नई दिल्ली, 4 अप्रैल 2025, शुक्रवार। हिंदी सिनेमा के सुनहरे दौर के एक चमकते सितारे, मनोज कुमार, जिन्हें प्यार से ‘भारत कुमार’ कहा जाता था, आज हमारे बीच नहीं रहे। 87 साल की उम्र में उन्होंने मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में अपनी अंतिम सांस ली। यह खबर बॉलीवुड और उनके प्रशंसकों के लिए एक गहरा सदमा है, क्योंकि उनके साथ एक युग का अंत हो गया।
देशभक्ति का पर्याय बने मनोज कुमार
मनोज कुमार का असली नाम हरिकिशन गिरि गोस्वामी था, लेकिन उन्होंने अपने अभिनय और फिल्म निर्माण के जरिए जो पहचान बनाई, वह ‘भारत कुमार’ के रूप में अमर हो गई। 1960 और 70 के दशक में उनकी फिल्मों ने न सिर्फ बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचाया, बल्कि देशभक्ति की भावना को जन-जन तक पहुंचाया। ‘उपकार’, ‘पूरब और पश्चिम’, ‘रोटी कपड़ा और मकान’ और ‘क्रांति’ जैसी फिल्मों में उन्होंने भारत की मिट्टी की सौंधी खुशबू और इसके मूल्यों को पर्दे पर जीवंत कर दिया। उनकी फिल्में केवल मनोरंजन नहीं थीं, बल्कि एक संदेश थीं, जो समाज को जोड़ने और जागरूक करने का काम करती थीं।
सादगी और संवेदनशीलता का संगम
मनोज कुमार की खासियत उनकी सादगी और संवेदनशीलता थी। चाहे वह ‘शहीद’ में भगत सिंह के बलिदान को दर्शाना हो या ‘उपकार’ में किसान की व्यथा को सामने लाना, उनकी हर भूमिका में गहराई और सच्चाई झलकती थी। उनके संवाद, उनकी आवाज और उनकी भाव-भंगिमाएं दर्शकों के दिलों में गहरे उतर जाती थीं। फिल्म ‘क्रांति’ में उनके द्वारा लिखे गए संवाद और अभिनय आज भी लोगों की जुबान पर हैं। उन्होंने न सिर्फ अभिनय किया, बल्कि निर्देशन और लेखन के क्षेत्र में भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया।
एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व
मनोज कुमार का जीवन और करियर आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने अपने काम से साबित किया कि कला केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज को दिशा देने का माध्यम भी हो सकती है। उनकी फिल्मों में देश के प्रति प्यार और सम्मान का जो जज्बा दिखता था, वह आज के दौर में भी प्रासंगिक है। दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित इस महान कलाकार ने अपने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन कभी हार नहीं मानी। बीते कुछ समय से वह बीमार थे, और आज सुबह उनका निधन हो गया।
इंडस्ट्री और प्रशंसकों का शोक
उनके निधन की खबर से फिल्म इंडस्ट्री में शोक की लहर दौड़ गई है। फिल्म निर्माता अशोक पंडित ने कहा, “मनोज कुमार हमारे लिए प्रेरणास्रोत थे। उनकी कमी को कभी भरा नहीं जा सकता।” सोशल मीडिया पर प्रशंसक उनकी यादों को ताजा कर रहे हैं, उनके गीतों और फिल्मों के दृश्यों को साझा कर श्रद्धांजलि दे रहे हैं।
अंतिम विदाई
मनोज कुमार भले ही आज हमारे बीच न हों, लेकिन उनकी फिल्में और उनका योगदान हमेशा जिंदा रहेगा। वह एक ऐसे कलाकार थे, जिन्होंने अपने अभिनय से भारत की आत्मा को छुआ। उनके प्रशंसक और हिंदी सिनेमा उन्हें हमेशा याद रखेगा। ऊँ शांति।
इस महान शख्सियत को नमन करते हुए हम कह सकते हैं कि ‘भारत कुमार’ का नाम और उनकी कहानियां आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मिसाल बनी रहेंगी।