प्रयागराज, 29 अप्रैल 2025, मंगलवार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2020 के बहुचर्चित हाथरस गैंगरेप मामले में बड़ा फैसला सुनाते हुए तत्कालीन चंदपा थाना इंचार्ज इंस्पेक्टर दिनेश वर्मा की याचिका को खारिज कर दिया। वर्मा ने अपने खिलाफ सीबीआई कोर्ट में चल रहे आपराधिक मामले को रद्द करने की मांग की थी, लेकिन कोर्ट ने इसे ठुकराते हुए साफ कहा कि पुलिस की लापरवाही और गाइडलाइंस के उल्लंघन के पुख्ता सबूत हैं। यह फैसला न केवल पुलिस की जवाबदेही पर सवाल उठाता है, बल्कि पीड़ितों के प्रति संवेदनशीलता की कमी को भी उजागर करता है।
कोर्ट ने क्यों ठुकराई याचिका?
हाईकोर्ट की एकलपीठ, जिसकी अध्यक्षता न्यायमूर्ति राजबीर सिंह ने की, ने अपने आदेश में कहा कि थाना इंचार्ज की ओर से की गई लापरवाही को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने कई गंभीर खामियों पर ध्यान दिया:
- सीसीटीवी फुटेज और फर्जी जीडी एंट्री: थाने की सीसीटीवी फुटेज और जनरल डायरी (जीडी) में गलत इंट्री के सबूत मिले। कोर्ट ने कहा कि थाना इंचार्ज जीडी के कस्टोडियन होते हैं और उनकी जवाबदेही बनती है।
- पीड़िता के बयान की अनदेखी: जब पीड़िता थाने पहुंची, तो इंस्पेक्टर वर्मा ने अपने मोबाइल से उसका वीडियो बनाया, लेकिन बयान दर्ज करने की कोई कोशिश नहीं की। यह पीड़िता की गरिमा और निजता का उल्लंघन था।
- अस्पताल ले जाने में लापरवाही: थाने में दो वाहन मौजूद थे, लेकिन पीड़िता को अस्पताल ले जाने के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई। परिवार को मजबूरन ऑटो का सहारा लेना पड़ा।
- गाइडलाइंस का उल्लंघन: पुलिस ने न तो एम्बुलेंस की व्यवस्था की और न ही मेडिकल जांच के लिए तत्परता दिखाई। इतना ही नहीं, जब पीड़िता अस्पताल में थी, तब लेडी कांस्टेबल ने थाने में बयान दर्ज कर जीडी में झूठी एंट्री की कि पीड़िता को कोई चोट नहीं थी।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह मामला मिनी ट्रायल का नहीं है। आरोपों की सत्यता ट्रायल कोर्ट में सबूतों के आधार पर तय होगी। इसलिए, केस रद्द करने का कोई आधार नहीं बनता।
क्या है हाथरस गैंगरेप मामला?
14 सितंबर 2020 की सुबह, हाथरस में एक अनुसूचित जाति की युवती अपनी मां के साथ चारा इकट्ठा करने गई थी। तभी संदीप नामक व्यक्ति अपने साथियों के साथ उसे खेत में घसीट ले गया और उसके साथ दुष्कर्म किया। विरोध करने पर उसका गला दबाकर हत्या की कोशिश की गई। शोर सुनकर पीड़िता का भाई और अन्य लोग मौके पर पहुंचे, जिसके बाद आरोपी भाग गए। पीड़िता को अर्द्धविक्षिप्त हालत में थाने लाया गया, लेकिन पुलिस ने न तो शिकायत पर तुरंत कार्रवाई की और न ही अस्पताल ले जाने में मदद की।
पीड़िता को पहले हाथरस के जिला अस्पताल और फिर अलीगढ़ रेफर किया गया, जहां मजिस्ट्रेट के सामने उसका बयान दर्ज हुआ। मामला तूल पकड़ने के बाद भी पुलिस की उदासीनता बरकरार रही। 29 सितंबर को पीड़िता की इलाज के दौरान मृत्यु हो गई। इसके बाद पुलिस ने परिवार की मर्जी के खिलाफ आधी रात को उसका अंतिम संस्कार कर दिया, जिसने पूरे देश में आक्रोश पैदा किया।
सीबीआई जांच और चार्जशीट
मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच सीबीआई को सौंपी गई। गाजियाबाद में एफआईआर दर्ज हुई और सीबीआई ने मुख्य आरोपी संदीप, रामू, रवि और लवकुश के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। बाद में थाना इंचार्ज दिनेश वर्मा और अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ भी चार्जशीट दाखिल की गई।
पुलिस की जवाबदेही पर सवाल
वर्मा ने दावा किया कि उनकी कोई भूमिका नहीं थी और उन्हें झूठा फंसाया गया। लेकिन कोर्ट ने उनकी दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि पुलिस ने न केवल पीड़िता की मदद करने में कोताही बरती, बल्कि मीडिया कवरेज को रोकने में भी विफल रही। कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि रेप पीड़िता का वीडियो बनाना और उसे सार्वजनिक करना न केवल गैरकानूनी है, बल्कि उसकी गरिमा और निजता का भी उल्लंघन है।