उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इन दिनों अपने पुरानी रौ में हैं। हिंदुत्व को लेकर वो अपने पुराने दिनों की तरह मुखर हो गए हैं। इसकी बानगी गोरखपुर में हिंदी दिवस पर आयोजित एक कार्यक्रम में देखने को मिली। जब योगी आदित्यनाथ ने ज्ञानवापी को लेकर बड़ा बयान दिया। उन्होंने ललकारते हुए कहा कि ज्ञानवापी ही विश्वनाथ धाम है, इसे मस्जिद कहना दुर्भाग्यपूर्ण है। दरसल, बीते लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में मिली करारी हार और पार्टी में उनके खिलाफ उठती आवाज ने शायद उन्हें फिर से अपने पुराने रूप में लौटने को प्रेरित किया है। पिछले दिनों उनके कुछ फैसलों और अब ज्ञानवापी पर दिए बयान को देखकर लगता है कि योगी फिर से उग्र हिंदुत्व की ओर बढ़ रहे हैं।
योगी ने सुनाया आदि शंकराचार्य और चांडाल प्रसंग
योगी आदित्यनाथ ने कहा कि संतों की परंपरा हमेशा से जोड़ने की रही है। संतों ने समाज को जोड़ने का काम किया। आज लोग जिसे ज्ञानवापी मस्जिद कह रहे हैं, वह साक्षात बाबा विश्वनाथ हैं। इस दौरान सीएम योगी ने आदि शंकर की कहानी सुनाते हुए कहा कि याद करिए केरल में जन्मा एक संन्यासी आदि शंकर के रूप में भारत के चार कोनों में चार पीठों की स्थापना करता है। आचार्य शंकर जब अपने अद्वैत ज्ञान से परिपूर्ण होकर आगे की साधना के लिए जब काशी आए। तब साक्षात भगवान विश्वनाथ ने उनकी परीक्षा ली। दरअसल ब्रह्म मुहूर्त में आदि शंकर गंगा स्नान के लिए जा रहे थे। तभी भगवान सबसे अछूत कहे जाने वाले चंडाल के रूप में उनके मार्ग पर खड़े हो गए। उन्हें देखकर आदि शंकर ने कहा, मेरे रास्ते से हटो। अगर ब्रह्म सत्य है तो जो ब्रह्म आपके अंदर है, वहीं ब्रह्म मेरे अंदर भी है। इस ब्रह्म सत्य को जानकर भी ठुकरा रहे हैं। इसका मतलब आपका यह ज्ञान सत्य नहीं है। यह आदि शंकर भौचक्के रह गए। उन्होंने फिर पूछा, आप कौन हैं, क्या मैं जानता हूं। जवाब में भगवान ने कहा, जिस ज्ञानवापी की उपासना के लिए आप केरल से चलकर यहां आए हैं। मैं साक्षात स्वरूप विश्वनाथ हूं।
कौन है आदि शंकराचार्य
जिस आदि शंकराचार्य की कहानी योगी आदित्यनाथ ने सुनाई उनका जन्म आठवीं सदी में केरल के कालड़ी गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। माना जाता है कि स्वंय भगवान शिव शंकराचार्य के रूप में जन्म लिए थे। उनका जन्म वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष पंचमी को हुआ था। कहा जाता है कि उनके पास असीम शक्तियां थीं। भगवान शंकराचार्य की कथा और महिमा दोनों निराली है। करीब 2000 साल पहले केरल में आठ साल के बच्चे ने देखा था कि उसकी मां को पानी लाने के लिए गांव से काफी दूरी पर स्थित पूर्णा नदी तक जाना पड़ता है, वह बच्चा अपनी मां को इतनी दूर परिश्रम करने जाता देख व्यथित था। उस बच्चे ने उसी दौरान गांव से दूर बहने वाली नदी को गांव के पास मोड़ दिया। वह बालक कोई और नहीं बल्कि आदि शंकराचार्य थे, जिन्होंने चारों दिशाओं में चार धाम या चार पीठ और 12 ज्योतिर्लिंगों की स्थापना की थी। ये वो दौर था, जब पूरे भारत में वैष्णव और शैव संप्रदायों के बीच भयानक शत्रुता होती थी। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि दुर्भाग्य से वो ज्ञानवापी जिसे लोग आज दूसरे शब्दों में मस्जिद कहते हैं लेकिन वो ज्ञानवापी साक्षात विश्वनाथ की है। योगी ने कहा कि नाथ परंपरा ने हमेशा सबको जोड़ने की कोशिश की है। गुरु गोरखनाथ ने अपने समय में राष्ट्रीय एकता की ओर ध्यान आकर्षित किया था। रामचरित मानस समाज को जोड़ता है।