- प्रशांत पोळ
आज से ठीक पचास वर्ष पूर्व, विश्व के सबसे बडे लोकतंत्र का गला घोटने की प्रक्रिया प्रारंभ हुई थी..!
आज ही के दिन, तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति श्री जगमोहन सिन्हा ने, चुनाव मे भ्रष्ट तरीके अपनाने के आरोप मे दोषी ठहराया था.
१९७१ का लोकसभा चुनाव, इंदिरा गांधी ने रायबरेली से लडा था. उनके विरोध मे चुनाव लडने वाले राजनारायण ने, इंदिराजी पर चुनाव मे भ्रष्ट तरीके अपनाने का आरोप लगाते हुए, उन्हे कोर्ट मे खींचा था. पचास वर्ष पहले, आज ही के दिन, न्यायमूर्ति खन्ना ने Representation of People Act 1951 की धारा 123 (7) के अंतर्गत, इंदिरा गांधी को Corrupt Practices के लिए दोषी माना था. इस भ्रष्ट आचरण के लिए इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द करते हुए उन पर, छह वर्ष के लिए चुनाव लडने के लिए अयोग्य घोषित किया था. इंदिरा गांधी पर सरकारी मशिनरी के दुरुपयोग का आरोप था, जो कोर्ट मे सिध्द हुआ था.
यह एक ऐतिहासिक निर्णय था. कानून के सामने सब समान हैं, यह न्यायमूर्ति खन्ना ने बडे साहस और निर्भिकता के साथ साबित किया था.
देश के प्रधानमंत्री का निर्वाचन, भ्रष्ट आचरण के कारण रद्द हुआ था. उन्हे किसी भी चुनाव लडने के लिए अयोग्य घोषित किया था. स्वाभाविकतः उन्हे प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र देना चाहिए था. कांग्रेस के किसी नेता को अल्पकाल के लिए, अस्थाई प्रधानमंत्री बनाकर, सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की प्रतिक्षा करनी थी. यही कानून की अपेक्षा थी. यही नैतिकता थी.
किंतू इंदिरा गांधी ने इसमे से कुछ भी नही किया. उन्होने ऐसा कदम उठाया कि भारत का लोकतंत्र कलंकित हो गया. डॉ बाबासाहब आंबेडकर व्दारा बनाए गए संविधान को तार-तार किया गया. संविधान को तोडा, मरोडा, झुकाया गया. लोकतंत्र का गला घोटा गया..!
उच्च न्यायालय ने चुनाव के लिए अयोग्य घोषित करने के बावजूद भी, इस्तिफा नही देने के इंदिराजी के निर्णय की परिणीती हुई आपात्काल लगाने मे..