हसमुख उवाच
कहा गया है कि यह संसार दुखों का सागर है, परंतु इस युग में जो भी मूर्खों के स्वर्ग में वास करता है उसे संसार के दुख नहीं सताते हैं, क्योंकि मूर्खों के स्वर्ग में रहने वाला आसपास की घटनाऐं से निर्विकार रहता है, आनंदपूर्वक उसकी जीवन यात्रा चलती रहती है!
मूर्खों के स्वर्ग में वास करने वाला मूर्ख उस कबूतर की तरह है जिसके पिंजरे के सभी साथी कबूतर एक एक करके बहेलिए द्वारा मारने के लिए ले जाते रहते हैं और वह कबूतर हर बार यही सोचता और मानता रहता है कि वह बच गया, उसे कुछ नहीं हो सकता, वह ऐसे समय आंखे बंद कर लेता है, उस मूर्ख कबूतर का अपना स्वर्ग होता है, वह उसी स्वर्ग में रह कर सुख में डूबा रहता है!
अपने स्वर्ग में वास करने के कारण हर मूर्ख में एक गहरा आत्मविश्वास होता है, हो सकता है यथार्थवादी का आत्मविश्वास कभी टूट जाय लेकिन मूर्ख का आत्मविश्वास अडिग होता है, किसी के भी तोड़े नहीं टूटता इसीलिए मूर्ख जब किसी बात पर अड़ जाता है तो वहां से टस से मस नहीं होता, अर्थात ‘पंचों का फैसला सर माथे पर पतनाला वहीं बहेगा ‘
आलू से सोना बनाना मूर्ख की कल्पना हो सकती है, लेकिन मूर्ख इसका दावा करते हुए बड़े आत्मविश्वास से कहेगा कि “इधर से आलू डालो, उधर से सोना निकालो ‘ हमारे देश में मूर्खों के स्वर्ग में वास करने की बड़ी दीर्घ परंपरा रही है, सन १८५७से सन१९३७ तक देश से टूट कर सात देश बन गये और हमारे हिंदू भाई मूर्खों के स्वर्ग में ही वास करते रहे, यह सोच ही नहीं सके कि आखिर ऐसा क्यो हो गया? बस,अपनी संस्कृति और धर्म की महानता का बखान करते रहे लेकिन मूर्खों के स्वर्ग का त्याग नहीं कर सके,इसीलिए पतन की ही परिभाषा सीखते चले गए, ऐसै में अपनी संस्कृति और धर्म की रक्षा क्या करते!
मूर्खों का स्वर्ग बड़ा रमणीक है, उसमें विचरण करने वाला उसे छोड़ना नहीं चाहता है, हिंदू तो इसमे सबसे आगे है, उसका धर्म कीर्तन, भजन, भंडारे तक ही सीमित हो गया है, मूर्खों के स्वर्ग में रहते वह समझ ही नहीं पाता कि देश के नौ राज्यों में वह कैसे अल्पसंखयक हो गया? मूर्खों का स्वर्ग इतना मादक है कि किसी हिंदू का ध्यान इस तथ्य की ओर जा ही नहीं पाता कि एक हजार लड़कियां प्रतिदिन लव जिहाद का शिकार हो रही है, दस हजार लोगों का धर्मांतरण हो रहा है, कशमीर फाइल्स, कनवर्जन, ७२हूरें आदि जैसी फिल्में वह देखता तो है, परंतु देखने के बाद वह पुन:मूर्खों के स्वर्ग में प्रवेश करके आंनद मग्न हो जाता है!
वर्तमान दौर में भी हर राजनीतिक दल खासतौर से विपक्षी नेता मूर्खों के स्वर्ग में विचरण करता नजर आता है, उसे अपना और अपनी पार्टी का कमजोर जनाधार तो दीखता नही, लेकिन वह देश का प्रधानमंत्री अवश्य बनना चाहता है, मूर्खों के स्वर्ग में रहने का यह लक्षण आजकल खूब दिखाई देता है, मूर्खों के स्वर्ग में विचरण करने वाला नेता इसीलिए दलबदलू बन जाता है यह सोच कर दूसरे दल वाले मुझे खुशी से लपकेंगे और मुझे चुनाव लड़ने के लिए टिकट मिल जायेगा, सीटों के आदान प्रदान, बंटवारो के जुगाड़, तालमेल,सभी के समझौते मूर्खों के स्वर्ग में रह कर किए जाते हैं, न्यूनतम साझा कार्यक्रम भी बनाए जाते हैं, जिसका मतलब होता है कि जनता के लिए न्यूनतम और अपने लिए साझे का जुगाड़! मतलब कि आज राजनितिज्ञ भी मूर्खों के स्वर्ग में बुकिंग किए हुए हैं! लव जिहाद की शिकार हुई लड़कियां भी मरने से पहले मूर्खों के स्वर्ग में निवास करती है, इसीलिए वह कहती हैं कि ‘मेरा अब्दुल ऐसा नही है’
देश में मूर्ख चेतना के विकास में पाश्चात्य शिक्षा का बड़ा योगदान है, मूर्ख चेतना जब अधिक विकसित हो जाती है तो हर व्यक्ति को मूर्खों के स्वर्ग में ले जाती है और वहां सैर कराने लगती है, नैतिकता, संस्कृति, धर्म, शरम ,सत्कर्म आदि का व्यक्ति में लोप हो जाता है, वह प्रशिक्षित शवान की तरह पशिचम का अनुकरण करने लगता है, जो नही खाना चाहिए वह खाता है, जो नही सोचना चाहिए वह सोचता है, ऊंचा सोचता है मगर गंदा सोचता है, अपने गैर नजर आते हैं, गैर अपने नजर आते हैं, शत्रु देशो से मित्रता के भाव जागते है, और मित्र देशो की कमिंया निकाली जाती हैं, यह सब फलश्रुतियां मूर्खों के स्वर्ग से प्राप्त होती हैं इसीलिए मूर्खों के स्वर्ग में रहने वाला व्यक्ति अपने को बुद्धि मान समझता है, चिंतक और क्रांति कारी समझता है, मौलिकता से उसका तलाक हो चुका होता है।मूर्खों के स्वर्ग में रहने या सोने वाले को जगाना बहुत कठिन है, क्योंकि वह जागते हुए ही सोता है जागते को जगाना बहुत कठिन काम है, फिर भी जगाने वाले जगाने में लगे हुए हैं, देखते हैं कि मूर्खों के स्वर्ग में रहने वालों की वापसी कब होती है, हम तो इसी की प्रतीक्षा में हैं!