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Tuesday, July 1, 2025

गोरखपुर : बीटेक छात्रा ने कबाड़ के शीशे का इस्तेमाल कर ईंट तैयार की है, जो सामान्य ईंट से दोगुना मजबूत

गोरखपुर मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (एमएमएमयूटी) की बीटेक छात्रा रहीं, मानसी त्रिपाठी ने कबाड़ के शीशे (ग्लास व बोतलों) का इस्तेमाल कर एक ऐसी ईंट तैयार की है, जो सामान्य ईंट से दोगुना मजबूत है। यह ईंट पानी कम सोखती है और इसे बनाने में 15 प्रतिशत लागत भी कम आई है। खास बात यह है कि यह शोध लैब में न करके ईंट-भट्ठे पर किया गया है। पानी काफी कम सोखने की वजह से सीलन की गुंजाइश भी नहीं है। स्फ्रिजर पब्लिशिंग हाउस के एक प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल ने शोधपत्र को परखने के बाद इसे प्रकाशन के लिए स्वीकृत कर लिया है।

विश्वविद्यालय के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के स्वायल एंड फाउंडेशन इंजीनियरिंग (भू-तकनीकी) विशेषज्ञ डॉ. विनय भूषण चौहान के मार्गदर्शन में सिविल इंजीनियरिंग विभाग की छात्रा मानसी त्रिपाठी ने वर्ष 2020 में शोध किया। मानसी इस समय आईआईटी बीएचयू से एनवायरनमेंटल इंजीनियरिंग से एमटेक कर रही हैं।

शोध के दौरान अपशिष्ट ग्लॉस पाउडर मिश्रण से बनाई गई ईंटों की गुणवत्ता की जांच लैब में हुई। पाया गया कि अपशिष्ट ग्लास पाउडर के मिश्रण से भारतीय मानक 1070 (1992: आर 2007) के अनुसार ए श्रेणी की ईंट बनाई जा सकती है।

मानसी के शोध पत्र को स्फ्रिजर पब्लिशिंग हाउस के एक प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल इनोवेटिव इंफ्रास्ट्रक्चर सॉल्यूशंस में इवेल्यूएशन ऑफ वेस्ट ग्लॉस पाउडर टू रिप्लेस द क्ले इन फायर्ड ब्रिक मैन्युफैक्चरिंग एज ए कंस्ट्रक्शन मटेरियल शीर्षक से अगले अंक में प्रकाशित किया जाएगा।

सीएम योगी से मिली शोध की प्रेरणा
मानसी ने कहा, शोध की प्रेरणा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिली। मुख्यमंत्री पिछले दीक्षांत समारोह में आए थे और छात्रों को वर्तमान समय की सामाजिक चुनौतियों का समाधान इंजीनियरिंग एप्लीकेशन के माध्यम से ढूंढने पर जोर दिया था। साथ ही ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की चुनौतियों एवं उनके परिवर्तनात्मक समाधान की खोज के लिए प्रेरित किया था। इस पूरे प्रोजेक्ट कार्य के दौरान उन्हें उनके पूर्व सहपाठियों सिद्धार्थ जैन, शिवम, सौरभ और दीपक का भरपूर सहयोग मिला।  
 

सहायक आचार्य डॉ. विनय भूषण चौहान ने कहा कि इस तकनीकी के प्रयोग से पुरानी गैर उपयोगी कांच की बोतलों के रीसाइकिल करने की बजाय पर्यावरण हित में फिर से इस्तेमाल करने की योजना को बल मिलेगा। उर्वरक मिट्टी के अत्यधिक दोहन को भी रोकने में मदद मिलेगी और मिट्टी के खनन से होने वाली परेशानी, जैसे जलभराव आदि में भी कमी आएगी।  

ऐसे तैयार हुई ईंट
बेकार पड़ी शीशे की बोतलों का बारीक चूरा बनाकर ईंट बनाने में उपयोग होने वाली मिट्टी में 30 प्रतिशत तक मिलाया गया। उनसे निर्मित कच्ची ईंटों को भट्ठी में करीब तीन सप्ताह तक डाल दिया गया। पकी हुई ईंटों की गुणवत्ता की जांच विभिन्न भारतीय मानकों के अनुरूप एमएमएमयूटी की प्रयोगशाला में की गई।
 

बढ़ गया ईंट का घनत्व, जल अवशोषण में 12 प्रतिशत कमी
ईंट नमूनों के थोक घनत्व में 3.5 प्रतिशत की वृद्धि एवं जल अवशोषण में 12 प्रतिशत की कमी देखी गई। साथ ही ईंटों की कंप्रेसिव स्ट्रप में 55-77 प्रतिशत  वृद्धि मिली। इन सभी ईंटों पर विभिन्न आवश्यक इंजीनियरिंग टेस्ट जैसे डाइमेंशन टॉलरेंस, कलर एफ्लोरेसेंस, साउंडनेस और इंपैक्ट रेसिसटेंस टेस्ट किए गए। जिनका प्रदर्शन भारतीय मानकों के अनुरूप संतोषजनक पाया गया। अध्ययन में पाया गया कि अपशिष्ट शीशा पाउडर के 50 प्रतिशत अनुपात से तैयार मिश्रण की वजह से लागत में लगभग 15 प्रतिशत की कमी आई है।

newsaddaindia6
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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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