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Sunday, June 22, 2025

आम की कीमतों में भारी गिरावट: किसानों का छलका दर्द, सीएम योगी से मुआवजे की गुहार

लखनऊ, 22 जून 2025: फलों का राजा कहलाने वाला आम इस बार किसानों के लिए मुसीबत बन गया है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ समेत प्रदेशभर की मंडियों में आम की कीमतों में भारी गिरावट ने किसानों की कमर तोड़ दी है। खासकर दशहरी आम, जो कभी 24-25 रुपये प्रति किलो बिकता था, अब 14-20 रुपये प्रति किलो तक सिमट गया है। बंपर उत्पादन और समय से पहले तुड़ाई ने बाजार को फलों से पाट दिया, लेकिन किसानों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा। हताश किसानों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) लागू करने और मुआवजे की मांग की है।

बंपर फसल, फिर भी नुकसान

इस साल अनुकूल जलवायु के चलते आम की फसल ने उम्मीद से ज्यादा पैदावार दी। बीकेटी और मलिहाबाद फलपट्टी के किसानों का कहना है कि अच्छी फसल के बावजूद मंडियों में कीमतें धड़ाम हो गईं। किसान आनंद सिंह उर्फ गोलऊ सिंह ने बताया, “पिछले साल 24-25 रुपये प्रति किलो के दाम मिले थे, लेकिन इस बार कीमतें आधी रह गईं। अगर नियमित खरीद प्रणाली होती, तो हमें इसका फायदा मिलता।” किसान अनिल कुमार ने भी दुख जताया कि व्यापारी इस बार माल उठाने में रुचि नहीं दिखा रहे। “बाजार में माल ज्यादा आ गया, जिसने कीमतों को दबा दिया,” उन्होंने कहा।

जल्दी पकने से बढ़ी मुश्किल

कृषि अधिकारियों के मुताबिक, उच्च तापमान और असमान बारिश ने आम की तुड़ाई अवधि को 30-40 दिनों से घटाकर मात्र तीन सप्ताह कर दिया। समय से पहले पकने और जल्दबाजी में तुड़ाई के कारण मंडियां फलों से अट गईं। मई के अंत से जून के पहले सप्ताह तक तुड़ाई करने वाले किसानों को 24-25 रुपये प्रति किलो के दाम मिले, लेकिन देर से तुड़ाई करने वालों को भारी नुकसान उठाना पड़ा। कई बागों में सिंचाई बंद होने से आम जमीन पर गिर रहे हैं, जिनका गूदा ढीला और बिक्री योग्य नहीं है।

किसानों की मांग: एमएसपी और मुआवजा

मलिहाबाद और बीकेटी के किसानों ने सरकार से तत्काल कदम उठाने की मांग की है। उनका कहना है कि बिना एमएसपी के वे बाजार की ताकतों के सामने बेबस हैं। किसानों ने संगठित खरीद प्रणाली और मुआवजे की मांग की ताकि उनकी मेहनत बेकार न जाए।

क्या है कीमतों के टूटने का राज?

कीमतों में गिरावट के पीछे बंपर उत्पादन और जल्दी तुड़ाई तो मुख्य कारण हैं, लेकिन कई अनसुलझे सवाल भी हैं। क्या यह सिर्फ मौसमी बदलाव है, या जलवायु परिवर्तन का स्थायी असर? क्या व्यापारिक नेटवर्क में खामियां हैं, या कोई संगठित साजिश के तहत कीमतें दबाई जा रही हैं? कुछ किसानों को शक है कि अफवाहों के जरिए घबराहट फैलाई जा रही है, जिससे वे सस्ते में माल बेचने को मजबूर हैं।

आगे क्या?

किसानों की गुहार अब सरकार तक पहुंच चुकी है। विशेषज्ञों का कहना है कि रियल-टाइम डेटा और बेहतर नीतियों के जरिए इस संकट का समाधान निकाला जा सकता है। फिलहाल, आम के राजा की चमक फीकी पड़ रही है, और किसानों की उम्मीदें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के फैसले पर टिकी हैं। क्या आम की कीमतों में आएगी स्थिरता, या किसानों का नुकसान और बढ़ेगा? यह सवाल समय ही बताएगा।

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