जबलपुर, 2 जुलाई 2025। समाज में बुजुर्गों की अनदेखी कोई नई बात नहीं, लेकिन अब कानून उनके साथ है! अगर बच्चे माता-पिता की देखभाल में लापरवाही बरत रहे हैं, तो बुजुर्ग अब चुप नहीं रहें। वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम के तहत वे अपने हक के लिए आवाज उठा सकते हैं। कानून माता-पिता को बच्चों से भरण-पोषण का अधिकार देता है, और इसके लिए वे एसडीएम न्यायालय में प्रकरण दर्ज करा सकते हैं।
कानून देता है मजबूत सहारा
वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण अधिनियम की धारा 24 के तहत माता-पिता एसडीएम न्यायालय में आवेदन देकर अपने बच्चों से भरण-पोषण की मांग कर सकते हैं। न्यायालय बच्चों को अधिकतम 10,000 रुपये तक मासिक भरण-पोषण देने का आदेश दे सकता है। इतना ही नहीं, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण बुजुर्गों को निःशुल्क कानूनी सहायता भी प्रदान करता है, ताकि वे बिना किसी आर्थिक बोझ के अपने अधिकार हासिल कर सकें।
आदेश न मानने की सजा
यदि बच्चे न्यायालय के आदेश के बावजूद भरण-पोषण की राशि नहीं देते, तो उन्हें 30 दिन की जेल हो सकती है। इसके अलावा, अगर समय के साथ महंगाई बढ़ती है या माता-पिता की जरूरतें बदलती हैं, तो वे कलेक्टर के समक्ष आवेदन देकर भरण-पोषण की राशि बढ़वाने की मांग भी कर सकते हैं।
वृद्धावस्था पेंशन: आर्थिक सहारा
कानून सिर्फ बच्चों से भरण-पोषण तक सीमित नहीं है। आर्थिक रूप से कमजोर बुजुर्गों के लिए वृद्धावस्था पेंशन योजना भी है, जिसके तहत 600 रुपये मासिक पेंशन का प्रावधान है। इसके लिए बुजुर्गों को नगर निगम में आवेदन करना होगा।
धारा 144: माता-पिता का हथियार
भारतीय न्याय संहिता की धारा 144 के तहत माता-पिता ज अब जिला न्यायालय में भी प्रकरण दर्ज कर सकते हैं। न्यायालय बच्चे की आय और जिम्मेदारियों को देखते हुए भरण-पोषण की राशि तय करता है। अगर बच्चे की आर्थिक स्थिति में सुधार होता है, तो धारा 127 के तहत माता-पिता भरण-पोषण की राशि में बदलाव की मांग भी कर सकते हैं।
बुजुर्गों को सशक्त बनाता कानून
कानून ने बुजुर्गों को न सिर्फ आर्थिक सहायता का अधिकार दिया है, बल्कि उनकी गरिमा और सम्मान की रक्षा का भी प्रावधान किया है। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के एक अधिकारी ने बताया, “कई बुजुर्ग जानकारी के अभाव में अपने अधिकारों से वंचित रह जाते हैं। हमारा प्रयास है कि ज्यादा से ज्यादा बुजुर्गों तक यह जानकारी पहुंचे और वे अपने हक के लिए आगे आएं।”
अब समय है कि बुजुर्ग अपनी आवाज बुलंद करें और कानून का सहारा लेकर अपने अधिकारों की रक्षा करें। अगर आप या आपके कोई परिचित इस स्थिति से जूझ रहे हैं, तो तुरंत एसडीएम न्यायालय या जिला विधिक सेवा प्राधिकरण से संपर्क करें। आखिर, जिन्होंने हमें जीवन दिया, उनका सम्मान हमारा कर्तव्य है!