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Monday, August 4, 2025

ग्रीन पटाखे: खुशबूदार आतिशबाजी का आनंद, क्या वाकई 50 फीसदी तक कम होता इनसे प्रदूषण

सुप्रीम कोर्ट अपने कई आदेशों में पटाखों को लेकर सख्त लहजे में सरकारों को चेता चुका है। सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और गृह सचिवों को सख्त निर्देश जारी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही कहा था कि पटाखों पर प्रतिबंध पर अमल में कोई राज्य चूक करता है तो उस राज्य के चीफ सेक्रेटरी और होम सेक्रेटरी जिम्मेदार होंगे।

मोटे तौर पर समझें तो पांरपरिक पटाखों के मुकाबले ग्रीन पटाखों से हानिकारक धुआं और पदार्थ (गैसें) कम निकलते हैं, जिससे 40 से 50 फीसदी तक प्रदूषण घटाया जा सकता है। साथ ही, दमघोंटू धुआं के उलट इनसे निकलने वाले अरोमा से आतिशबाजी खुशबूदार भी बन जाती ह

ये आकार में छोटे होते हैं, जिनमें एल्युमिनियम, बैरियम, पोटेशियम नाइट्रेट और कार्बन का इस्तेमाल नहीं किया जाता है या फिर इनकी मात्रा बहुत कम होती है। हालांकि, ग्रीन पटाखे दिखने, जलने और आवाज में सामान्य पटाखों जैसे ही होते हैं, लेकिन इनसे नाइट्रोजन और सल्फर जैसी गैसें भारी मात्रा में नहीं निकलत

भारत में ग्रीन पटाखे राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) की ईजाद हैं। नीरी वैज्ञानिक औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के अधीन एक सरकारी संस्था है। इसका कहना है कि पारंपरिक पटाखों की तुलना में ग्रीन पटाखे जलाने पर 50 फीसदी तक कम हानिकारक गैसें निकलती हैं।

देश में कुछ समय पहले तक कुछेक संस्थाएं ही इन्हें बना रही थीं। लेकिन अब अदालती सख्ती और सरकारी प्रयासों से इनका बड़े स्तर पर उत्पादन हो रहा है। इन्हें सरकार द्वारा पंजीकृत दुकानों से खरीदा जा सकता है।

ये भले ही आकार में छोटे हों, पर इनमें फुलझड़ी, फ्लावर पॉट से लेकर स्काईशॉट जैसे सभी पटाखे मिलते हैं।

ग्रीन पटाखों के पैकेटों पर लगे क्यूआर कोड को स्कैन कर आप इनकी बखूबी पहचान कर सकते हैं।

यह पटाखे जलने के बाद पानी के कण पैदा करते हैं, जिससे आतिशबाजी में निकलने वाली हानिकारक गैसों के कण घुल जाते हैं और इससे धूल के कण ऊपर नहीं उठते। नीरी ने इन्हें सेफ वॉटर रिलीजर का नाम दिया है। जाहिर है कि पानी प्रदूषण को कम करने का बेहतर तरीका माना जाता है।

इन पटाखों को स्टार क्रैकर कहा गया है। इनमें ऑक्सिडाइजिंग एजेंट का उपयोग होता है, जिससे पटाखे फोड़ने के बाद सल्फर और नाइट्रोजन कम मात्रा में निकलते हैं। इसके लिए इन पटाखों में खास रसायन डाले जाते हैं।

इन पटाखों को जलाने से न केवल हानिकारक गैसें कम पैदा होंगी, बल्कि ये अच्छी खुशबू भी बिखेरते हैं। यानी आतिशबाजी का आनंद दोगुना हो सकता है।

सुप्रीम कोर्ट अपने कई आदेशों में पटाखों को लेकर सख्त लहजे में सरकारों को चेता चुका है। सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और गृह सचिवों को सख्त निर्देश जारी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही कहा था कि पटाखों पर प्रतिबंध पर अमल में कोई राज्य चूक करता है तो उस राज्य के चीफ सेक्रेटरी और होम सेक्रेटरी जिम्मेदार होंगे। बुजुर्गों और बच्चों के जीवन के साथ खेलने का किसी को अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि लोगों खासकर बुजुर्ग और बच्चों के स्वास्थ्य पर पटाखे पर विपरीत असर हो रहा है। राज्य और राज्यों की एंजेंसी की ड्यूटी है कि वे कोर्ट के आदेश का सख्ती से पालन कराए।

जो पटाखे बैन (बेरियम सॉल्ट आदि केमिकल्स वाले पटाखे) हैं, उसे त्योहार के नाम पर चलाने की इजाजत नहीं दी जा सकती क्योंकि त्योहार के नाम पर बैन पटाखे चलाकर किसी और के स्वास्थ्य के अधिकार में दखल देने का किसी को भी अधिकार नहीं है। स्वास्थ्य का अधिकार अनुच्छेद-21 के तहत जीवन के अधिकार में शामिल है। किसी को भी यह अधिकार नहीं है कि वह दूसरे के जीवन के अधिकार के साथ खेले। खासकर बुजुर्ग और बच्चों के स्वास्थ्य के साथ खेलने का किसी को अधिकार नहीं।

 

 

 

 

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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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