नई दिल्ली, 30 अक्टूबर 2024, बुधवार। दीपावली का त्योहार और पटाखों का कनेक्शन तो बहुत गहरा है! पटाखों का जिक्र होते ही शिवकाशी का नाम जुबां पर आना लाज़मी सी बात है। शिवकाशी का नाम आतिशबाजी की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध है, और यहाँ की इकोनॉमी पूरी तरह से पटाखों के निर्माण और बिक्री पर निर्भर है। दीपावली के मौके पर शिवकाशी में पटाखों की बिक्री बढ़ जाती है, और यहाँ के लोगों को रोजगार मिलता है। लेकिन, पटाखों के उपयोग से पर्यावरण प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण भी बढ़ता है, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। आजकल, लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ रही है, और वे इको-फ्रेंडली पटाखे या अन्य विकल्पों का चयन कर रहे हैं। शिवकाशी के लिए यह एक नई चुनौती है, जिसमें वह अपनी इकोनॉमी को स्थायी बनाए रखने के लिए नए तरीके ढूंढ सकता है।
शिवकाशी की कहानी वास्तव में प्रेरणादायक है! एक समय पर सूखे से बेहाल होने वाला यह शहर आज पटाखों की राजधानी बन गया है। यहाँ के दो भाईयों की दूरदर्शिता और मेहनत ने शिवकाशी को इस मुकाम पर पहुँचाया है। 19वीं सदी में भीषण सूखे के कारण रोजगार की कमी होने पर दो भाईयों शानमुगा नाडर और पी अय्या नाडर ने कलकत्ता जाकर माचिस और पटाखों का निर्माण सीखा। उनकी इस दूरदर्शिता और मेहनत ने शिवकाशी को पटाखों की राजधानी बना दिया। आज भारत पटाखा निर्माण में दुनिया में दूसरे स्थान पर है, और इसका श्रेय शिवकाशी को जाता है। यह कहानी न केवल शिवकाशी की सफलता की गवाह है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि कैसे छोटे से शहर ने अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए नए अवसरों की तलाश की और आज विश्व स्तर पर अपनी पहचान बनाई है।
सूखा मौसम जो पहले शहर के लिए चुनौती था, वही अब उनके लिए वरदान बन गया। नाडर भाईयों ने न केवल पटाखों का निर्माण शुरू किया, बल्कि उन्होंने दूसरे लोगों को भी इस कौशल में प्रशिक्षित किया और आतिशबाजी उद्योग की नींव रखी। यह उनकी दूरदर्शिता और सामाजिक जिम्मेदारी का प्रमाण है। आज शिवकाशी का आतिशबाजी उद्योग न केवल शहर की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाता है, बल्कि यह दुनिया भर में भारत की पहचान भी बनाता है। तमिलनाडु के विरुदुनगर जिले में स्थित शिवकाशी में आज लगभग 8000 पटाखा कारखाने हैं, जो देश भर में पटाखों के उत्पादन में 90% योगदान देते हैं। शिवकाशी को मिनी जापान कहा जाना इसकी औद्योगिक गतिविधियों की वजह से है। लेकिन, यहाँ की एक और खास बात है कि अभी भी 98% पटाखे पुराने फॉर्मूलों से ही बनते हैं। हालांकि, पटाखा कारोबार में प्रतिबंधों के कारण वृद्धि के बजाय 40-60% की कमी आई है, जो चिंताजनक है। लेकिन, शिवकाशी की आतिशबाजी उद्योग की पहचान और इसके योगदान को देखते हुए, उम्मीद है कि यह उद्योग फिर से मजबूत होगा।
शिवकाशी में नाडर समुदाय का ही अब भी आतिशबाजी के निर्माण में दबदबा कायम है। हालांकि, आतिशबाजी की मांग दीपावली और शादियों के सीजन में होने से यह एक मौसमी उद्योग है, लेकिन शिवकाशी के लोगों ने इसका समाधान निकाला है। साल के बाकी महीनों में वे माचिस का निर्माण करते हैं, जिसका 80% योगदान पूरे देश में होता है। वहीं, शिवकाशी में फायरवर्क्स रिसर्च और डेवलपमेंट सेंटर (एफआरडीसी) की स्थापना इस उद्योग के विकास में एक महत्वपूर्ण कदम है। यहाँ पर आतिशबाजी उद्योग के लिए मानक तय किए जाते हैं, जो इसकी गुणवत्ता और सुरक्षा को सुनिश्चित करते हैं।
भारतीय सेना का इतिहास भी काफी पुराना और समृद्ध है, जिसमें कई युद्धों और अभियानों में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। सेना ने हमेशा से देश की रक्षा और सुरक्षा के लिए काम किया है, और आज भी यह देश की सुरक्षा के लिए तैयार है। तो वहीं, आजकल शिवकाशी भारतीय सेना से भी जुड़ चुका है, जहां सेना के लिए अस्त्र-शस्त्र, तोपखानों के लिए विशेष गोले, और तूफान, बारिश और बर्फ में भी काम करने वाली माचिस बनाई जाती है। इसके अलावा, यहां अभ्यास के लिए बम भी बनाए जाते हैं। यह दिखाता है कि शिवकाशी में सेना के लिए विशेष उपकरणों का निर्माण किया जाता है जो विभिन्न परिस्थितियों में काम कर सकते हैं।