वाराणसी, 28 मार्च 2025, शुक्रवार। भारतीय संस्कृति में गाय को माता का दर्जा दिया गया है। उसका दूध, गोबर और गोशाला जीवन का अभिन्न हिस्सा माने जाते हैं। लेकिन हाल ही में समाजवादी पार्टी के प्रमुख और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के एक बयान ने संत समाज से लेकर राजनीतिक गलियारों तक हलचल मचा दी है। अखिलेश ने गोशाला को दुर्गंध और इत्र को खुशबू से जोड़ते हुए जो कहा, उसने उनके “यदुवंशी” होने पर ही सवाल खड़े कर दिए।
अखिलेश ने क्या कहा?
कन्नौज में एक सभा के दौरान अखिलेश यादव ने बीजेपी पर तंज कसते हुए कहा कि समाजवादी लोग विकास और भाईचारा चाहते हैं। उन्होंने कन्नौज को भाईचारे की सुगंध से जोड़ा और बीजेपी पर नफरत की “दुर्गंध” फैलाने का आरोप लगाया। इसी क्रम में उन्होंने कहा, “जो लोग दुर्गंध पसंद करते हैं, वे गोशालाएं बना रहे हैं। हम तो सुगंध पसंद करते हैं, इसलिए कन्नौज में इत्र पार्क बनाया।” अखिलेश यहीं नहीं रुके, उन्होंने बीजेपी पर सांड पकड़ने के नाम पर भी पैसा खाने का इल्जाम लगा दिया। उनका यह बयान बीजेपी और संत समाज को नागवार गुजरा।
संत समाज का गुस्सा
अखिल भारतीय संत समिति के महासचिव स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने इस बयान पर कड़ा एतराज जताया। एक वीडियो संदेश में उन्होंने कहा, “जिस यदुवंशी को गाय के दूध, गोबर और गोशाला से दुर्गंध आए, उसका विनाश निश्चित है। अखिलेश यादव को अपना डीएनए टेस्ट कराना चाहिए।” स्वामी ने अखिलेश के इत्र वाले बयान पर भी निशाना साधा। उन्होंने तंज कसते हुए कहा, “इत्र तो वे मुसलमान लगाते थे, जो महीनों नहाते नहीं थे और जिनके शरीर से बदबू आती थी। इसे छिपाने के लिए वे कानों और बांहों पर इत्र लगाते थे।” स्वामी का कहना था कि अगर कोई यदुवंशी गोशाला को दुर्गंध और इत्र को सुगंध से जोड़े, तो उसकी पहचान संदिग्ध है।
विवाद की जड़
अखिलेश का बयान दरअसल बीजेपी की नीतियों पर हमला था, लेकिन गोशाला और गाय जैसे संवेदनशील मुद्दे को इसमें घसीटने से मामला तूल पकड़ गया। यदुवंशियों का गाय से गहरा नाता रहा है, खासकर भगवान श्रीकृष्ण के संदर्भ में, जो खुद यदुवंशी थे और गायों के संरक्षक माने जाते हैं। ऐसे में अखिलेश का यह कहना कि गोशाला से दुर्गंध आती है, संत समाज और बीजेपी कार्यकर्ताओं को उनकी परंपरा और संस्कृति पर हमला लगा।
क्या है असली मसला?
यह पूरा विवाद केवल गोशाला या इत्र की बात नहीं है। इसके पीछे राजनीति और संस्कृति का टकराव भी है। अखिलेश जहां कन्नौज को इत्र की सुगंध से जोड़कर अपनी उपलब्धि गिनाना चाहते थे, वहीं बीजेपी और संत समाज इसे हिंदू आस्था और गाय के सम्मान से जोड़कर देख रहे हैं। स्वामी जितेंद्रानंद का बयान इस बात का संकेत है कि यह मुद्दा अब व्यक्तिगत हमले और वैचारिक लड़ाई की शक्ल ले सकता है।
अखिलेश के इस बयान ने एक बार फिर साबित कर दिया कि भारत में राजनीति और भावनाएं कितनी गहरे जुड़ी हैं। अब देखना यह है कि यह विवाद कहां तक जाता है और क्या अखिलेश इसका कोई जवाब देते हैं। लेकिन इतना तय है कि गोशाला और इत्र की यह जंग अभी थमने वाली नहीं है।