अस्सी से मणिकर्णिका तक: जयाप्रदा की अस्थि विसर्जन यात्रा
वाराणसी। काशी का घाट, जहां गंगा की लहरें शांति और मोक्ष का संदेश देती हैं, बुधवार को एक मार्मिक दृश्य का गवाह बना। राज्यसभा की पूर्व सांसद और बॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री जयाप्रदा अपने बड़े भाई राजा बाबू के अस्थि कलश को लेकर यहां पहुंचीं। सफेद सूट और दुपट्टे में सादगी से लिपटी जयाप्रदा के चेहरे पर शोक और संयम का भाव साफ झलक रहा था। उनके साथ परिवार के कुछ सदस्य भी थे। अस्सी घाट पर वैदिक मंत्रों के बीच ब्राह्मणों ने पूजा-अर्चना की, और फिर जयाप्रदा नाव पर सवार होकर मणिकर्णिका घाट की ओर बढ़ गईं। वहां, गंगा की गोद में अपने भाई की अस्थियों को विसर्जित करते हुए उन्होंने अंतिम विदाई दी।
जयाप्रदा ने मीडिया से ज्यादा बात तो नहीं की, लेकिन इतना जरूर कहा, “काशी मोक्ष की नगरी है, इसलिए मैं अपने भाई की अस्थियां यहीं लेकर आई।” यह पल उनके लिए निजी दुख का था, लेकिन काशी की आध्यात्मिकता ने उन्हें सुकून देने का काम किया।

भाई राजा बाबू का निधन
जयाप्रदा के भाई राजा बाबू का हाल ही में हैदराबाद के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया था। जयाप्रदा ने सोशल मीडिया पर इस दुखद खबर को साझा करते हुए अपने भाई को याद किया। राजा बाबू एक अभिनेता और निर्माता थे। उनका अंतिम संस्कार 28 फरवरी को हैदराबाद में हुआ, लेकिन उनकी अस्थियों को गंगा में विसर्जन के लिए जयाप्रदा काशी पहुंचीं।

जया और राजा बाबू का अटूट रिश्ता
जयाप्रदा और राजा बाबू के बीच गहरा स्नेह था। दोनों न सिर्फ भाई-बहन थे, बल्कि एक-दूसरे के सहयोगी भी। रामपुर में राजनीतिक दिनों के दौरान दोनों साथ मिलकर जनता की समस्याएं सुनते और उनके समाधान के लिए प्रयास करते थे। राजा बाबू ने फिल्मी दुनिया में भी कदम रखा था। उन्होंने ‘सावन का महीना’ जैसी फिल्म का निर्माण किया, जिसमें जयाप्रदा और ऋषि कपूर मुख्य भूमिका में थे, लेकिन यह फिल्म कभी रिलीज नहीं हो सकी। इसके अलावा ‘शारदा’ और ‘प्रेम तपस्या’ जैसी फिल्मों में उन्होंने अभिनय भी किया, हालांकि उन्हें वहां सफलता नहीं मिली।

जयाप्रदा का फिल्मी और राजनीतिक सफर
जयाप्रदा का नाम 80 और 90 के दशक में बॉलीवुड की चोटी की अभिनेत्रियों में शुमार था। महज 13 साल की उम्र में उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा और अपने अभिनय से दर्शकों का दिल जीत लिया। कई सुपरहिट फिल्मों के बाद वे धीरे-धीरे सिनेमा से दूर हुईं और राजनीति में अपनी नई पारी शुरू की। फिल्मों से लेकर संसद तक का उनका सफर प्रेरणादायक रहा है।

आज भले ही जयाप्रदा सुर्खियों से दूर हों, लेकिन अपने भाई की अस्थियों को गंगा में विसर्जित करते हुए उनकी यह भावुक यात्रा उनके निजी जीवन की गहराई को दर्शाती है। काशी की पावन धरती पर उन्होंने अपने भाई को अंतिम विदाई दी, और शायद गंगा की लहरों में उन्हें अपने दुख को बहाने का एक रास्ता भी मिला।