नई दिल्ली, 12 दिसंबर 2024, गुरुवार। सुप्रीम कोर्ट पूजा स्थल अधिनियम 1991 के कुछ प्रावधानों की वैधता को चुनौती वाली जनहित याचिकाओं पर बृहस्पतिवार को सुनवाई करेगी। यह कानून किसी पूजा स्थल को पुनः प्राप्त करने या 15 अगस्त 1947 को प्रचलित स्वरूप से उसके चरित्र में बदलाव की मांग करने के लिए मुकदमा दायर करने पर रोक लगाता है। अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर की गई एक याचिका में प्रार्थना की गई है कि पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की धारा 2, 3 और 4 को रद्द कर दिया जाए। याचिकाकर्ता का कहना है कि ये तीनों धाराएं भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14,15, 21, 25,26 और 29 का उल्लंघन करती हैं। सीजेआई जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की विशेष पीठ इस मामले की सुनवाई कर सकती है। शीर्ष अदालत में कई याचिकाएं लंबित हैं, जिनमें से एक अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर की गई है।
पूजा स्थल अधिनियम 1991: क्या हैं इस कानून के प्रावधान और इसका महत्व?
पूजा स्थल अधिनियम 1991 के मुताबिक 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता। अगर कोई ऐसा करने की कोशिश करता है तो उसे एक से तीन साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है। इस कानून की धारा-दो कहती है कि अगर 15 अगस्त 1947 मौजूद किसी धार्मिक स्थल के चरित्र में बदलाव को लेकर कोई याचिका या अन्य कार्यवाही किसी अदालत, न्यायाधिकरण या अन्य प्राधिकरण में लंबित है, तो उसे बंद कर दिया जाएगा। कानून की धारा-3 किसी पूजा स्थल को पूरी तरह या आंशिक रूप से किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में बदलने पर रोक लगाती है। वहीं, धारा-4(1) कहती है कि 15 अगस्त 1947 को किसी पूजा स्थल का जो चरित्र था उसे वैसा ही बनाए रखना होगा।
पूजा स्थल अधिनियम 1991: क्या है इस कानून का भविष्य? सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन याचिकाओं का विश्लेषण
राम मंदिर आंदोलन के दौरान, कई मंदिर-मस्जिद विवाद उठने लगे थे। इन विवादों को शांत करने के लिए, तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव की सरकार ने पूजा स्थल अधिनियम 1991 पारित किया था। इस कानून के मुताबिक, 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को एक आस्था से दूसरे धर्म में परिवर्तित करने पर रोक लगाई गई थी। लेकिन अब, इस कानून को चुनौती देने वाली कम से कम दो याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन हैं। इनमें से एक याचिका लखनऊ के विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ और कुछ अन्य सनातन धर्म के लोगों की है, जबकि दूसरी याचिका भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने लगाई है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह कानून न्यायिक समीक्षा पर रोक लगाता है, जो संविधान की बुनियादी विशेषता है। इसके साथ ही, यह कानून एक मनमाना तर्कहीन कटऑफ तिथि भी लागू करता है जो हिन्दू, जैन, बुद्ध और सिख धर्म के अनुयायियों के अधिकार को कम करता है।
काशी और मथुरा के बाद क्या बदलेगा पूजा स्थल अधिनियम 1991? जानें इसके बारे में
जुलाई 1991 में जब केंद्र सरकार ने पूजा स्थल अधिनियम 1991 पारित किया था, तब भी संसद में भाजपा ने इसका विरोध किया था। उस वक्त राज्यसभा में अरुण जेटली और लोकसभा में उमा भारती ने इस मामले को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजने की मांग की थी। इस कानून के मुताबिक, 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को एक आस्था से दूसरे धर्म में परिवर्तित करने पर रोक लगाई गई थी। लेकिन अब, अयोध्या मामले का फैसला आने के बाद एक बार फिर काशी और मथुरा सहित देशभर के करीब 100 पूजा स्थलों पर मंदिर की जमीन होने को लेकर दावेदारी की जा रही है, लेकिन 1991 के कानून के चलते दावा करने वाले कोर्ट नहीं जा सकते। ज्ञानवापी में इसी कानून के उल्लंघन की बात मुस्लिम पक्ष कह रहा है।