मऊ, 27 मार्च 2025, गुरुवार। उत्तर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री अरविंद कुमार शर्मा के लिए उनका गृह जनपद मऊ हाल ही में एक अनोखे और शर्मनाक वाकये का गवाह बना। एक जनसभा में भाषण देते वक्त अचानक बिजली गुल हो गई। मंच पर खड़े मंत्री महोदय को न सिर्फ अंधेरे का सामना करना पड़ा, बल्कि मोबाइल की टॉर्च लाइट की रोशनी में अपना जूता तक पहनना पड़ा। यह घटना न केवल हास्यास्पद थी, बल्कि राज्य की बिजली व्यवस्था पर भी एक करारा तमाचा साबित हुई।
अंधेरे में डूबी जनसभा
मामला तब का है जब ऊर्जा मंत्री मऊ में एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उनके शब्दों का जादू अभी हवा में तैर ही रहा था कि बिजली ने दगा दे दिया। मंच से लेकर सभास्थल तक अंधेरा छा गया। अफसरों में हड़कंप मच गया, कोई इधर भागा, कोई उधर दौड़ा, लेकिन बिजली की वापसी का कोई अता-पता नहीं। कुछ देर इंतजार के बाद जब हालात नहीं सुधरे, तो मजबूरी में मोबाइल की फ्लैशलाइट जलाई गई। इसी रोशनी में मंत्री ने न सिर्फ अपना भाषण पूरा किया, बल्कि उनका सम्मान भी किया गया। लेकिन असली नजारा तो तब देखने को मिला जब मंच से उतरते वक्त उन्हें टॉर्च की रोशनी में अपने जूते पहनने पड़े। यह दृश्य न सिर्फ मौजूद लोगों के लिए चर्चा का विषय बन गया, बल्कि सोशल मीडिया पर भी खूब वायरल हुआ।
अफसरों पर गिरी गाज
मंत्री के मऊ से रवाना होते ही प्रशासन हरकत में आया। बिजली कटौती के लिए जिम्मेदार जूनियर इंजीनियर (JE) और सब डिविजनल ऑफिसर (SDO) को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया। इसके साथ ही एग्जीक्यूटिव इंजीनियर और सुपरिंटेंडिंग इंजीनियर से जवाब तलब किया गया। यह कार्रवाई भले ही त्वरित थी, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या सिर्फ निचले स्तर के अधिकारियों को सजा देकर ऊर्जा विभाग अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो सकता है?
बिजली व्यवस्था पर सवाल
यह घटना कोई पहली मिसाल नहीं है। उत्तर प्रदेश में बिजली कटौती की समस्या लंबे समय से चली आ रही है। ग्रामीण इलाकों से लेकर शहरी क्षेत्रों तक, बिजली की अनियमित आपूर्ति लोगों के लिए रोजमर्रा की परेशानी बनी हुई है। ऐसे में जब राज्य के ऊर्जा मंत्री के कार्यक्रम में ही बिजली गायब हो जाए, तो यह साफ हो जाता है कि व्यवस्था में सुधार के दावे कितने खोखले हैं। खुद ऊर्जा मंत्री का यह कहना कि “बिजली कटौती को लेकर सख्ती बरती जाएगी” अब हास्य का विषय बन चुका है, क्योंकि उनके सामने ही यह सख्ती धरी की धरी रह गई।
हास्य और विडंबना का मेल
इस पूरे वाकये में हास्य और विडंबना का अनोखा संगम देखने को मिला। एक तरफ ऊर्जा मंत्री, जो बिजली विभाग के मुखिया हैं, मोबाइल की टॉर्च लाइट में जूता पहनने को मजबूर हुए, तो दूसरी तरफ अफसरों की लापरवाही ने पूरे सिस्टम की पोल खोल दी। सोशल मीडिया पर लोगों ने इस घटना को खूब ट्रोल किया। कोई इसे “ऊर्जा मंत्री का ऊर्जावान प्रदर्शन” कह रहा था, तो किसी ने लिखा, “जब टॉर्च ही बिजली का काम करे, तो अफसरों की क्या जरूरत?”
आगे की राह
यह घटना भले ही एक दिन की सुर्खी बनकर रह जाए, लेकिन यह राज्य की बिजली व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करती है। क्या सिर्फ अफसरों को सस्पेंड करने से समस्या का हल निकलेगा? या फिर इसके लिए बड़े स्तर पर सुधार की जरूरत है? ऊर्जा मंत्री को अपने गृह जनपद में यह शर्मिंदगी झेलनी पड़ी, लेकिन यह मौका है कि वे इसे एक सबक के तौर पर लें और बिजली व्यवस्था को दुरुस्त करने की दिशा में ठोस कदम उठाएं।
अंत में, यह कहानी हमें हंसने पर मजबूर तो करती है, लेकिन इसके पीछे छिपा सच कड़वा है। जब ऊर्जा मंत्री को टॉर्च की रोशनी में जूता पहनना पड़े, तो आम जनता की हालत का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं। अब देखना यह है कि क्या इस अंधेरे से उजाला निकलेगा, या यह बस एक और वायरल कहानी बनकर रह जाएगी।