नई दिल्ली, 17 जुलाई 2025: लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ कराने की केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना को सुप्रीम कोर्ट के चार पूर्व मुख्य न्यायाधीशों का बड़ा समर्थन मिला है। 129वें संविधान संशोधन विधेयक पर संसदीय समिति के सामने पेश हुए पूर्व चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जेएस खेहर, यूयू ललित और रंजन गोगोई ने इस बिल को संवैधानिक रूप से वैध करार दिया है। इस ऐतिहासिक समर्थन ने विपक्षी दलों की आपत्तियों को कमजोर कर दिया है, जो इस प्रस्ताव को लोकतंत्र के खिलाफ बता रहे थे।
भाजपा सांसद पीपी चौधरी की अध्यक्षता वाली संयुक्त संसदीय समिति के सामने चारों पूर्व न्यायाधीशों ने एक स्वर में कहा कि ‘एक देश, एक चुनाव’ का विचार संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं करता। पूर्व चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने जोर देकर कहा कि यह विधेयक संविधान की कसौटी पर खरा उतरता है। अन्य तीनों न्यायाधीशों ने भी इसकी संवैधानिकता पर मुहर लगाई, जिससे सरकार का पक्ष मजबूत हो गया है।
हालांकि, चारों पूर्व न्यायाधीशों ने विधेयक के एक प्रावधान पर सवाल उठाए। धारा 82ए(5) के तहत चुनाव आयोग को यह अधिकार दिया गया है कि वह किसी राज्य में प्रतिकूल परिस्थितियों के आधार पर चुनाव टाल सकता है। पूर्व चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने सुझाव दिया कि इस फैसले में केवल चुनाव आयोग को ही नहीं, बल्कि केंद्र सरकार और संसद को भी शामिल करना चाहिए। इसके अलावा, विधेयक में कुछ अस्पष्टताओं को दूर करने के लिए भी सुझाव दिए गए।
विपक्षी दलों ने इस बिल को शुरू में संविधान विरोधी करार दिया था, लेकिन चार पूर्व मुख्य न्यायाधीशों की राय ने उनकी राह मुश्किल कर दी है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह बिल कानून बनता है और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाती है, तो इन पूर्व न्यायाधीशों की राय सरकार के लिए मजबूत आधार प्रदान करेगी।
हालांकि, यह सवाल अब भी चर्चा में है कि क्या ‘एक देश, एक चुनाव’ लोकतंत्र के लिए फायदेमंद होगा? यह एक राजनीतिक सवाल है, जिसका जवाब अंततः जनता को देना है। फिलहाल, सरकार के इस कदम ने देश में एक नई बहस को जन्म दे दिया है।