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Friday, November 22, 2024

क्या अमेरिका से निकली इसकी चिंगारी मालदीव, कतर कुवैत ईरान आखिर क्यों खड़ा हुआ यह बखेड़ा

भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नुपुर शर्मा के बयान पर उठी रोष की चिंगारी में मालदीव जैसे पड़ोसी और विश्वसनीय देशों ने भी खुद को शामिल कर लिया है। मालदीव के साथ-साथ कतर, कुवैत, ईरान, सउदी अरब, जॉर्डन समेत 13 देशों ने भारतीय राजनयिकों से अपनी नाराजगी व्यक्त की है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठ रहे इस तूफान से विदेश मंत्रालय के अधिकारी भी हैरत में हैं। हालांकि विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कूटनीति और विदेश नीति में पिरोया जवाब दे दिया है, लेकिन पूर्व राजनयिकों, नौकरशाहों और भाजपा के नेताओं को भी इसके दूरगामी परिणामों की चिंता सताने लगी है।

भाजपा के ही कुछ नेता इसे यूक्रेन-रूस टकराव में भारत का रूस के पक्ष में खड़े होना मान रहे हैं। उनका कहना है कि अमेरिका को यह बात नागवार गुजरी और यही वजह है कि कुछ दिन पहले अमेरिका ने भारत में धार्मिक स्वतंत्रता पर तंज कसते हुए बयान दिया था।

क्या अमेरिका के इशारे पर इस्लामिक देशों ने दिखाई आंख?

आरएसएस से जुड़े रवींद्र जायसवाल को इसके पीछे अमेरिका दिखाई दे रहा है। जायसवाल का कहना है कि कुछ दिन पहले ही भारत में धार्मिक आजादी को लेकर अमेरिका ने सवाल उठाया था। यह अमेरिका का साथ देने वाले यूएई, कुवैत, कतर जैसे देशों के लिए एक इशारा था। जायसवाल इसके लिए भारतीय राजनयिक द्वारा नुपुर शर्मा के बयान को ‘शरारती तत्व’ के बयान की संज्ञा देने को भी सही नहीं ठहराते। भाजपा के उत्तर प्रदेश से पूर्व विधायक प्रभाशंकर पांडे को भी लग रहा है कि पार्टी को इस मामले में आगे बहुत सोच-समझकर आगे बढ़ना चाहिए।

इस्लामिक देशों की नाराजगी से कैसे निपटेगा भारत?

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के वक्तव्य के बाद भी पैंगबर मोहम्मद साहब के संदर्भ में भाजपा नेताओं द्वारा दिए बयान के प्रति नाराजगी कम होने का नाम नहीं ले रही है। इस नाराजगी को कम करने के भारत के राजनयिक अपने स्तर से विशेष प्रयास कर रहे हैं। विदेश मामलों के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार रंजीत कुमार का कहना है कि इस मामले में विदेश मंत्री या फिर प्रधानमंत्री को हस्तक्षेप करना पड़ सकता है। मुद्दा गंभीर होता जा रहा है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भरोसा देने के लिए भारत को पहल करनी पड़ सकती है। पूर्व राजनयिक एसके शर्मा कहते हैं कि भारत को धार्मिक स्वतंत्रता और ईश निंदा की संवेदनशीलता को समझकर आगे आना ही होगा। एसके शर्मा कहते हैं कि ऐसा नहीं कि भरोसा देने के बाद सब ठीक हो जाएगा। सरकार को इसे आगे भी ध्यान में रखना होगा।

दूसरी तरफ सोशल मीडिया पर इसे लेकर अभी भी घमासान की स्थिति है। यूएई में रह रहे दीपक डालाकोटी ने बताया कि भारतीय सामानों के बहिष्कार का संदेश तेजी से प्रसारित हो रहा है। दीपक बताते हैं कि यूएई, कतर, कुवैत समेत तमाम देशों में तमाम भारतीय रहते हैं। भारतीय रेस्टोरेंट हैं और बड़े पैमाने पर भारत से सामानों का आयात किया जाता है। यदि इसी तरह से सोशल मीडिया पर यह संदेश ट्रेंड करता रहा तो परेशानी खड़ी हो सकती है। अमित अनुराग पेशे से यूएई की कंपनियों और पोर्टफोलियो में इनवेस्ट कराते हैं। 15 दिन पहले दुबई से भारत आए हैं। अमित अनुराग को भी यह ताजा घटनाक्रम अनुकूल नहीं लग रहा है।

क्या समान नागरिक कानून का मसौदा अटकेगा?

कानून मंत्री किरण रिजिजू को देश में समान नागरिक कानून को लाया जाना उपयुक्त लगता है। भारत सरकार के कुछ और मंत्री अंदरखाने चर्चा में इसकी वकालत करते हैं। विधि एवं न्याय मंत्रालय के एक एडिशनल सेक्रेटरी भी दो सप्ताह पहले इस तरह के कानून के पक्ष में थे। लेकिन नुपुर शर्मा के टीवी डिबेट में बयान सामने आने और उठे बवंडर के बाद उन्हें इस कानून के मसौदे को लेकर कोई निर्णय ठंडे बस्ते में जाता दिखाई दे रहा है। हालांकि रंजीत कुमार कहते हैं कि सरकार पॉलिटिकल इकोनॉमी में व्यस्त है। यह 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी हो रही है। उत्तर प्रदेश के पूर्व विधायक प्रभाशंकर पांडे का कहना है कि मुझे लग रहा है कि लोगों को ईश निंदा, सांप्रदायिक बंटवारा और तनाव, टकराव बढ़ाने वाले मुद्दों पर संवेदनशीलता बरतनी पड़ेगी। पांडे कहते हैं कि यह इससे पहले भी बरती जानी चाहिए थी। हालांकि भाजपा के ही कुछ नेताओं का कहना है कि यह मुद्दा ठीक से नहीं लिया गया। विदेश सेवा के अधिकारियों ने विदेशी दबाव में शरारती तत्व जैसे शब्द का इस्तेमाल करके सब गड़बड़ कर दिया। प्रयागराज से ज्ञानेश्वर शुक्ला बताते हैं कि भाजपा की पूर्व प्रवक्ता के खिलाफ पार्टी की कार्यवाही को लेकर पार्टी के कार्यकर्ताओं में भी भारी रोष है।

क्या भाजपा के लिए आगे कुआं, पीछे खाई वाली स्थिति है?

भाजपा के कार्यकर्ता जहां नुपुर शर्मा और नवीन जिंदल पर कार्रवाई से नाराज हैं, वहीं दिखावे भर की कार्रवाई से अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी संतुष्ट होने वाला नहीं है। ऐसे में पार्टी और सरकार दोनों के लिए आगे कुआं और पीछे खाई जैसी स्थिति पैदा हो रही है। पार्टी के एक पूर्व केंद्रीय मंत्री का कहना है कि यह इतनी बड़ी बात नहीं थी, जितनी बना दी गई। सूत्र का मानना है कि विवाद खड़ा होने के बाद इस पर गंभीरता से ध्यान देने की जरुरत थी। विदेश मामलों में रूचि रखने वाले भाजपा के एक नेता का कहना है कि धर्म निरपेक्षता की आड़ में एक वर्ग 2014 से ही भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी की सरकार को सांप्रदायिक बताने पर तुला है। वह कहते हैं कि चाहे तीन तलाक का मुद्दा हो या या सीएए, एनआरसी का देश के राजनीतिक दलों ने भी भारत सरकार को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

क्या है राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया?

कांग्रेस प्रवक्ता जयवीर शेरगिल ने धार्मिक सहिष्णुता पर आईना दिखाने वाले देशों को ताकीद किया है। उन्होंने कहा कि भारत को धार्मिक सहिष्णुता के मामले में किसी से भी सीख लेने या उनका व्याख्यान सुनने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन जयवीर शेरगिल ने इसी के साथ भाजपा को भी आगाह किया। उन्होंने कहा कि क्षुद्र राजनीतिक फायदे के लिए भाजपा को भी देश की धर्म निरपेक्ष पहचान से खिलवाड़ नहीं करना चाहिए। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम ने पहले कहा कि नुपुर शर्मा और नवीन जिंदल इस्लामोफोबिया के मूल निर्माता नहीं हैं। याद रखें, वह राजा के प्रति अधिक ईमानदार होने की कोशिश कर रहे थे। चिदंबरम ने दोनों प्रवक्ताओं पर पार्टी की कार्रवाई को भी अंतरराष्ट्रीय दबाव में की गई कार्रवाई बताया। भाजपा के महासचिव अरूण सिंह ने कहा कि पार्टी सभी धर्मों का आदर करती है और किसी भी धार्मिक व्यक्तित्व के खिलाफ टिप्पणी की कड़े शब्दों में निंदा करती है। इसी क्रम में पार्टी ने अपने प्रवक्ताओं और टीवी पैनलिस्ट के लिए नई गाइड लाइन जारी की है।

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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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