नई दिल्ली, 23 मार्च 2025, रविवार। संघ के वरिष्ठ प्रचारक और विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) की केंद्रीय प्रबंध समिति के सम्मानित सदस्य धर्म नारायण शर्मा का 21 मार्च की रात 8:40 बजे नई दिल्ली स्थित संकट मोचन आश्रम में हृदय रोग की लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। 85 वर्षीय धर्म नारायण ने अपने जीवन के हर क्षण को भारतीय संस्कृति, धर्म और समाज के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया। उनका जाना हिन्दू संगठनों और समाज के लिए एक अपूरणीय क्षति है।
जीवन का प्रेरक सफर
20 जून 1940 को राजस्थान के उदयपुर में जन्मे धर्म नारायण शर्मा ने मात्र 19 वर्ष की उम्र में 1959 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रचारक के रूप में अपने जीवन की शुरुआत की। उनके जीवन का हर पड़ाव सेवा और समर्पण की मिसाल बन गया। जयपुर और भीलवाड़ा में जिला प्रचारक, अजमेर और जोधपुर में विभाग प्रचारक, फिर 1984 से 1994 तक महाकोशल प्रांत के प्रांत प्रचारक के रूप में उन्होंने संगठन को मजबूती दी। इसके बाद 1995 से 2000 तक विश्व हिन्दू परिषद में पूर्वांचल के अंचल संगठन मंत्री और 2000 से दिल्ली में विहिप के केंद्रीय मंत्री के रूप में उन्होंने हिन्दू समाज के लिए अथक कार्य किया। तीन वर्ष तक एकल अभियान से जुड़े रहने के बाद वे 2024 तक विहिप के धर्म प्रसार आयाम के केंद्रीय सह प्रमुख के रूप में सक्रिय रहे।
हिन्दू समाज के लिए अमूल्य योगदान
धर्म नारायण शर्मा केवल एक संगठनकर्ता ही नहीं, बल्कि एक प्रभावी वक्ता और विद्वान लेखक भी थे। विहिप के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल ने बताया कि उन्होंने वर्तमान हिन्दू समाज की जरूरतों को समझते हुए “हिंदू आचार संहिता” का प्रारूप तैयार किया, जो आज भी समाज के लिए एक मार्गदर्शक दस्तावेज है। भारतीय धर्म, संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान, नारी सशक्तिकरण और युवा जागरण जैसे गहन विषयों पर उनकी डेढ़ दर्जन से अधिक पुस्तकें और सैकड़ों लेख उनकी बौद्धिक गहराई और समाज के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं।
अंतिम विदाई
धर्म नारायण शर्मा का अंतिम संस्कार 22 मार्च को सायं 4 बजे दिल्ली के निगमबोध घाट पर पूरे सम्मान के साथ संपन्न हुआ। इससे पहले उनका पार्थिव शरीर विहिप के केंद्रीय कार्यालय, संकट मोचन आश्रम में अंतिम दर्शनों के लिए रखा गया, जहां सैकड़ों लोग अपने इस प्रिय नेता को श्रद्धांजलि देने पहुंचे।
एक युग का अंत, प्रेरणा का स्रोत
धर्म नारायण शर्मा का जीवन एक ऐसी मशाल की तरह था, जिसने न केवल अपने प्रकाश से समाज को रोशन किया, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक प्रेरणा का मार्ग प्रशस्त किया। उनके विचार, लेखन और कार्य हिन्दू समाज को एकजुट करने और उसकी गौरवशाली परंपराओं को आगे बढ़ाने में हमेशा जीवित रहेंगे। उनका निधन भले ही एक शारीरिक अवसान हो, लेकिन उनकी आत्मा और उनका संदेश भारतीय संस्कृति के संरक्षण और उत्थान के लिए हमेशा प्रेरणा देता रहेगा।