वाराणसी, 25 जून 2025: धर्मनगरी काशी में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा की तैयारियां जोरों पर हैं। 15 दिनों के विश्राम के बाद आज आषाढ़ अमावस्या के पावन अवसर पर सुबह 5 बजे भगवान जगन्नाथ ने भक्तों को प्रथम दर्शन दिए। बीते 15 दिनों तक उन्हें औषधीय काढ़े का भोग लगाया गया, और स्वस्थ होने के बाद मंदिर में भव्य आरती हुई। पंचामृत प्रसाद के साथ परवल से बने व्यंजनों का भोग भी अर्पित किया गया।
27-29 जून तक रथयात्रा महोत्सव
काशी की 257 साल पुरानी रथयात्रा परंपरा इस वर्ष और भी भव्य होगी। 27 से 29 जून तक भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलराम रथ पर सवार होकर भक्तों को दर्शन देंगे। इससे पहले 26 जून को डोली यात्रा निकलेगी, जिसमें भगवान अस्सी मंदिर से द्वारकाधीश मंदिर तक पालकी में विराजेंगे।
201 ध्वजों से सजेगी डोली यात्रा
इस बार की डोली यात्रा में ओडिशा के पुरी मंदिर से मंगवाए गए 201 विशेष ध्वज लहराएंगे। एक विशाल ध्वज यात्रा का नेतृत्व करेगा, जबकि बाकी ध्वज भक्तों के हाथों में होंगे। शंखनाद, डमरू दल और भजन-कीर्तन के साथ यह यात्रा काशी की गलियों में भक्ति का रंग बिखेरेगी।
1765 से चली आ रही परंपरा
काशी की रथयात्रा की शुरुआत 1765 में पुरी से आए एक वैष्णव संत ने की थी। छत्तीसगढ़ के शासक की आर्थिक सहायता से मंदिर और रथयात्रा की नींव पड़ी। 1790 में मंदिर निर्माण पूरा हुआ और तब से यह परंपरा अनवरत जारी है। 1857 के बाद शासकीय सहायता बंद होने के बावजूद भक्तों की श्रद्धा से यह परंपरा आज भी जीवंत है।
मंदिर की वास्तु और विशेषताएं
16 मीटर ऊंचा आयताकार मंदिर वैष्णव परंपरा का अनुपम उदाहरण है। यहां भगवान जगन्नाथ, बलराम, सुभद्रा के साथ नरसिंह, भक्त प्रह्लाद, गरुड़, कृष्ण, राम और लक्ष्मीनारायण की मूर्तियां स्थापित हैं, जो भक्तों को आकर्षित करती हैं।
काशी में दर्शन, पुरी का पुण्य
मान्यता है कि जो भक्त पुरी नहीं जा पाते, वे काशी में भगवान जगन्नाथ के दर्शन कर वही पुण्य अर्जित करते हैं। रथयात्रा का यह महोत्सव काशीवासियों के लिए भक्ति और आस्था का अनूठा अवसर लेकर आ रहा है।