वाराणसी, 6 नवंबर 2024, बुधवार। लोक आस्था के महापर्व छठ व्रत की शुरुआत हो चुकी है। बनारस में इसका जोश और उल्लास देखने को मिल रहा है। नहाय खाय के साथ शुरू हुए इस पर्व में व्रती महिलाएं अपने परिवार के साथ घाटों पर पहुंचकर सूर्य देव की पूजा करेंगी और अर्घ्य देंगी। यह पर्व न केवल धार्मिक महत्व का है, बल्कि यह सामाजिक एकता और सांस्कृतिक विरासत का भी प्रतीक है। खरना की परंपरा का निर्वहन करने के बाद, व्रती महिलाएं गुड़ की खीर और पूरी का प्रसाद ग्रहण की। तो दूसरी ओर, घाटों, कुंड और नदियों के किनारे लोगों ने वेदियां बनाकर उन्हें रिजर्व करना शुरू कर दिया है। शास्त्री घाट समेत कई जगहों पर वेदियों पर वीआईपी कल्चर देखने को मिल रहा है। लोग अपने नाम और पद के साथ बेदी बना रहे हैं।
वाराणसी में छठ पर्व का जश्न बिहार की तर्ज पर ही मनाया जाता है, जहां गंगा घाट पर लाखों की भीड़ जमा होती है। इस पर्व की भव्यता के पीछे एक बड़ा कारण है बनारस की नजदीकी बिहार से, जिसके कारण यहां बिहार के लोगों की बड़ी संख्या में बस्ती है। गंगा घाट पर छठ के दौरान लोकगीतों की धुनें गूंथती हैं, जो इस पर्व की असल भावना को दर्शाती हैं। लेकिन इस बीच, वेदियों पर वीआईपी कल्चर को लेकर कुछ लोगों ने सवाल उठाए हैं, जो इस पर्व की सच्ची भावना को कम कर देता है।
छठ पूजा के दौरान वेदियों पर नाम और पद लिखने की परंपरा काफी पुरानी है, जिसका मकसद भीड़ से बचने और अपनी जगह को रिजर्व करना है। लेकिन इस परंपरा को लेकर लोगों की राय अलग-अलग है। कुछ लोग मानते हैं कि यह कवायद पूजा-पाठ में व्यवधान से बचने के लिए जरूरी है, जबकि अन्य लोग इसे पूजा-पाठ जैसे पवित्र कार्य के लिए अनुचित मानते हैं। उनका कहना है कि पूजा की जगह पर नाम और पद लिखना इस पवित्र कार्य की गरिमा को कम कर देता है।
इस मुद्दे पर चर्चा करते हुए, एक विचार यह भी आता है कि क्या यह परंपरा वास्तव में पूजा-पाठ की भावना को बढ़ावा देती है या फिर यह सिर्फ एक सामाजिक प्रदर्शन बन कर रह गई है?