबाजी जो माहौल को खराब करे, उससे बचना चाहिए। यह टिप्पणी यूनुस के चीन दौरे वाले बयान के संदर्भ में देखी जा रही है। भारत ने इसे अपने पूर्वोत्तर क्षेत्र की संप्रभुता पर टिप्पणी माना था, जिसका जवाब विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने पहले ही बिम्सटेक सम्मेलन में दे दिया था। जयशंकर ने कहा था कि भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र बिम्सटेक का कनेक्टिविटी हब बन रहा है और सहयोग एक समग्र दृष्टिकोण होना चाहिए, न कि “चुनिंदा”। मोदी ने इस बैठक में भी यही रुख दोहराया और क्षेत्रीय एकता पर जोर दिया।

एक यादगार तोहफा: अतीत से जुड़ा रिश्ता
बैठक के दौरान एक भावनात्मक पल भी आया, जब यूनुस ने मोदी को 2015 की एक तस्वीर भेंट की। यह तस्वीर 102वें भारतीय विज्ञान कांग्रेस की थी, जिसमें मोदी ने यूनुस को स्वर्ण पदक से सम्मानित किया था। इस तोहफे ने दोनों नेताओं के बीच पुराने रिश्ते को याद दिलाया और बातचीत में सकारात्मकता का पुट जोड़ा।
आगे की राह: क्या बदलेगा भारत-बांग्लादेश रिश्ता?
यह मुलाकात दोनों देशों के लिए एक टर्निंग पॉइंट हो सकती है। जहां भारत बांग्लादेश में स्थिरता और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा चाहता है, वहीं बांग्लादेश भारत से हसीना के प्रत्यर्पण और जल-बंटवारे जैसे मुद्दों पर ठोस कदम की उम्मीद कर रहा है। बिम्सटेक जैसे मंच पर यह चर्चा क्षेत्रीय सहयोग को भी मजबूत करने की दिशा में एक कदम है, क्योंकि यह संगठन बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में विकास और कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने के लिए काम करता है।
उम्मीद की किरण
बैंकॉक की यह 40 मिनट की मुलाकात भले ही छोटी लगे, लेकिन इसके निहितार्थ बड़े हैं। दोनों नेताओं ने एक-दूसरे के प्रति संवेदनशीलता और सकारात्मक रवैया दिखाया, जो पिछले कुछ महीनों के तनाव को कम करने में मददगार साबित हो सकता है। क्या यह मुलाकात भारत-बांग्लादेश रिश्तों में नई गर्माहट लाएगी? इसका जवाब आने वाले दिनों में मिलेगा, लेकिन फिलहाल यह एक उम्मीद की किरण जरूर है।