वाराणसी, 18 जून 2025, बुधवार। वाराणसी के जिला अस्पताल में एक ऐसा एमआरआई सेंटर है, जो छह साल पहले बनकर तैयार तो हो गया, मगर आज तक मरीजों के लिए उसका दरवाजा नहीं खुला। 2019 में 96.81 लाख रुपये की लागत से बनी यह इमारत अब धूल और सीलन की चपेट में है। दीवारों पर फैली नमी और उखड़ता प्लास्टर सरकार के स्वास्थ्य सुविधाओं के बड़े-बड़े दावों पर सवाल उठा रहा है।
2018 में शुरू हुआ था सपना
12 जून 2018 को इस भवन की नींव रखी गई थी। उत्तर प्रदेश राज्य निर्माण एवं श्रम विकास सहकारी संघ लिमिटेड, लखनऊ ने महज नौ महीनों में 12 मार्च 2019 को इसे चमचमाता भवन बनाकर तैयार कर दिया। मकसद था कि मरीजों को एमआरआई जांच के लिए इधर-उधर न भटकना पड़े। लेकिन आज, छह साल बाद भी, इस भवन में न तो मशीन लगी और न ही कोई सुविधा शुरू हुई। ताले में बंद यह इमारत अब केवल मायूसी की कहानी बयां करती है।
मरीजों की जेब पर बोझ, लंबा इंतजार
सरकारी अस्पताल में एमआरआई की सुविधा न होने से मरीजों को निजी सेंटरों की शरण लेनी पड़ रही है, जहां 5,000 से 15,000 रुपये तक खर्च करने पड़ते हैं। खासकर गरीब और ग्रामीण मरीजों के लिए यह रकम किसी बड़े बोझ से कम नहीं। जिले में सिर्फ बीएचयू में ही एमआरआई की सुविधा उपलब्ध है, लेकिन वहां भी मरीजों को 20-25 दिन बाद की तारीख मिलती है। डॉक्टर की सलाह के बावजूद मरीजों को लंबा इंतजार और भारी खर्च झेलना पड़ रहा है।
यह बंद पड़ा एमआरआई सेंटर न सिर्फ सरकारी नाकामी की तस्वीर पेश करता है, बल्कि उन हजारों मरीजों की उम्मीदों पर भी धूल जमा रहा है, जो सस्ती और सुलभ स्वास्थ्य सुविधाओं के इंतजार में हैं।