ऋषिकेश, 18 जून 2025:
आध्यात्मिक नगरी ऋषिकेश को आज पूरी दुनिया “योग की राजधानी” के रूप में जानती है। लेकिन यह पहचान केवल एक संयोग नहीं, बल्कि हजारों वर्षों की तपस्या, दिव्य घटनाओं और आध्यात्मिक वातावरण का परिणाम है। बाबा गोरखनाथ, सप्तऋषि, भगवान राम के भाई भरत और लक्ष्मण जैसे पात्रों की इस पवित्र भूमि से जुड़ी गाथाएं इसकी ऐतिहासिक महत्ता को और मजबूत करती हैं।
ऋषिकेश का नाम भी भगवान विष्णु से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि एक ऋषि ने यहां तपस्या कर भगवान से वरदान मांगा कि यह भूमि उनके नाम से जानी जाए। इस वरदान से यह क्षेत्र पहले “हृषिकेश” और कालांतर में “ऋषिकेश” कहलाया।
यहां भरत मंदिर की स्थापना त्रेता युग में स्वयं भरत जी ने की थी, और वर्तमान लक्ष्मण झूला उसी स्थान पर बना है जहां लक्ष्मण ने जूट का पुल बनाकर गंगा पार की थी।
ऋषिकेश की खास बात यह भी है कि यह हिमालय की गोद और गंगा के किनारे बसा है। यह शांत वातावरण, हरे-भरे पहाड़, बहती गंगा और निर्मल हवा योग और ध्यान के लिए आदर्श स्थिति प्रदान करते हैं। यही कारण है कि यहां अनेक आश्रम स्थापित हुए जैसे परमार्थ निकेतन, स्वर्ग आश्रम, शिवानंद आश्रम, जो विश्वभर के योग साधकों का केंद्र बने हैं।
1960 के दशक में जब ब्रिटिश बैंड ‘बीटल्स’ महर्षि महेश योगी के आश्रम में ध्यान साधना के लिए आया, तब से ऋषिकेश को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली। इसके बाद दुनियाभर से लोग योग सीखने के लिए यहां आने लगे।
यहां की वशिष्ठ, अरुंधती और झिलमिल गुफाएं भी योग और साधना के लिए प्रसिद्ध हैं। मान्यता है कि गोरखनाथ और सप्तऋषियों ने यहां गहन तपस्या की थी।
इस तरह ऋषिकेश का धार्मिक, प्राकृतिक और ऐतिहासिक महत्व ही इसे योग की वैश्विक राजधानी बनाता है।