इंडिया इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल की गोवा में शुरुआत हो चुकी है। IFFI का ये 55वां आयोजन है…टीवी और फिल्म इंडस्ट्री के एक्टर, डायरेक्टर समेत दिग्गजों का जमावड़ा लग चुका है। इन्हीं दिग्गजों में सुभाष घई हिन्दी सिनेमा के एक प्रमुख निर्देशक हैं, जिन्होंने अपने करियर में कई हिट फ़िल्में दी हैं। वह एक अभिनेता, निर्माता, गीतकार, संगीत निर्देशक, और पटकथा लेखक भी हैं। उनकी कुछ प्रमुख फ़िल्में हैं: कालीचरण (1976), विश्वनाथ (1978), कर्ज़ (1980), हीरो (1983), विधाता (1982), मेरी जंग (1985), कर्मा (1986), राम लखन (1989), सौदागर (1991), खलनायक (1993), परदेस (1997), और ताल (1999)। सुभाष घई ने अपने प्रोडक्शन बैनर मुक्ता आर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड के तहत कई फ़िल्में बनाईं। उन्हें 2006 में सामाजिक फ़िल्म ‘इकबाल’ के लिए राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित किया गया। सुभाष घई ने मुंबई में व्हिसलिंग वुड्स इंटरनेशनल फ़िल्म एंड मीडिया इंस्टीट्यूट की स्थापना की है।
सुभाष घई ने वरिष्ठ पत्रकार अनिता चौधरी के साथ एक विशेष बातचीत में फिल्म इंडस्ट्रीज के कई मुद्दों पर चर्चा की। अनिता चौधरी ने सुभाष घई से पूछा कि वह फिल्मों के लिए ढेर सारी कहानियां कहां से लाते हैं। सुभाष घई ने कहा, “बचपन में मैं अपनी नानी और मौसी से कहानियां सुनता था। यह कहानियां सुनने और सुनाने का दौर बचपन से चलता रहता था। ये कहानियां मुझे बहुत आकर्षित करती थीं। मैं एक जिज्ञासु लड़का था, और अभी भी जिज्ञासा बनी रहती है। जब मैं फिल्म इंडस्ट्रीज में आया, तो मैंने उन्हीं कहानियों पर फिल्मांकन किया।” सुभाष घई ने आगे कहा, “भारत में दस हजार कहानियां संग्रह है, लेकिन अभी भी केवल 25 से 30 कहानियों पर ही फिल्में बनाई गई हैं। मैंने तो 50 से ज्यादा कहानियां बनाई हैं, लेकिन दस हजार के सामने यह कुछ भी नहीं है।”
अनिता चौधरी ने बातचीत के दौरान सुभाष घई से कहा कि दर्शक जब उनकी फिल्म देखते थे, तो उस फिल्म में सुभाष घई के छोटे से शॉट्स का इंतजार रहता था, जो सुभाष घई पर फिल्माया जाता था। अनिता ने पूछा कि ये छोटी ट्विस्ट के पीछे का क्या राज था। सुभाष घई ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “मेरे पिताजी ने मुझे आर्ट एवम ड्रामा स्कूल में एडमिशन कराया था। मैंने सोचा कि मैं अपने पिताजी को दिखाना चाहता हूं कि मुझमें भी काबिलियत है। इसलिए, मैंने अपनी फिल्मों में छोटे से शॉट्स में अभिनय किया, ताकि मेरे पिताजी को लगे कि मुझमें भी कुछ काबिलियत है।”
अनिता ने सुभाष घई से पूछा कि आप सफलता और असफलता के बीच के रास्ते कैसे तय किये। इस पर सुभाष घई ने जवाब दिया, “मेरे हाथ में मोबाइल है, और मेरे हाथ मजबूत नहीं होते तो मैं मोबाइल नहीं पकड़ सकता। मोबाइल का आगे का स्क्रीन जितना महत्वपूर्ण है, उतना पीछे का भी है।” उन्होंने आगे कहा, “सफलता और असफलता दोनों का मजा लेना चाहिए। हमें सफलता के साथ-साथ असफलता को भी स्वीकार करना चाहिए और उससे सीखना चाहिए।”
वरिष्ठ पत्रकार ने सुभाष घई से पूछा कि 25 साल हो गए, फिर ताल आएगा, इस पर सुभाष घई ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “वेट एंड वॉच, कहीं न कहीं सूर्य निकलेगा, कहीं न कहीं ताल निकलेगा।” फिल्म निर्माता सुभाष घई की ‘गांधी’ फिल्म का प्रीमियर 55वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (IFFI) में दिखाया गया, जिसमें सुभाष घई के बेहतरीन, शानदार और अविश्वसनीय सिनेमाई दृष्टिकोण को बखूबी पेश किया गया। इस प्रोजेक्ट पर वरिष्ठ पत्रकार अनिता चौधरी से अपने विचार शेयर करते हुए सुभाष घई ने कई खुलासे भी किए।
सुभाष घई ने कहा, “फिल्म निर्माण पूरी तरह से समाज के नजरिए पर आधारित है। दुनिया में युद्ध और संघर्ष अक्सर दृष्टिकोण से बदलते हैं। मेरी शॉर्ट फिल्म ‘गांधी’ केवल एक कहानी नहीं है, बल्कि यह कई तरह के दृष्टिकोणों की खोज है।” फिल्म निर्माता सुभाष घई ने वरिष्ठ पत्रकार अनिता चौधरी से एक और महत्वपूर्ण खुलासा किया और बताया, “मनोज वाजपेयी ने इस फिल्म के लिए एक भी रुपया नहीं लिया है, क्योंकि वह चाहते हैं कि युवा पीढ़ी महात्मा गांधी के विचारों और आदर्शों को समझे।”