नई दिल्ली, 17 जुलाई 2025: भारत के चुनावी इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ने जा रहा है। चुनाव आयोग ने मतदाता सूची को शुद्ध करने और अवैध विदेशी नागरिकों का पता लगाने के लिए विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लागू करने का फैसला किया है। बिहार से शुरू हुई यह पहल अब पूरे देश में लागू होगी, जो न केवल मतदाता सूची को पारदर्शी बनाएगी, बल्कि अवैध रूप से देश में रह रहे विदेशियों को चिह्नित करने में भी मील का पत्थर साबित होगी।
क्या है SIR और क्यों है जरूरी?
चुनाव आयोग का विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके तहत मतदाता सूची से फर्जी, मृत, या डबल वोटरों को हटाया जाएगा। साथ ही, यह उन अवैध विदेशी नागरिकों को भी उजागर करेगा, जो फर्जी दस्तावेजों के सहारे भारत की चुनावी प्रक्रिया को दूषित करने की कोशिश कर रहे हैं। बिहार में इसकी शुरुआत हो चुकी है, और अब इसे देश के हर राज्य में लागू करने की योजना है।
इस प्रक्रिया का मकसद न केवल मतदाता सूची को शुद्ध करना है, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी है कि केवल योग्य भारतीय नागरिक ही लोकतंत्र के इस महापर्व में हिस्सा लें। हालांकि, SIR का दायरा उन विदेशियों तक सीमित रहेगा, जो मतदाता सूची में शामिल होकर चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित कर रहे हैं। जो लोग फर्जी दस्तावेजों के बावजूद मतदान से दूर रहते हैं, वे इस प्रक्रिया से बाहर रह सकते हैं। फिर भी, इस पहल से अवैध विदेशियों का एक बड़ा हिस्सा जांच के दायरे में आएगा।
कानूनी आधार और प्रक्रिया
चुनाव आयोग को यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 326 से मिलता है, जो वयस्क मताधिकार के आधार पर निष्पक्ष और समान चुनाव की गारंटी देता है। इसके तहत 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र का कोई भी भारतीय नागरिक, जो किसी निर्वाचन क्षेत्र में निवासी हो, मतदाता के रूप में पंजीकरण करा सकता है। हालांकि, गैर-निवासी, मानसिक रूप से अस्थिर, या अपराधी गतिविधियों में लिप्त व्यक्तियों को मतदान का अधिकार नहीं मिलता।
इसके अलावा, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 21 भी आयोग को मतदाता सूची तैयार करने और संशोधन करने का अधिकार देती है। यह संशोधन जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में विशेष परिस्थितियों में किया जा सकता है। SIR के तहत नए वोटरों को जोड़ा जाएगा, जबकि फर्जी या मृत वोटरों को सूची से हटाया जाएगा।
2003 में भी हुआ था ऐसा प्रयोग
यह पहली बार नहीं है जब इस तरह की प्रक्रिया अपनाई जा रही है। बिहार में 2003 में भी गहन पुनरीक्षण किया गया था, जब लगभग 3 करोड़ मतदाताओं की सूची को 31 दिनों में शुद्ध किया गया। इस बार SIR में ‘विशेष’ शब्द जोड़ा गया है, और आधार, ईपीआईसी (वोटर आईडी), या राशन कार्ड को वैकल्पिक दस्तावेज के रूप में स्वीकार किया जा रहा है। सत्यापन के लिए निवास प्रमाण पत्र, जन्म प्रमाण पत्र, या वंशावली जैसे 11 दस्तावेजों में से कोई एक देना होगा।
चुनाव आयोग यह स्पष्ट करता है कि SIR का मकसद नागरिकता की जांच करना नहीं, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि मतदाता योग्य है या नहीं। अगर कोई अवैध विदेशी या विस्थापित व्यक्ति मतदाता सूची में शामिल होने की कोशिश करता है, तो वह इस प्रक्रिया में पकड़ा जाएगा।
वोटर लिस्ट में समस्याएं और समाधान
चुनाव आयोग के सूत्रों के मुताबिक, देशभर में मतदाता सूची में कई खामियां सामने आई हैं, जैसे डबल वोटर, मृत व्यक्तियों के नाम, और अवैध विदेशियों का पंजीकरण। SIR के जरिए इन सभी समस्याओं का समाधान किया जाएगा। अगर कोई वास्तविक मतदाता गलती से सूची से बाहर हो जाता है, तो उसे अपील का मौका मिलेगा। ड्राफ्ट वोटर लिस्ट के प्रकाशन के बाद आपत्तियां दर्ज की जा सकती हैं, और जांच के बाद योग्य मतदाताओं के नाम फिर से जोड़े जाएंगे।
कट-ऑफ डेट का महत्व
बिहार में SIR के लिए 1 जनवरी, 2003 को कट-ऑफ डेट माना गया है। इस तारीख तक मतदाता सूची में शामिल लोगों को बिना अतिरिक्त दस्तावेजों के भारतीय नागरिक माना जाएगा। लेकिन इसके बाद शामिल हुए या नए वोटरों को जन्म तिथि और जन्म स्थान से संबंधित दस्तावेज देने होंगे। अन्य राज्यों में भी इसी तरह की कट-ऑफ तारीखें तय की जाएंगी, जो वहां के पिछले गहन पुनरीक्षण के आधार पर होंगी।
विपक्ष की आशंकाएं और सुप्रीम कोर्ट की भूमिका
SIR को लागू करने का फैसला सभी राजनीतिक दलों के साथ चर्चा के बाद लिया गया था। फिर भी, विपक्षी दलों की कुछ आशंकाओं के चलते मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। 28 तारीख को होने वाली सुनवाई में हरी झंडी मिलते ही आयोग इस योजना को पूरे देश में लागू करने के लिए कदम उठाएगा।
लोकतंत्र को मजबूत करने की दिशा में कदम
चुनाव आयोग की यह पहल न केवल मतदाता सूची को पारदर्शी बनाएगी, बल्कि भारत के लोकतंत्र को और मजबूत करेगी। SIR के जरिए यह सुनिश्चित होगा कि केवल योग्य और वास्तविक मतदाता ही चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा बनें। साथ ही, अवैध विदेशियों पर नकेल कसने से देश की सुरक्षा और संप्रभुता को भी बल मिलेगा।
यह प्रक्रिया भले ही सभी अवैध विदेशियों को उजागर न कर पाए, लेकिन यह एक बड़ा कदम है, जो भारत के चुनावी तंत्र को और विश्वसनीय बनाएगा। अब सवाल यह है कि क्या यह पहल भारत के लोकतंत्र को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगी? इसका जवाब भविष्य के चुनावों में मिलेगा।