15.1 C
Delhi
Thursday, November 21, 2024

फूलों की रंगोली और दीपदान संग मनी वृंदावन की विधवा माताओं की दीपावली!

हाथों में दिये, मन में उल्लास… समाज ने ठुकराया, गैरों ने अपनाया…
मथुरा, 31 अक्टूबर 2024, गुरुवार। यमुना नदी के केशी घाट पर कई विधवा महिलाओं ने दीये जलाए और दिवाली मनाई। वृंदावन में दिवाली के अवसर पर विधवा महिलाओं द्वारा त्योहार मनाना एक अद्वितीय और प्रेरक दृश्य है। यह घटना न केवल विधवा महिलाओं के लिए एक खुशी का अवसर प्रदान करती है, बल्कि यह समाज में उनके अधिकारों और सम्मान की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम है। यह दर्शाता है कि समाज में विधवा महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण बदलने की आवश्यकता है, और उन्हें भी समाज में सम्मान और अधिकार प्राप्त होने चाहिए। वृंदावन में विधवा महिलाओं के लिए दिवाली मनाने की यह परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है, और यह हर साल बड़े उत्साह और जोश के साथ मनाई जाती है। इस अवसर पर विधवा महिलाएं यमुना घाट पर इकट्ठा होकर दीये जलाती हैं, पूजा-अर्चना करती हैं, और अपने परिवार और समाज के लिए खुशियों और समृद्धि की कामना करती हैं।
कार्यक्रम में कई अन्य राज्यों से भी विधवा महिलाएं आई थी, उनमें छवि दासी जैसी महिलाएं, जो 70 साल की हैं और पश्चिम बंगाल से आई हैं, उनकी कहानी बहुत प्रेरक है। उन्हें अपने घरवालों द्वारा निकाल दिया गया था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और आज वे वृंदावन में दिवाली मना रही हैं। विधवा महिलाओं द्वारा सफेद साड़ी पहनकर रंगोलियां बनाना और दिवाली मनाना एक सुंदर और प्रेरक दृश्य है। छवि दासी के अलावा रतामी, पुष्पा अधिकारी और अशोका रानी जैसी महिलाओं की कहानियां भी बहुत प्रेरक हैं। उन्होंने अपने जीवन में कई कठिनाइयों का सामना किया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और आज वे वृंदावन में दिवाली मना रही हैं।
छवि दास की बात सुनकर लगता है कि दिवाली उनके लिए एक यादगार अवसर है, जो उन्हें उनके बचपन और शादी के बाद के दिनों की याद दिलाता है। रतामी की बात भी बहुत भावुक है, जिन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वो फिर कभी दोबारा दिवाली का त्योहार मना पाएंगी। पुष्पा अधिकारी और अशोका रानी की खुशी भी देखकर बहुत अच्छा लगता है। यह दर्शाता है कि जीवन में कठिनाइयों के बावजूद, खुशियों और उमंग की भावना कभी नहीं खोनी चाहिए। इन महिलाओं की कहानियां हमें यह याद दिलाती हैं कि जीवन में हर अवसर को खुशी से मनाना चाहिए और कभी हार नहीं माननी चाहिए।
इस समारोह को वृंदावन के एनजीओ सुलभ होप फाउंडेशन ने आयोजित किया था। एनजीओ की उपाध्यक्ष विनीता वर्मा ने कहा, हिंदू समाज में विधवा महिलाओं के साथ बहुत ही बुरा व्यवहार किया जाता था। उन्हें अशुभ माना जाता था और उनके परिवार से अलग करके उन्हें मजबूर किया जाता था कि वे अपना जीवन वृंदावन, वाराणसी या हरिद्वार में भीख मांगकर गुजारें। उन्होंने आगे कहा, यह एक बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति थी जिसमें विधवा महिलाएं अपने जीवन के अंतिम दिनों में भी संघर्ष करती थीं। लेकिन अब समय बदल गया है और लोगों की सोच भी बदल रही है। हमारा एनजीओ विधवा महिलाओं के अधिकारों के लिए काम कर रहा है और उन्हें समाज में सम्मान और अधिकार दिलाने के लिए प्रयास कर रहा है।
वृंदावन में विधवा महिलाओं के लिए दिवाली मनाने की परंपरा शुरू करने वाले बिंदेश्वर पाठक का यह कदम वास्तव में समाज में एक बड़ा बदलाव लाने वाला है। पिछले 12 साल से विधवा महिलाओं के साथ दिवाली मनाने से उन्हें समाज में सम्मान और अधिकार प्राप्त करने में मदद मिली है। वृंदावन में रहने वाली हजारों विधवा महिलाएं अब अपने जीवन में खुशियों का अनुभव कर पा रही हैं। एनजीओ की मदद से विधवा महिलाओं को सम्मिलित होने का मौका मिला है और वे अब अपने जीवन में खुशियों का अनुभव कर पा रही हैं। यह एक बहुत ही प्रेरक उदाहरण है कि कैसे समाज में बदलाव लाया जा सकता है और विधवा महिलाओं के अधिकारों की रक्षा की जा सकती है।

Advertisement

spot_img

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

2,300FansLike
9,694FollowersFollow
19,500SubscribersSubscribe

Advertisement Section

- Advertisement -spot_imgspot_imgspot_img

Latest Articles

Translate »