वाराणसी, 29 जून 2025: आध्यात्मिक नगरी काशी में भगवान जगन्नाथ की तीन दिवसीय रथ यात्रा, जिसे लक्खा मेले के नाम से जाना जाता है, रविवार को भक्ति और उत्साह के साथ संपन्न हुई। इस यात्रा में तीन दिनों में करीब 5 लाख श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया, जिन्होंने प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया। बारिश की बूंदों को मात देती भक्ति की लहरों ने काशी की सड़कों को आलौकिक बना दिया।
अजय राय ने की भक्ति की बात
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने यात्रा के अंतिम दिन मंदिर पहुंचकर प्रभु के दर्शन किए। उन्होंने कहा, “35 सालों से मैं इस पवित्र यात्रा में शामिल हो रहा हूं। यह मेरे लिए सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि आत्मिक सुकून का स्रोत है। काशीवासियों का उत्साह और श्रद्धा इसे और खास बनाती है।”
2 टन का रथ बना आकर्षण का केंद्र
यात्रा का सबसे दर्शनीय नजारा था 2 टन वजनी अष्टकोणीय रथ, जो श्रीयंत्र की आकृति पर आधारित था। बेला के फूलों से सजा यह रथ भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा। सुबह 5:07 बजे पं. राधेश्याम पांडेय ने मंगला आरती के साथ रथ यात्रा की शुरुआत की, जिसके बाद भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी।
प्रभु को चढ़ा छौंका चना और पेड़ा
सुबह 9 बजे भगवान जगन्नाथ को छौंका चना, मूंग, पेड़ा, गुड़ और देसी चीनी का शरबत भोग के रूप में अर्पित किया गया। यह भोग दोपहर की आरती तक भक्तों के दर्शन के लिए उपलब्ध रहा, जिसने श्रद्धालुओं के बीच उत्साह बढ़ाया।
नानखटाई ने बांधी मेले की मिठास
महमूरगंज से गुरुबाग तक सजी 80 से अधिक नानखटाई की दुकानों ने मेले में मिठास घोल दी। ₹160 से ₹700 प्रति किलो तक की कीमत वाली नानखटाई की सुगंध ने भक्तों को लुभाया। शाम होते-होते दुकानों पर खरीदारों की भीड़ जुट गई, जिसने मेले की रौनक को दोगुना कर दिया।
काशी की आस्था का जीवंत प्रतीक
पुरी की तर्ज पर काशी की यह रथ यात्रा हिंदू धर्म, स्थानीय संस्कृति और सामाजिक एकता का अनुपम उदाहरण बनी। मेले ने साबित किया कि काशी सिर्फ एक शहर नहीं, बल्कि आस्था और परंपरा का जीवंत संगम है। यह रथ यात्रा न केवल भक्ति का उत्सव थी, बल्कि काशी की सांस्कृतिक धरोहर को भी विश्व पटल पर ले गई।