वाराणसी, 27 जून 2025: डीएम सत्येंद्र कुमार के तेवर जज की नाराजगी के सामने ढीले पड़ गए। कलेक्ट्रेट परिसर में वाहनों की नो-एंट्री का सख्त आदेश महज 24 घंटे में ही पलट गया। अब केवल जज, डीएम, ट्रेजरी वैन, बंदियों के वाहन और जिला पंचायत अध्यक्ष को ही परिसर में गाड़ी ले जाने की इजाजत होगी। बाकी सभी अधिकारी और मैजिस्ट्रेट पैदल चलेंगे, जबकि दोपहिया वाहनों पर रोक बरकरार रहेगी।
सुरक्षा के नाम पर लिया गया था फैसला
23 नवंबर 2007 को वाराणसी कलेक्ट्रेट में हुए आतंकी बम विस्फोट की यादें आज भी प्रशासन के जेहन में ताजा हैं। उस हमले में 9 लोगों की जान गई थी और 50 से ज्यादा घायल हुए थे। इसी भयावहता को ध्यान में रखते हुए डीएम सत्येंद्र कुमार ने गुरुवार को कलेक्ट्रेट में चार पहिया वाहनों की एंट्री पर पूरी तरह रोक लगा दी थी। फैसले का मकसद था परिसर की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
जज की गाड़ी रोकी, मचा हड़कंप
शुक्रवार को कलेक्ट्रेट में उस वक्त हंगामा मच गया, जब सुरक्षाकर्मियों ने एक जज की गाड़ी को परिसर में प्रवेश से रोक दिया। नाराज जज ने मौके पर पहुंचे एडीएम सिटी को जमकर फटकार लगाई और तल्ख लहजे में पूछा, “प्रदेश में किसकी हिम्मत है जो मेरी गाड़ी रोक सके?” हालात बिगड़ते देख सुरक्षाकर्मियों ने जज की गाड़ी को भीतर जाने दिया। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसने प्रशासन में खलबली मचा दी।
जिला पंचायत अध्यक्ष को भी विशेष छूट
विवाद के कुछ ही देर बाद जिला पंचायत अध्यक्ष का काफिला कलेक्ट्रेट पहुंचा। बदले माहौल में उन्हें भी परिसर में एंट्री दे दी गई। बढ़ते दबाव और वीवीआईपी नाराजगी के बीच डीएम सत्येंद्र कुमार को अपना फैसला संशोधित करना पड़ा।
पार्किंग संकट ने बढ़ाई मुश्किल
कलेक्ट्रेट और कचहरी परिसर में पार्किंग की भारी कमी है। अंबेडकर पार्क, विकास भवन और कमिश्नरी रोड पर हर दिन हजारों वाहन सड़कों पर खड़े रहते हैं। नाकाफी पार्किंग स्टैंड यातायात और सुरक्षा व्यवस्था को प्रभावित कर रहे हैं।
इतिहास ने फिर दोहराया खुद को
2013 में तत्कालीन डीएम प्रांजल यादव ने अपनी गाड़ी नो-एंट्री जोन में खड़ी कर मिसाल कायम की थी। उनके प्रयास से कुछ समय के लिए व्यवस्था सुधरी, लेकिन तबादले के बाद पुराना ढर्रा लौट आया। इस बार D.M सत्येंद्र कुमार की सख्ती भी वीवीआईपी दबाव के आगे टिक न सकी। क्या यह नया आदेश कलेक्ट्रेट की सुरक्षा और व्यवस्था को दुरुस्त कर पाएगा, या फिर यह भी कागजी फरमान बनकर रह जाएगा? यह सवाल हर काशीवासी के जेहन में है।