लखनऊ, 15 अप्रैल 2025, मंगलवार। सोमवार, 14 अप्रैल की रात, जब लखनऊ शहर शांत चादर ओढ़कर सोने की तैयारी कर रहा था, तभी अचानक एक भयावह खबर ने सबको झकझोर दिया। उत्तर प्रदेश की राजधानी के आशियाना इलाके में स्थित लोकबंधु राज नारायण अस्पताल में रात करीब 10 बजे भीषण आग लग गई। यह आग इतनी तेजी से फैली कि कुछ ही पलों में अस्पताल की दूसरी मंजिल धुएं और लपटों की चपेट में आ गई। अस्पताल में भर्ती मरीजों, उनके तीमारदारों और स्टाफ के बीच अफरा-तफरी मच गई। यह एक ऐसी रात थी, जो न केवल लोकबंधु अस्पताल के इतिहास में, बल्कि लखनऊवासियों के दिलों में भी लंबे समय तक याद रहेगी।
आग का तांडव: कैसे शुरू हुई यह तबाही?
प्रारंभिक जानकारी के अनुसार, आग अस्पताल की दूसरी मंजिल पर स्थित महिला वार्ड और आईसीयू में शुरू हुई। बताया जा रहा है कि शॉर्ट सर्किट इस हादसे की मुख्य वजह थी। रात के सन्नाटे में अचानक धुआं और लपटें उठने लगीं, जिसने पूरे अस्पताल परिसर को अपनी चपेट में ले लिया। धुआं इतना घना था कि सांस लेना तक मुश्किल हो गया। बिजली की आपूर्ति तत्काल काट दी गई, जिससे अस्पताल अंधेरे में डूब गया। मरीजों की चीख-पुकार और तीमारदारों की बेचैनी ने माहौल को और भयावह बना दिया।
लोकबंधु अस्पताल, जो लखनऊ के साथ-साथ उन्नाव, कानपुर और आसपास के इलाकों से आने वाले मरीजों के लिए एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य केंद्र है, उस समय करीब 250 मरीजों से भरा हुआ था। इनमें नवजात शिशुओं से लेकर बुजुर्गों तक शामिल थे, जिनमें कई गंभीर हालत में थे। आईसीयू में भर्ती मरीजों की स्थिति सबसे नाजुक थी, क्योंकि उनकी जिंदगी ऑक्सीजन सपोर्ट और वेंटिलेटर पर टिकी थी।
रेस्क्यू ऑपरेशन: समय के खिलाफ जंग
आग की सूचना मिलते ही स्थानीय पुलिस, फायर ब्रिगेड, और एसडीआरएफ की टीमें तुरंत हरकत में आईं। फायर ब्रिगेड की छह से आठ गाड़ियां मौके पर पहुंचीं और आग पर काबू पाने की कोशिश शुरू की। लेकिन घने धुएं और अंधेरे ने बचाव कार्य को बेहद चुनौतीपूर्ण बना दिया। अस्पताल के कर्मचारी, डॉक्टर, नर्सें, और तीमारदारों ने भी हिम्मत दिखाते हुए मरीजों को बाहर निकालने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
कुछ मरीजों को स्ट्रेचर पर, कुछ को गोद में, और कुछ को रस्सियों की मदद से बाहर निकाला गया। आईसीयू के 40 मरीजों को विशेष सावधानी के साथ रेस्क्यू किया गया, क्योंकि उनकी स्थिति बेहद नाजुक थी। करीब 200 से अधिक मरीजों को तत्काल पास के अस्पतालों—केजीएमयू, सिविल अस्पताल, बलरामपुर अस्पताल, और लोहिया अस्पताल—में शिफ्ट किया गया। इस दौरान प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की तत्परता ने एक बड़ी जनहानि को टाल दिया।
डिप्टी सीएम बृजेश पाठक, डीएम विशाख जी अय्यर, पुलिस कमिश्नर अमरेंद्र सिंह सेंगर, और कई अन्य वरिष्ठ अधिकारी मौके पर पहुंचे और स्थिति पर नजर रखी। डीएम विशाख जी अय्यर ने बताया, “जैसे ही हमें आग की सूचना मिली, हमने तुरंत बचाव कार्य शुरू कर दिया। सभी मरीजों को सुरक्षित निकाला गया और स्थिति अब नियंत्रण में है।”
प्रशासन का त्वरित एक्शन और सीएम योगी का संज्ञान
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस घटना का तुरंत संज्ञान लिया और अधिकारियों से फोन पर पल-पल की जानकारी ली। उन्होंने आग पर जल्द से जल्द काबू पाने और मरीजों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के सख्त निर्देश दिए। डिप्टी सीएम बृजेश पाठक ने मौके पर पहुंचकर राहत कार्यों का जायजा लिया और कहा, “हमारी पहली प्राथमिकता मरीजों की जान बचाना था। सभी मरीज सुरक्षित हैं, और गंभीर मरीजों को केजीएमयू जैसे उन्नत केंद्रों में भेजा गया है।”
रात करीब 1 बजे तक फायर ब्रिगेड की टीम ने आग पर पूरी तरह काबू पा लिया। इसके बाद कूलिंग ऑपरेशन शुरू किया गया ताकि धुआं पूरी तरह हटाया जा सके। प्रशासन ने आग के कारणों की जांच के लिए एक उच्चस्तरीय कमेटी गठित करने की बात कही है।
प्रत्यक्षदर्शियों की जुबानी: वो डरावना मंजर
अस्पताल में मौजूद मरीजों और उनके परिजनों ने उस भयावह रात को याद करते हुए बताया कि यह उनके लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं था। एक मरीज, मालती साहू, ने कहा, “मैं वार्ड में थी, तभी अचानक सायरन बजा और धुआं दिखाई देने लगा। हम सब डर गए। स्टाफ और तीमारदारों ने हमें बाहर निकाला, वरना क्या होता!”
एक अन्य तीमारदार, महेश रावत, ने बताया, “मैं अपनी बुआ को देखने अस्पताल में था। रात करीब 10 बजे अचानक आग की लपटें दिखीं। मैंने उन्हें किसी तरह बाहर निकाला। यह सब इतनी तेजी से हुआ कि समझ ही नहीं आया।”
विवाद और सवाल: क्या थी लापरवाही?
हालांकि इस हादसे में प्रशासन और अस्पताल स्टाफ की तत्परता ने बड़ा नुकसान होने से बचा लिया, लेकिन कई सवाल भी उठ रहे हैं। सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने अस्पताल के फायर सेफ्टी इंतजामों पर सवाल उठाए। दावा किया गया कि लंबे समय से फायर ऑडिट नहीं हुआ था और रखरखाव में लापरवाही बरती गई थी। हालांकि, इन दावों की आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई। यह घटना न केवल एक हादसा थी, बल्कि यह एक चेतावनी भी है कि सरकारी अस्पतालों में सुरक्षा मानकों को और सख्त करने की जरूरत है। शॉर्ट सर्किट जैसी घटनाएं, जो बार-बार सामने आती हैं, इंगित करती हैं कि बुनियादी ढांचे और रखरखाव पर ध्यान देना होगा।
एक सबक और उम्मीद
लखनऊ के लोकबंधु अस्पताल में लगी यह आग भले ही एक त्रासदी थी, लेकिन इसने मानवता की ताकत को भी उजागर किया। डॉक्टरों, नर्सों, तीमारदारों, पुलिस, और फायर ब्रिगेड की एकजुटता ने सैकड़ों जिंदगियां बचा लीं। यह घटना हमें याद दिलाती है कि आपदा के समय एकता और साहस कितना महत्वपूर्ण है।
अब जबकि आग पर काबू पा लिया गया है और मरीज सुरक्षित हैं, यह समय है कि प्रशासन इस हादसे से सबक ले। भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए बेहतर सुरक्षा उपाय, नियमित ऑडिट, और कर्मचारियों के प्रशिक्षण पर ध्यान देना होगा। लखनऊ का लोकबंधु अस्पताल जल्द ही सामान्य स्थिति में लौटेगा, लेकिन इस रात की यादें लंबे समय तक लोगों के जहन में रहेंगी—एक ऐसी रात, जब इंसानियत ने आग के तांडव को हरा दिया।