नई दिल्ली/गाजियाबाद, 29 अगस्त 2025: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले में एक 23 वर्षीय मूक-बधिर दलित महिला के साथ कथित सामूहिक बलात्कार के बाद उसकी संदिग्ध मौत के मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए राज्य के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) और जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। आयोग ने बुधवार को जारी बयान में कहा कि यदि मीडिया रिपोर्टें सत्य साबित हुईं, तो यह मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन है। रिपोर्ट दो सप्ताह के भीतर प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया है, जिसमें जांच की प्रगति, आरोपी की गिरफ्तारी की स्थिति और पीड़िता के परिवार को दिए गए मुआवजे (यदि कोई हो) का स्पष्ट विवरण शामिल होना चाहिए।
यह घटना गाजियाबाद के लोनी थाना क्षेत्र के निठौरी गांव में 18 अगस्त 2025 को घटी, जब पीड़िता घर से टहलने निकली थी। परिजनों के अनुसार, वह मानसिक रूप से कमजोर और मूक-बधिर होने के कारण अक्सर बिना बताए घर से निकल जाती थी, लेकिन इस बार वह करीब 6.5 किलोमीटर दूर एक ट्यूबवेल के पास घायल अवस्था में मिली। उसके कपड़े फटे हुए थे, चेहरे और शरीर पर चोट के निशान थे, और इशारों में उसने बताया कि तीन पुरुषों ने उसे मोटरसाइकिल पर बिठाकर जंगल ले जाकर सामूहिक बलात्कार किया। पीड़िता के पिता, जो कालीन विक्रेता हैं, ने तुरंत लोनी थाने में शिकायत दर्ज कराई, लेकिन परिवार ने पुलिस पर एफआईआर दर्ज करने और मेडिकल जांच में देरी का आरोप लगाया।
पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 64(2)(क) (मानसिक या शारीरिक रूप से अक्षम महिला के साथ बलात्कार) के तहत प्राथमिकी दर्ज की और एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धाराएं भी जोड़ीं। घटना के तुरंत बाद पीड़िता को दिल्ली के इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड अलाइड साइंसेज (आईएचबीएएस) में भर्ती कराया गया, जहां वह कुछ महीनों से दवा पर थी। 20 अगस्त को डिस्चार्ज होने के बाद वह घर लौटी, लेकिन 21 अगस्त की सुबह उसके पिता ने कमरे में उसे छत के पंखे से लटका हुआ पाया। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में मौत को आत्महत्या करार दिया गया, हालांकि कोई सुसाइड नोट नहीं मिला। परिवार का दावा है कि बलात्कार के सदमे और पुलिस की कथित लापरवाही ने पीड़िता को यह कदम उठाने पर मजबूर किया।
गाजियाबाद पुलिस ने तत्काल कार्रवाई करते हुए सीसीटीवी फुटेज और अन्य सुरागों के आधार पर दो मुख्य आरोपियों—रोहित कुमार (31 वर्ष, पुत्र धर्मवीर) और वीर सिंह उर्फ भोला (53 वर्ष, पुत्र ज्ञान चंद्र), दोनों निठौरी गांव निवासी—को 21 अगस्त की शाम निठौरी अंडरपास के पास मुठभेड़ में गिरफ्तार किया। मुठभेड़ के दौरान आरोपियों ने पुलिस पर गोली चलाई, जिसके जवाब में दोनों के पैरों में गोली लगी। उनके कब्जे से दो अवैध तमंचे, दो जिंदा और दो खोखे कारतूस तथा एक चोरी की मोटरसाइकिल बरामद हुई। दोनों को जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया और बाद में न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। पुलिस ने तीसरे आरोपी की तलाश के लिए पांच टीमें गठित की हैं और फॉरेंसिक जांच जारी है। डिप्टी कमिश्नर ऑफ पुलिस (ग्रामीण) सुरेंद्र नाथ तिवारी ने कहा, “एफआईआर शिकायत मिलते ही दर्ज की गई थी, लेकिन यदि परिवार के आरोप सही हैं, तो हम जांच करेंगे। मामले को गंभीरता से लिया जा रहा है।”
एनएचआरसी का हस्तक्षेप इस घटना को राष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार उल्लंघन के रूप में उजागर करता है। आयोग के बयान में कहा गया है कि पीड़िता 18 अगस्त को लोनी क्षेत्र में अकेले सड़क पर चल रही थी, जब दो पुरुषों ने उसे अगवा कर लिया। मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर आयोग ने नोटिस जारी किया, जिसमें डीजीपी और डीएम से जांच की स्थिति, आरोपी पर की गई कार्रवाई और पीड़िता परिवार को राहत प्रदान करने के उपायों का ब्योरा मांगा गया। आयोग ने चेतावनी दी कि यदि तथ्य सत्य पाए गए, तो यह महिलाओं, विशेषकर दिव्यांग और दलित समुदाय की महिलाओं की सुरक्षा पर सवाल खड़े करता है।
परिजनों का शोक और गुस्सा थमने का नाम नहीं ले रहा। पीड़िता की मां ने बताया, “मैं पोते के साथ पड़ोसी के घर गई थी। लौटकर देखा तो बेटी गायब थी। रात को एक अजनबी के फोन से पता चला कि वह निठौरी में घायल है। उसके साथ जो हुआ, वह सहन नहीं कर सकी। पुलिस ने देरी की, मेडिकल भी 24 घंटे बाद हुआ।” पिता ने कहा, “बेटी की हालत सुधर रही थी, लेकिन इस घटना ने सब बर्बाद कर दिया। न्याय मिलना चाहिए।” घटना के बाद इलाके में तनाव फैल गया, और बसपा कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन किया।
यह मामला उत्तर प्रदेश में महिलाओं और दलितों के खिलाफ बढ़ते अपराधों की पृष्ठभूमि में आया है, जहां हाल ही में रामपुर में एक अन्य मूक-बधिर दलित लड़की के साथ बलात्कार की घटना ने सियासी विवाद खड़ा किया था। एनएचआरसी की रिपोर्ट से मामले में नई गति मिल सकती है, लेकिन पीड़िता का परिवार न्याय और मुआवजे की प्रतीक्षा में है। पुलिस जांच जारी है, और आयोग के निर्देशों के बाद राज्य सरकार पर दबाव बढ़ गया है।