भोपाल, 4 जुलाई 2025: मध्यप्रदेश में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) की नकली किताबों की बिक्री का मामला तेजी से उजागर हो रहा है। इंदौर, भोपाल और जबलपुर जैसे शहरों में यह धंधा जोरों पर है, जिसके चलते बच्चों और अभिभावकों को भारी नुकसान हो रहा है। शिक्षा विभाग ने इस मामले की जांच शुरू कर दी है, लेकिन नकली किताबों का यह कारोबार थमने का नाम नहीं ले रहा।
कौन छाप रहा है नकली किताबें?
जांच में सामने आया है कि नकली NCERT किताबों का यह रैकेट दिल्ली और हरियाणा के कुछ प्रिंटिंग प्रेस से संचालित हो रहा है। मई 2025 में दिल्ली पुलिस ने शाहदरा जिले में एक बड़े रैकेट का भंडाफोड़ किया, जहां 1.7 लाख नकली किताबें जब्त की गईं, जिनकी कीमत 2.4 करोड़ रुपये आंकी गई। इस मामले में बाप-बेटे की जोड़ी को गिरफ्तार किया गया, जो दिल्ली के हिरणकी इलाके से किताबें खरीदकर मध्यप्रदेश सहित अन्य राज्यों में सप्लाई कर रहे थे। जबलपुर में भी NCERT की टीम ने दो दुकानदारों, सेंट्रल बुक डिपो के तनिष्क चौरसिया और विनय पुस्तक सदन के मनोज गुप्ता के खिलाफ कॉपीराइट उल्लंघन और धोखाधड़ी के तहत FIR दर्ज की।
ये नकली किताबें NCERT के लोगो और कवर डिजाइन की हूबहू नकल करके तैयार की जाती हैं, लेकिन इनमें घटिया कागज और स्याही का उपयोग होता है। कुछ निजी प्रकाशक NCERT की किताबों की कमी का फायदा उठाकर इन्हें बाजार में उतार रहे हैं।
दुकानदारों को क्या फायदा?
नकली किताबें छापने और बेचने से दुकानदारों को मोटा मुनाफा हो रहा है। ये किताबें असली NCERT किताबों की तुलना में सस्ते में तैयार होती हैं, लेकिन बाजार में इन्हें वही कीमत (50-70 रुपये) पर बेचा जाता है। दुकानदारों को इन किताबों पर ज्यादा कमीशन मिलता है, जो उनकी आय का बड़ा हिस्सा बनता है। इंदौर में हुए खुलासे के अनुसार, नकली किताबों के विक्रेताओं को प्रति किताब अधिक मार्जिन मिलता है, जिसके कारण वे इन किताबों को बेचने में रुचि दिखाते हैं।
अभिभावकों और बच्चों को क्या नुकसान?
नकली किताबों का सबसे बड़ा नुकसान बच्चों की पढ़ाई और स्वास्थ्य पर पड़ रहा है:
- गलत और अधूरी सामग्री: नकली किताबों में तथ्यात्मक गलतियां और अधूरा सिलेबस होता है, जिससे छात्रों की पढ़ाई प्रभावित होती है। यह उनके बोर्ड और प्रतियोगी परीक्षाओं में प्रदर्शन को कमजोर करता है।
- स्वास्थ्य जोखिम: इन किताबों में घटिया कागज और स्याही का उपयोग होता है, जो बच्चों की आंखों और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
- आर्थिक बोझ: NCERT की किताबें सस्ती (50-70 रुपये) होती हैं, लेकिन उनकी अनुपलब्धता के कारण अभिभावकों को निजी प्रकाशकों की महंगी किताबें (200-250 रुपये) खरीदनी पड़ रही हैं।
- पाइरेसी को बढ़ावा: नकली किताबें खरीदने से ब्लैक मार्केट और कॉपीराइट उल्लंघन को बढ़ावा मिलता है, जिससे शिक्षा क्षेत्र की विश्वसनीयता कम होती है।
असली किताबों की पहचान कैसे करें?
NCERT ने नकली किताबों से बचने के लिए कुछ दिशानिर्देश जारी किए हैं:
- किताब के हर दूसरे पेज पर NCERT का वॉटरमार्क होना चाहिए। अगर यह गायब है, तो किताब नकली हो सकती है।
- किताब की बाइंडिंग और प्रिंट क्वालिटी चेक करें। नकली किताबों में पतला कागज और खराब प्रिंटिंग होती है।
- QR कोड स्कैन करें। नकली किताबों में QR कोड काम नहीं करता या गलत जानकारी देता है।
- NCERT की आधिकारिक वेबसाइट (ncert.nic.in) से किताबें डाउनलोड करें या अधिकृत विक्रेताओं से खरीदें।
शिक्षा विभाग का रवैया
मध्यप्रदेश के शिक्षा मंत्री राव उदय प्रताप सिंह ने मार्च 2025 में घोषणा की थी कि सभी स्कूलों में NCERT किताबें अनिवार्य होंगी। हालांकि, किताबों की कमी और नकली किताबों का कारोबार इस दिशा में बड़ी बाधा है। शिक्षा विभाग ने भोपाल में जांच शुरू की है, लेकिन अभी तक कोई ठोस कार्रवाई सामने नहीं आई है। NCERT ने भी चेतावनी जारी की है कि नकली किताबों की बिक्री पर कॉपीराइट उल्लंघन के तहत कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
NCERT की नकली किताबों का यह कारोबार न केवल शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहा है, बल्कि बच्चों के भविष्य और अभिभावकों की जेब पर भी भारी पड़ रहा है। शिक्षा विभाग और NCERT को इस रैकेट पर सख्ती से अंकुश लगाने और समय पर किताबें उपलब्ध कराने की जरूरत है, ताकि छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल सके। अभिभावकों को भी सतर्क रहकर केवल अधिकृत स्रोतों से किताबें खरीदनी चाहिए।