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Tuesday, April 29, 2025

काशी के जर्जर भवन: इतिहास की गोद में छिपा खतरा

वाराणसी, 20 अप्रैल 2025, रविवार। वाराणसी, जिसे काशी के नाम से जाना जाता है, न केवल आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का केंद्र है, बल्कि यह शहर अपने प्राचीन भवनों के लिए भी प्रसिद्ध है। लेकिन इनमें से कई भवन अब समय की मार झेलते हुए जर्जर हो चुके हैं। नगर निगम ने हाल ही में शहर के सात जोन में 489 ऐसे भवनों को चिह्नित किया है, जो न केवल पुराने हैं, बल्कि जनता के लिए खतरा भी बन चुके हैं। खासकर काशी विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र में 30 ऐसे भवन हैं, जिन्हें जर्जर घोषित किया गया है। इनमें काशीराज परिवार की संपत्तियां, बीएचयू के कुछ भवन, और यहाँ तक कि स्कूल, डाकघर और मंदिर जैसे महत्वपूर्ण स्थल भी शामिल हैं।

काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के आसपास का जोखिम

काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, जो देश-विदेश से लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है, के आसपास भी 13 भवन जर्जर अवस्था में हैं। एलो जोन में 17 भवनों को नगर निगम ने नोटिस जारी किया है, लेकिन छह महीने बीत जाने के बाद भी अधिकांश भवन स्वामियों ने कोई कार्रवाई नहीं की। नगर निगम अब मानसून से पहले इन भवनों के खिलाफ सख्त कदम उठाने की तैयारी में है। इन भवनों की स्थिति का आकलन करने के लिए बीएचयू की प्रयोगशाला में जांच होगी, जिसके आधार पर इन्हें तोड़ने का फैसला लिया जाएगा।

कोतवाली और दशाश्वमेध में सबसे ज्यादा खतरा

बनारस की तंग गलियों में बसे कोतवाली और दशाश्वमेध जोन जर्जर भवनों के मामले में सबसे आगे हैं। कोतवाली में 268 और दशाश्वमेध में 153 भवन जर्जर घोषित किए गए हैं। ये भवन 100 साल से भी अधिक पुराने हैं और इनकी दीवारें अब इतिहास की कहानियों के साथ-साथ खतरे की चेतावनी भी दे रही हैं। दूसरी ओर, सारनाथ जोन में सबसे कम 9 जर्जर भवन हैं, जबकि वरुणापार के सभी 12 भवन खतरनाक स्थिति में हैं।

ऐतिहासिक संपत्तियों पर भी संकट

रामनगर जोन में काशीराज परिवार से जुड़े कई भवन, जैसे तपोवन पुराना रामनगर का निबंधन कार्यालय, मोहताज खाना, डाकखाना और भारतीय शिशु मंदिर, जर्जर हो चुके हैं। ये भवन न केवल ऐतिहासिक महत्व रखते हैं, बल्कि इनका दैनिक उपयोग भी होता है, जिससे इनके जर्जर होने का खतरा और भी गंभीर हो जाता है।

बीएचयू की जांच: आखिरी मौका

नगर निगम ने भवन स्वामियों को एक मौका दिया है। अगर कोई मालिक यह मानता है कि उसका भवन जर्जर नहीं है, तो वह बीएचयू की आईआईटी प्रयोगशाला में जांच करा सकता है। इसके लिए निर्धारित शुल्क देना होगा। अगर जांच रिपोर्ट नगर निगम के दावे से मेल खाती है, तो भवन को तोड़ा जाएगा। अन्यथा, नोटिस वापस ले ली जाएगी। नगर निगम के जनसंपर्क अधिकारी संदीप श्रीवास्तव का कहना है कि यह प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष होगी।

चुनौती और जिम्मेदारी

काशी जैसे शहर में, जहाँ हर गली और भवन इतिहास की कहानी कहता है, जर्जर भवनों को हटाना आसान नहीं है। ये भवन केवल ईंट-पत्थर के ढांचे नहीं, बल्कि संस्कृति और परंपरा के प्रतीक हैं। लेकिन जन सुरक्षा सर्वोपरि है। नगर निगम का यह कदम शहर को सुरक्षित बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है। अब सवाल यह है कि क्या काशी अपने ऐतिहासिक वैभव को बचाते हुए आधुनिक सुरक्षा मानकों को अपना पाएगी? यह एक ऐसी चुनौती है, जिसमें प्रशासन और नागरिकों को मिलकर काम करना होगा।

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