मुंबई, 2 अगस्त 2025: देश के प्रमुख निजी क्षेत्र के बैंकों में से एक, आईसीआईसीआई बैंक ने यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) ट्रांजैक्शनों पर नया शुल्क लागू करने की घोषणा की है, जो 1 अगस्त 2025 से प्रभावी हो गया है। यह शुल्क विशेष रूप से पेमेंट एग्रीगेटर्स (पीए) के माध्यम से होने वाले यूपीआई लेनदेन पर लागू होगा, जो मर्चेंट्स जैसे दुकानदारों, रेस्तरां मालिकों और अन्य व्यवसायियों के लिए डिजिटल भुगतान की सुविधा प्रदान करते हैं। हालांकि, यह शुल्क व्यक्तिगत ग्राहकों पर लागू नहीं होगा, बल्कि केवल मर्चेंट खातों पर प्रभावी होगा।
नया शुल्क ढांचा: कितना और कैसे?
आईसीआईसीआई बैंक ने पेमेंट एग्रीगेटर्स के लिए दो श्रेणियों में शुल्क निर्धारित किया है:
- एस्क्रो खाता धारकों के लिए: जिन पेमेंट एग्रीगेटर्स का आईसीआईसीआई बैंक में एस्क्रो खाता है, उनसे प्रति ट्रांजैक्शन 0.02% (2 बेसिस पॉइंट) शुल्क लिया जाएगा, जो अधिकतम 6 रुपये प्रति ट्रांजैक्शन तक सीमित होगा।
- बिना एस्क्रो खाता वालों के लिए: जिनके पास आईसीआईसीआई बैंक में एस्क्रो खाता नहीं है, उनसे 0.04% (4 बेसिस पॉइंट) शुल्क वसूला जाएगा, जिसकी अधिकतम सीमा 10 रुपये प्रति ट्रांजैक्शन होगी।
- सीधे मर्चेंट खाते में भुगतान पर छूट: यदि यूपीआई लेनदेन सीधे मर्चेंट के आईसीआईसीआई बैंक खाते में जमा होता है, तो कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा। इससे उन मर्चेंट्स को लाभ होगा जो बैंक के साथ प्रत्यक्ष खाता संबंध रखते हैं।
क्यों लागू हुआ यह शुल्क?
यूपीआई के बढ़ते उपयोग और लेनदेन की भारी मात्रा के कारण बैंकों को तकनीकी बुनियादी ढांचे, साइबर सुरक्षा, और रियल-टाइम सेटलमेंट सिस्टम को बनाए रखने में भारी लागत वहन करनी पड़ रही है। नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई) बैंकों से प्रति ट्रांजैक्शन स्विच फीस वसूलता है, और आईसीआईसीआई बैंक अब इस लागत का एक हिस्सा पेमेंट एग्रीगेटर्स पर डाल रहा है।
हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने संकेत दिया था कि यूपीआई की मुफ्त सेवा की दीर्घकालिक स्थिरता पर सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि इसकी लागत को वहन करने के लिए कोई राजस्व स्रोत नहीं है। उन्होंने कहा, “किसी को तो लागत वहन करनी होगी।” यह कदम उसी दिशा में देखा जा रहा है, जहां बैंक अपने खर्चों की भरपाई के लिए नए राजस्व मॉडल तलाश रहे हैं।
पहले भी अन्य बैंकों ने उठाया यह कदम
आईसीआईसीआई बैंक इस तरह का शुल्क लगाने वाला पहला बैंक नहीं है। यस बैंक और एक्सिस बैंक पिछले 8-10 महीनों से पेमेंट एग्रीगेटर्स से समान शुल्क वसूल रहे हैं। ये तीनों बैंक यूपीआई पारिस्थितिकी तंत्र में शीर्ष भुगतान सेवा प्रदाता (पीएसपी) हैं, जो भुगतान करने वाले और प्राप्त करने वाले दोनों पक्षों की सेवा करते हैं।
मर्चेंट्स और उपभोक्ताओं पर क्या असर?
हालांकि यह शुल्क सीधे पेमेंट एग्रीगेटर्स पर लागू है, विशेषज्ञों का मानना है कि कुछ एग्रीगेटर्स इस लागत को मर्चेंट्स पर स्थानांतरित कर सकते हैं, खासकर छोटे व्यवसायियों पर जो कम मात्रा में लेनदेन करते हैं। बड़े मर्चेंट्स, जो उच्च टर्नओवर के आधार पर छूट या रियायतें प्राप्त कर सकते हैं, पर इसका असर कम हो सकता है।
फिलहाल, व्यक्तिगत उपभोक्ताओं के लिए यूपीआई लेनदेन मुफ्त रहेंगे, क्योंकि सरकार ने मर्चेंट डिस्काउंट रेट (एमडीआर) को शून्य रखने का नियम बनाए रखा है। लेकिन अगर अधिक बैंक इस तरह के शुल्क लागू करते हैं और पेमेंट एग्रीगेटर्स इसे मर्चेंट्स पर डालते हैं, तो भविष्य में मर्चेंट्स अपनी कीमतों में वृद्धि कर सकते हैं, जिसका अप्रत्यक्ष असर उपभोक्ताओं पर पड़ सकता है।
उद्योग की प्रतिक्रिया
पेमेंट एग्रीगेटर्स जैसे रेजरपे, पेटीएम, और फोनपे इस बदलाव पर नजर रखे हुए हैं। कुछ एग्रीगेटर्स इस लागत को अवशोषित कर सकते हैं ताकि प्रतिस्पर्धा में बने रहें, जबकि अन्य इसे मर्चेंट्स पर स्थानांतरित कर सकते हैं। एक पेमेंट कंपनी के कार्यकारी ने कहा, “बैंकों ने यूपीआई स्विच और अधिग्रहण पक्ष में भारी निवेश किया है। यह शुल्क उनकी लागत को साझा करने का एक तरीका है।”