यहां से शुरू हुए आजादी के आंदोलन की शुरुआत और इसकी गतिविधियों का प्रचार प्रसार ग्रामीण क्षेत्रों सहित पूरे बंगाल में हो गया। इसके प्रभाव के कारण ही ब्रिटिश भारत की सरकार को 1905 के जुलाई में बंग-भंग का निर्णय वापस लेना पड़ा था। इसी वजह से क्रांतिकारियों ने 7 अगस्त 1906 को वंदे मातरम लिखा तिरंगा लहराकर आजादी का उद्घोष किया था। भले ही पूरे देश ने इसी उद्घोष को 41 साल बाद दोहराया लेकिन इसकी नींव बोस परिवार के इसी मकान में पड़ी थी।
शाखा लगाकर स्वयंसेवकों को दी जाती थी ट्रेनिंग
इसकी प्रमुख गतिविधियों में स्थान पर शाखाओं के माध्यम से नवयुवकों को एकत्र करना, उन्हें मानसिक व शारीरिक रूप से शक्तिशाली बनाना ताकि वे अंग्रेजों का डटकर मुकाबला कर सकें। सौम्या शंकर ने बताया कि इसकी याद में हर साल यहां ध्वज फहराया जाता है और लोग राष्ट्रभक्ति की शपथ लेते हैं।