हसमुख उवाच
हमारे देश में रिश्वत की प्रतिष्ठा खूब फल फूल चुकी है। हर कोई अधिकारी, कर्मचारी इसका दीवाना हो गया है। रिश्वत नहीं तो सरकारी नौकरी का क्या फायदा? सरकारी नौकरी में चार चांद ही तब हैं जब रिश्वत का स्कोप हो! हिंदी के प्रसिद्ध लेखक प्रेमचंद ने लिखा है कि ‘सरकारी नौकरी में रिश्वत प्रेमिका की तरह है जो छिप छिप कर मिलती है। पत्नी किसी बारिश की तरह है यानी तनख्वाह, और रिश्वत रूपी प्रेमिका किसी ठंडी फुहार जैसी है! रिश्वत के पर्यायवाची शब्द भी खोज लिए गए हैं जैसे _’सुविधा शुल्क ‘या ‘ऊपरी इनकम ‘!किसी जमाने में रिश्वत को ‘दस्तूरी’कहकर पुकारा जाता था जो दस्तूरी से सरकारी विभागों में अब दस्तूर बन गयी है! रिश्वत किसी विटामिन से कम नहीं है, क्योंकि इसे खाकर हर अधिकारी कर्मचारी का चेहरा गुलाब की तरह खिल जाता है, स्वास्थ्य भी निखर उठता है, रिश्वत की लोकप्रियता इतनी है कि एक समय सासंदों को भी संसद में प्रश्न पूछने के लिये रिश्वत को गले लगाना पड़ा था, पुलिस विभाग में तो जब कोई थानेदार किसी थाने का चार्ज लेता है तो पुलिस कर्मी चर्चा करते है कि थानेदार बड़ा खुशनसीब है इसे फायदे वाला थाना मिल गया! अब तो ब्याह शादी में भी लड़के की इनकम से नही बल्कि ‘ऊपरी कमाई’से मूल्यांकन होता है। इन बातो को किसी जमाने में भले ही भ्रष्टाचार माना जाता रहा हो परंतु बदलती मानसिकता में रिश्वत खोरी ‘शिष्टाचार ‘ का स्थान ले चुकी है। रिश्वत से घर को खुशहाल बनाना ही कर्मयोग है, नैतिक कर्तव्य है!
सरकारी विभाग के एक सज्जन मुंह लटकाये बैठे थे, हमने हाल चाल पूछा तो गहरी सांस छोड़ते हुए बोले ‘ अरे, क्या हाल बताएं, गुजारा ही मुश्किल से करना पड़ रहा है! हमने पूछा ‘ क्या वेतन नहीं मिल रहा? वो बोले ‘ भला सूखे वेतन से क्या गुजारा करना,अपनी जेब से गुजारा करना पड़ता है, इधर उधर से कुछ आता ही नहीं! अर्थात ‘वेतन से गुजारा करना अपनी जेब से गुजारा करना है और रिश्वत की कमाई से निर्वाह करना ही सच्ची कमाई है!
रिश्वत खोर बहुत बड़ा बिकाऊ आईटम होता है। इन्हीं बिकाऊ आईटम की कृपा से देश के भीतर घुसपैठिए देश को धर्मशाला बना चुके हैं! रिश्वत एक चमत्कारिक प्रयोग है, इस प्रयोग से दोषी निर्दोष हो जाता है, और निर्दोष में सारे अवगुण और अपराध प्रवेश कर दिए जाते हैं, सच्चे मुकदमे खारिज कर दिए जाते हैं और झूठे मुकदमे जीवन की अंतिम बेला तक पीछा नही छोड़ते,रिश्वत की आदत ड्रग्स सेवन की तरह है, यदि यह न मिले तो इसका आदी विक्षिप्त हो जाता है, उसके लिए सरकारी नौकरी फिर किसी रेगिस्तान से कम लगती, इसलिए अब सरकारी विभागों में रिश्वत अनिवार्य कर्मकाण्ड है, रिश्वत बिना जग, जीवन, और विभाग सब कुछ सूना है!