नई दिल्ली, 05 जून 2025, गुरुवार: आज जब विश्व मानवीय मूल्यों और आध्यात्मिक दिशा की तलाश में भटक रहा है, हिन्दू समाज के सामने एक ऐतिहासिक अवसर और कर्तव्य उपस्थित है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत के शब्दों में, “हिन्दू समाज को अब और निष्क्रिय नहीं रहना है। अपनी सांस्कृतिक विरासत और शाश्वत मूल्यों को पहचानकर एकजुट होकर आगे बढ़ना होगा।” आज के दौर में, जब भारत विश्व मंच पर अपनी प्राचीन सभ्यता के बल पर नई पहचान बना रहा है, हिन्दू समाज को अपने आंतरिक भेदभाव और मतभेदों को भुलाकर एक सशक्त और नैतिक समाज का निर्माण करना होगा। डॉ. भागवत ने जोर देकर कहा कि यह जागृति केवल धार्मिक स्तर तक सीमित नहीं होनी चाहिए। व्यक्तिगत जीवन से लेकर पारिवारिक, सामाजिक और आर्थिक क्षेत्रों में नैतिकता, नीति और संस्कृति का समावेश आवश्यक है।
वैभवशाली भारत का सपना: कर्तव्य और अवसर
डॉ. भागवत ने अपने संदेश में स्पष्ट किया कि भारत को पुनः विश्व गुरु के रूप में स्थापित करना अब केवल एक आकांक्षा नहीं, बल्कि ईश्वर प्रदत्त कर्तव्य है। हिन्दू समाज की यह जागृति न केवल भारत, बल्कि समूचे विश्व को आध्यात्मिक और नैतिक नेतृत्व प्रदान कर सकती है। उन्होंने कहा, “विश्व आज एक मार्गदर्शक की प्रतीक्षा में है, जो तकनीक और अर्थव्यवस्था के साथ-साथ नैतिकता और आध्यात्मिकता का भी पथ प्रदर्शन करे। यह भूमिका भारत की है, और इसे निभाने की शक्ति हिन्दू समाज में निहित है।”
गौरवशाली अतीत से प्रेरणा, साहसपूर्ण वर्तमान
हिन्दू समाज का गौरवशाली अतीत उसकी प्रेरणा का स्रोत है। प्राचीन भारत ने विश्व को ज्ञान, विज्ञान, और आध्यात्मिकता का मार्ग दिखाया। अब समय है कि वर्तमान चुनौतियों का सामना करते हुए हिन्दू समाज साहस और एकता के साथ भविष्य के भारत का निर्माण करे। डॉ. भागवत ने समाज से आह्वान किया कि वह अपने सांस्कृतिक मूल्यों को पुनर्जनन दे और विश्व को शांति, समृद्धि और नैतिकता का संदेश दे।