कोलकाता, 19 जुलाई 2025: पश्चिम बंगाल के नदिया जिले की कल्याणी अदालत ने साइबर क्राइम के एक अभूतपूर्व मामले में शुक्रवार को नौ दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। यह देश में डिजिटल अरेस्ट के नाम पर ठगी के मामले में पहली बार इतनी कठोर सजा दी गई है, जो साइबर अपराधियों के लिए एक सख्त चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है। इन दोषियों ने रानाघाट के एक निवासी से ‘डिजिटल गिरफ्तारी’ की धमकी देकर एक करोड़ रुपये ठगे थे और देशभर में 108 लोगों से कुल 100 करोड़ रुपये की ठगी की थी।
मामले का विवरण
पिछले साल नवंबर 2024 में रानाघाट के एक 70 वर्षीय सेवानिवृत्त कृषि वैज्ञानिक ने कल्याणी साइबर क्राइम पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज की थी। शिकायतकर्ता, पार्थ कुमार, ने बताया कि साइबर ठगों ने खुद को सीबीआई और टीआरएआई (TRAI) के अधिकारी बताकर वीडियो कॉल के जरिए उन्हें डराया और धमकाया। ठगों ने दावा किया कि उनके नाम पर एक कार्गो में जाली पासपोर्ट, एटीएम कार्ड और प्रतिबंधित सामग्री पकड़ी गई है। इस बहाने उन्हें ‘डिजिटल अरेस्ट’ में रखकर 10 दिनों तक मानसिक दबाव में रखा गया और विभिन्न बैंक खातों में एक करोड़ रुपये ट्रांसफर करवाए गए। जब कॉलर का नंबर बंद हुआ, तब पीड़ित को ठगी का एहसास हुआ।
पुलिस जांच और गिरफ्तारी
शिकायत के आधार पर रानाघाट साइबर क्राइम पुलिस स्टेशन ने तत्काल जांच शुरू की। सीआईडी के आईजीपी अखिलेश कुमार चतुर्वेदी के नेतृत्व में गठित विशेष जांच दल ने डिजिटल साक्ष्यों, तकनीकी विश्लेषण और खुफिया जानकारी के आधार पर इस साइबर गैंग का पर्दाफाश किया। जांच में पता चला कि यह गिरोह दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों, विशेष रूप से कंबोडिया और म्यांमार, से संचालित हो रहा था, हालांकि इसका मुख्य नेटवर्क भारत में ही सक्रिय था। कॉल्स कंबोडिया से रीरूट किए जा रहे थे, और ठगों को हिंदी व बंगाली भाषा की अच्छी जानकारी थी।
पुलिस ने महाराष्ट्र, हरियाणा, गुजरात और राजस्थान से नौ आरोपियों को गिरफ्तार किया, जिनमें एक महिला, पठान सुमैया बानो, भी शामिल है। गिरफ्तार अन्य आरोपियों में शाहिद अली शेख, शाहरुख रफीक शेख, जतिन अनूप लाडवाल, रोहित सिंह, रूपेश यादव, साहिल सिंह और अशोक फलदू शामिल हैं। छापेमारी के दौरान पुलिस ने बड़ी संख्या में बैंक पासबुक, एटीएम कार्ड, सिम कार्ड और मोबाइल फोन जब्त किए। बैंक खातों और मोबाइल नंबरों के विश्लेषण से इस पूरे नेटवर्क का खुलासा हुआ।
कोर्ट की कार्यवाही और फैसला
कल्याणी के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सुबर्थी सरकार ने इस मामले की सुनवाई की। पांच महीने तक चले मुकदमे में 29 गवाहों ने बयान दिए, जिनमें मुंबई के अंधेरी पुलिस स्टेशन के SHO और एसबीआई, पीएनबी, केनरा बैंक, बंधन बैंक, फेडरल बैंक और उज्जीवन स्मॉल फाइनेंस बैंक के शाखा प्रबंधक शामिल थे। पुलिस ने 2600 पन्नों की विस्तृत चार्जशीट दाखिल की थी, जिसमें डिजिटल और वैज्ञानिक साक्ष्यों के आधार पर अपराध को सिद्ध किया गया।
गुरुवार को नौ आरोपियों को दोषी ठहराए जाने के बाद, शुक्रवार को कोर्ट ने भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 338 (दस्तावेजों की जालसाजी), 308(2) (उगाही), 319(2) (प्रतिरूपण द्वारा धोखा), 318(4) (धोखाधड़ी) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT Act) की धारा 66C और 66D सहित कुल 11 धाराओं के तहत सभी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। विशेष लोक अभियोजक बिवास चटर्जी ने कोर्ट में तर्क दिया कि इस तरह के अपराध ‘आर्थिक आतंकवाद’ से कम नहीं हैं, क्योंकि ये लोगों की मेहनत की कमाई को पलभर में उड़ा देते हैं। कोर्ट ने इस तर्क से सहमति जताते हुए सख्त सजा का फैसला सुनाया।
व्यापक साइबर नेटवर्क
जांच में खुलासा हुआ कि यह गैंग देशभर में 108 लोगों से 100 करोड़ रुपये की ठगी कर चुका है। ठगों ने फर्जी जांच के नाम पर वीडियो कॉल के जरिए पीड़ितों को डराया और धमकाया। अधिकांश राशि को क्रिप्टोकरेंसी और म्यूल खातों में ट्रांसफर किया गया, जिससे पुलिस ने कुछ राशि को फ्रीज करने में सफलता हासिल की। यह गैंग संगठित तरीके से काम करता था और विभिन्न राज्यों में फैले बैंक खातों का इस्तेमाल करता था।
सजा का महत्व
यह फैसला साइबर अपराध के खिलाफ भारत की लड़ाई में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। कल्याणी कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले को साइबर ठगों के लिए एक कड़ा संदेश माना जा रहा है। गृह मंत्रालय के अनुसार, इस साल डिजिटल अरेस्ट से संबंधित 6,000 से अधिक शिकायतें दर्ज हुई हैं, जिनमें करोड़ों रुपये की ठगी हुई है। इस सजा से न केवल पीड़ितों को न्याय मिला है, बल्कि यह अन्य साइबर अपराधियों के लिए भी एक चेतावनी है कि डिजिटल ठगी के गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
बचाव पक्ष ने संकेत दिया है कि वे इस फैसले को कलकत्ता हाई कोर्ट में चुनौती देंगे। दूसरी ओर, रानाघाट पुलिस और कल्याणी साइबर क्राइम पुलिस स्टेशन की इस त्वरित कार्रवाई और प्रभावी पैरवी की सराहना हो रही है। यह मामला देश में डिजिटल अरेस्ट के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने और साइबर अपराधों पर नकेल कसने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।