नई दिल्ली, 3 अप्रैल 2025, गुरुवार। वक्फ, यानी इस्लामी परंपरा में दान की गई संपत्ति, सदियों से समाज के लिए एक मजबूत आधार रही है। यह शिक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका और सामाजिक कल्याण के लिए आर्थिक सहायता का स्रोत रही है। लेकिन एक कड़वा सच यह भी है कि इसके फायदे अक्सर महिलाओं तक नहीं पहुंच पाए। उन्हें न तो संसाधनों में हिस्सेदारी मिली और न ही निर्णय लेने की प्रक्रिया में आवाज। अब वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 के जरिए यह तस्वीर बदलने की कोशिश हो रही है। यह विधेयक मुस्लिम महिलाओं को उनका हक दिलाने, उन्हें आर्थिक सुरक्षा देने और वक्फ प्रशासन में उनकी भागीदारी बढ़ाने का वादा करता है। आइए, इस बदलाव की कहानी को करीब से देखें।
विरासत में हक, अब सिर्फ कागजों तक सीमित नहीं
इस विधेयक का एक बड़ा कदम है पारिवारिक वक्फ (वक्फ-अलल-औलाद) में महिलाओं के उत्तराधिकार के अधिकारों की रक्षा। पहले, संपत्ति को वक्फ में देने के दौरान अक्सर महिलाओं के हिस्से की अनदेखी हो जाती थी। अब नया नियम कहता है कि वक्फ तभी बनाया जा सकता है, जब यह पक्का हो जाए कि महिला उत्तराधिकारियों को उनका पूरा हक मिल चुका है। धारा 3ए(2) के तहत यह प्रावधान पुरानी शिकायतों को दूर करता है, जो महिलाओं को उनके जायज हिस्से से वंचित रखती थीं। यह एक ऐसा बदलाव है जो न सिर्फ कानूनी, बल्कि सामाजिक न्याय की दिशा में भी एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।
विधवाओं और तलाकशुदा महिलाओं के लिए नई उम्मीद
वक्फ-अलल-औलाद का दायरा अब पहले से कहीं ज्यादा व्यापक हो गया है। विधेयक में धारा 3(आर)(iv) के तहत विधवाओं, तलाकशुदा महिलाओं और अनाथों के लिए वित्तीय सहायता का प्रावधान जोड़ा गया है। वक्फ की आय अब इन कमजोर तबकों के कल्याण के लिए इस्तेमाल होगी। यह कदम न सिर्फ आर्थिक सुरक्षा देगा, बल्कि सामाजिक स्थिरता को भी मजबूत करेगा। यह इस्लामी कल्याण के सिद्धांतों को जेंडर जस्टिस के साथ जोड़ने की एक खूबसूरत मिसाल है।
फैसलों की मेज पर महिलाओं की कुर्सी
वक्फ प्रशासन में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाना इस विधेयक का एक और अहम पहलू है। राज्य वक्फ बोर्ड (धारा 14) और केंद्रीय वक्फ परिषद (धारा 9) में दो मुस्लिम महिला सदस्यों को शामिल करने का नियम पहले से था, जिसे अब और मजबूत किया गया है। यह सिर्फ नाम का बदलाव नहीं, बल्कि एक ऐसा कदम है जो महिलाओं को वक्फ के संसाधनों के बंटवारे और प्रबंधन में अपनी राय रखने का मौका देगा। इसका असर नीतियों पर भी पड़ेगा, खासकर उन क्षेत्रों में जो महिलाओं के लिए सबसे जरूरी हैं- जैसे मुस्लिम लड़कियों के लिए स्कॉलरशिप, मातृत्व और स्वास्थ्य सेवाएं, महिला उद्यमियों के लिए स्किल ट्रेनिंग और माइक्रोफाइनेंस, और कानूनी मदद।
आर्थिक आजादी की राह
यह विधेयक सिर्फ अधिकारों की बात नहीं करता, बल्कि महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की राह भी दिखाता है। व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र और स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) की स्थापना से महिलाएं स्वास्थ्य, उद्यमिता और फैशन डिजाइन जैसे क्षेत्रों में हुनर सीख सकेंगी। यह न सिर्फ उनकी रोजगार क्षमता बढ़ाएगा, बल्कि उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होने का आत्मविश्वास भी देगा।
डिजिटल क्रांति से पारदर्शिता
वक्फ प्रबंधन में डिजिटलीकरण की शुरुआत इस विधेयक का एक और आकर्षक पहलू है। वक्फ रिकॉर्ड को डिजिटल करने से भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन पर लगाम लगेगी। यह सुनिश्चित करेगा कि फंड सही जगह पहुंचे, खासकर महिलाओं के लिए तय संसाधनों का सही इस्तेमाल हो। पारदर्शिता का यह कदम महिलाओं के लिए इसलिए भी खास है, क्योंकि यह उनके हक को सुरक्षित रखने की गारंटी देता है।
एक नई शुरुआत
वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 सिर्फ एक कानून नहीं, बल्कि एक सपना है- एक ऐसे समाज का, जहां वक्फ अपने असली मकसद, यानी कल्याण और न्याय को पूरा करे। यह विधेयक महिलाओं को उनके हक, आर्थिक सहारा, शासन में हिस्सेदारी और आत्मनिर्भरता का रास्ता देता है। जैसे-जैसे ये बदलाव जमीन पर उतरेंगे, मुस्लिम महिलाओं के लिए नए दरवाजे खुलेंगे। वक्फ, जो कभी हाशिये पर खड़ी महिलाओं की अनदेखी करता था, अब उनकी प्रगति और सशक्तिकरण का जरिया बनेगा। यह एक ऐसी कहानी है, जो इतिहास की गलतियों को सुधारते हुए भविष्य को बेहतर बनाने का वादा करती है।