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Thursday, November 21, 2024

जिस जुर्म में आजादी के नायक भगत सिंह को दी गई फांसी, उसके एफआईआर कॉपी में उनका नाम तक नहीं…

लाहौर, 23 अक्टूबर 2024, बुधवार। अविभाजित भारत के स्वंतंत्रता संग्राम के दौरान आजादी के नायक रहे सरदार भगत सिंह की फांसी को गलत बताते हुए पाकिस्तान में कुछ संगठनों ने बीते मार्च महीने में उनकी 93वीं बरसी पर इस मामले की फिर से सुनवाई करने की मांग की थी। पाकिस्तान कोर्ट से मामले की उसी तरह दोबारा सुनवाई कर न्याय देने की मांग की है, जैसा पूर्व पीएम जुल्फिकार अली भुट्टो के केस में हुआ था। तो वहीं, अब पाकिस्तान के एक टीवी न्यूज चैनल ने इस मुद्दे पर खुलकर विस्तार से चर्चा की। न्यूज चैनल के मुताबिक, जिस अंग्रेज की हत्या के जुर्म में भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु को फांसी दी गई उस एफ़आईआर में इनके नाम ही नही है।
न्यूज चैनल ने दावा किया कि उसके पास थाना अनारकली लाहौर की 17 दिसम्बर 1928 की एफआईआर कॉपी है। कागजो में अंग्रेज अधिकारी इशारा कर रहे हैं कि किसी बड़े आदमी के दबाव में तीनों को फांसी दी गई। बड़ा आदमी कौन हो सकता है सोचिए? किसको इस बात का डर था कि अगर भारत आजाद हुआ तो भगत सिंह के सामने में प्रधानमंत्री नहीं बन सकता ? बता दें, भगतसिंह फाउंडेशन 2013 से लाहौर कोर्ट में हमारे क्रांतिकारियों को बेगुनाह साबित करने का प्रयास कर रहा है।
गौरतलब है कि, ब्रिटिश शासकों ने भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को हुकूमत के खिलाफ साजिश रचने के आरोप में मुकदमा चलाने के बाद 23 मार्च, 1931 को शादमान चौक पर फांसी दे दी थी। भगत सिंह को शुरू में आजीवन कारावास की सजा दी गई थी, लेकिन बाद में एक और मनगढ़ंत मामले में मौत की सजा सुनाई गई। उन्हें पूरे उपमहाद्वीप में न केवल सिख और हिन्दू, बल्कि मुसलमान भी सम्मान की नजर से देखते हैं।

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