कावेरी नदी जल-बंटवारे के मुद्दे पर, पूर्व प्रधान मंत्री और जद (एस) अध्यक्ष एचडी देवेगौड़ा का बयान सामने आया है। उन्होंने न्यूज एजेंसी को बताया कि वह सदन में पहले ही बता चुके हैं कि पांच ऐसे सदस्यों को भेजें जो तमिलनाडु या कर्नाटक से नहीं हैं।
इन सभी की एक समिति बनानी चाहिए और मौके पर भेजा जाए, ताकि वहां की परिस्थितियां, फसल और स्थिति का अवलोकन हो। इसके बाद रिपोर्ट सौंपी जाए ताकि उसपर अमल किया जा सके, लेकिन अध्यक्ष इस चीज को नकार दिया। इसके अलावा सीट बंटवारे के मुद्दे पर पूर्व पीएम देवेगौड़ा ने बताया कि यह मामला उनका नहीं बल्कि कुमारस्वामी का है, जो कि गृह मंत्री से मुलाकात करेंगे और उन्हीं से चर्चा करेंगे।
सुप्रीम कोर्ट नहीं करेगा हस्तक्षेप
वहीं सुप्रीम कोर्ट ने कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है। साथ ही प्राधिकरण को हर 15 दिन में बैठक करने का निर्देश दिया है। दरअसल, आदेश के तहत कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण ने कर्नाटक को आदेश दिया था कि वह तमिलनाडु को 5000 क्युसेक पानी जारी करे।
प्राधिकरण ने 18 सितंबर को यह आदेश दिया था और आदेश के तहत कर्नाटक को 28 सितंबर तक तमिलनाडु को पानी देना था। हालांकि सूखे जैसी स्थिति का सामना कर रहे कर्नाटक ने इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, जहां से अब कर्नाटक सरकार को झटका लगा है।
क्या है कावेरी जल विवाद
कावेरी नदी को ‘पोन्नी’ कहा जाता है। यह दक्षिण पश्चिम कर्नाटक के पश्चिमी घाट की ब्रह्मगिरी पहाड़ी से निकलती है। यह नदी कर्नाटक से तमिलनाडु राज्यों में होकर पुडुचेरी से होते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
जल विवाद आजादी से पहले के दो समझौतों 1892 और 1924 के चलते है। इन समझौतों के तहत किसी भी निर्माण परियोजना, जैसे कावेरी नदी पर जलाशय के निर्माण के लिए ऊपरी तटवर्ती राज्य को निचले तटवर्ती राज्य की अनुमति लेना जरूरी है।
1990 में जल विवाद न्यायाधिकरण की हुई थी स्थापना
साल 1974 में कर्नाटक ने तमिलनाडु की सहमति के बिना पानी मोड़ना शुरू कर दिया, जिससे दोनों राज्यों में पानी को लेकर विवाद हो गया। इस मुद्दे को हल करने के लिए साल 1990 में कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण की स्थापना की गई।