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Monday, June 30, 2025

मायावती सरकार में स्मारक घोटाले के चार बड़े तत्कालीन अधिकारी गिरफ्तार

मायावती सरकार में लखनऊ और नोएडा में बने स्मारक घोटाले में उत्तर प्रदेश सतर्कता अधिष्ठान( विजिलेंस) की लखनऊ टीम ने राजकीय निर्माण निगम के चार बड़े तत्कालीन अधिकारियों को गिरफ्तार किया है। वहीं विजिलेंस टीम राजकीय निर्माण निगम, एलडीए समेत कई अन्य अधिकारियों पर भी शिकंजा कस सकती है। इस मामले में गोमती नगर थाने में एफआईआर दर्ज की गई थी।

2007 से 2011 में मायावती शासनकाल के दौरान लखनऊ और नोएडा में बने भव्य स्मारक में हुए घोटाले की जांच यूपी विजिलेंस की लखनऊ टीम कर रही थी। इसी जांच के क्रम में शुक्रवार को विजिलेंस टीम ने वित्तीय परामर्शदाता विमलकांत मुद्गल, महाप्रबंधक तकनीकी एसके त्यागी, महाप्रबंधक सोडिक कृष्ण कुमार,इकाई प्रभारी कामेश्वर शर्मा को गिरफ्तार किया है। इन चारों से टीम पूछताछ कर रही है। इस मामले आज कोर्ट में पेशी भी होनी है। 

करोड़ों रुपये का हुआ था घोटाला

लखनऊ और नोएडा में बने स्मारकों में लगे पत्थरों के ऊंचे दाम वसूले गए थे। मिर्जापुर में एक साथ 29 मशीनें लगाई गई और कागजों में दिखाया गया था कि पत्थरों को राजस्थान ले जाकर वहां कटिंग कराई गई, फिर तराशा गया। ढुलाई के नाम पर करोड़ों रुपये का वारा न्यारा किया गया था। कंसोर्टियम बनाया गया जो कि खनन नियमों के खिलाफ था। 840 रुपए प्रति घनफुट के हिसाब से ज्यादा वसूली की गई। मंत्रियों, अफसरों और इंजीनियरों ने अपने चहेतों को मनमाने ढंग से पत्थर सप्लाई का ठेका दिया और मोटा कमीशन लिया। जांच में यह बात भी सामने आयी थी कि मनमाने ढंग से अफसरों को दाम तय करने के लिए अधिकृत कर दिया गया था। ऊंचे दाम तय करने के बाद पट्टे देना शुरू कर दिया गया था। सलाहकार के भाई की फर्म को मनमाने ढंग से करोड़ों रुपये का काम दे दिया गया था। 

2014 में शुरू हुई जांच

वर्ष 2014 में तत्कालीन सपा सरकार ने मामले की जांच यूपी पुलिस के सतर्कता अधिष्ठान (विजिलेंस) को सौंपी थी। ऐसा तब हुआ जबकि लोकायुक्त ने इस घोटाले की सीबीआई जांच की सिफारिश की थी।

लखनऊ के गोमती नगर थाने में मुकदमा दर्ज करने के बाद विजिलेंस पांच वर्षों बाद भी आरोपियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर पाया है। अभियोजन की स्वीकृति के लिए प्रकरण अभी भी शासन स्तर पर लंबित है। वर्ष 2007-12 के बीच बसपा के शासनकाल में कई पार्कों और मूर्तियों का निर्माण कराया गया। इसी दौरान लखनऊ और नोएडा में दो ऐसे बड़े पार्क बनवाए गए जिनमें तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती, बसपा संस्थापक कांशीराम व भारत रत्न बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर के अलावा पार्टी के चुनाव चिह्न हाथी की सैकड़ों मूर्तियां लगवाई गईं। उस समय मायावती सरकार के इस फैसले की विपक्षी नेताओं ने व्यापक आलोचना की थी। 

लोकायुक्त जस्टिस एनके मेहरोत्रा की जांच रिपोर्ट के बाद चर्चा में आए इस घोटाले पर पूरी सपा सरकार के समय पर्दा पड़ा रहा। लोकायुक्त ने स्मारकों के निर्माण में 1400 करोड़ के घोटाले की आशंका जताते हुए इस मामले की विस्तृत जांच सीबीआई या एसआईटी से कराने की संस्तुति की थी। हालांकि अखिलेश सरकार ने दोनों ही संस्थाओं को जांच न देकर विजिलेंस को जांच सौंप दी। विजिलेंस की जांच इतनी धीमी गति से चलती रही कि चार वर्षों में इसमें कोई प्रगति नहीं हुई। इसी बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट के दखल के बाद विजिलेंस ने जांच पूरी की और अभियोजन की स्वीकृति के लिए प्रकरण शासन को भेजा।  

newsaddaindia6
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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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