हर्षिल (उत्तराखंड), 6 अगस्त 2025: उत्तराखंड के धराली गांव में खीरगंगा से आए सैलाब ने भारी तबाही मचाई है। इस प्राकृतिक आपदा में 5 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 100 से अधिक लोग अभी भी लापता हैं। सेना, ITBP, NDRF, SDRF और दमकल विभाग की टीमें दिन-रात राहत कार्यों में जुटी हैं और अब तक 130 लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा चुका है। इस त्रासदी ने न केवल घरों, होटलों और दुकानों को तबाह किया, बल्कि एक ऐतिहासिक शिव मंदिर को भी मलबे में दफन कर दिया। यह मंदिर है कल्प केदार, जिसकी कहानी सदियों पुरानी है और स्थानीय मान्यताओं के अनुसार पांडवों से भी इसका गहरा नाता है।
1945 में खुदाई से निकला था प्राचीन मंदिर
स्थानीय लोगों के अनुसार, कल्प केदार मंदिर का वास्तुशिल्प केदारनाथ धाम से मिलता-जुलता है, जिसके चलते इसे यह नाम दिया गया। माना जाता है कि यह मंदिर प्राचीन काल में किसी आपदा के कारण जमीन में दब गया था। साल 1945 में खीरगंगा के किनारे मंदिर के शिखर जैसी संरचना दिखने पर स्थानीय लोगों ने खुदाई शुरू की। कई फुट मिट्टी हटाने के बाद यह भव्य शिव मंदिर सामने आया। मंदिर का गर्भगृह धरातल से काफी नीचे है, जहां शिवलिंग स्थापित है। लोगों का कहना है कि गर्भगृह में अक्सर खीरगंगा का पानी भर जाता था, जिसके लिए मंदिर तक पहुंचने का रास्ता बनाया गया था। लेकिन इस बार की त्रासदी ने इस रास्ते को फिर से मलबे में दफन कर दिया।
पांडवों और आदि शंकराचार्य से जोड़ा जाता है इतिहास
कल्प केदार मंदिर की स्थापना को लेकर कई मान्यताएं हैं। कुछ लोग इसे महाभारत काल से जोड़ते हैं और दावा करते हैं कि पांडवों ने केदारनाथ यात्रा के दौरान यहां शिवलिंग की स्थापना की थी। वहीं, कुछ का मानना है कि इस मंदिर का निर्माण आदि शंकराचार्य ने करवाया था। मंदिर का वास्तुशिल्प कत्यूर शैली का है, जिसमें पत्थरों पर बारीक नक्काशी और नंदी की पीठ जैसे शिवलिंग की आकृति इसे केदारनाथ से जोड़ती है। हालांकि, इन दावों की ऐतिहासिक पुष्टि नहीं हो सकी है।
1816 में अंग्रेज यात्री ने किया था जिक्र
धराली के प्राचीन मंदिरों का उल्लेख 1816 में अंग्रेज यात्री जेम्स विलियम फ्रेजर ने अपने यात्रा वृत्तांत में किया था। फ्रेजर ने गंगा-भागीरथी के उद्गम की खोज के दौरान इन मंदिरों में विश्राम करने की बात लिखी थी। इसके अलावा, 1869 में अंग्रेज फोटोग्राफर सैमुअल ब्राउन ने धराली के तीन प्राचीन मंदिरों की तस्वीरें खींची थीं, जो आज भी पुरातत्व विभाग के पास सुरक्षित हैं।
दोबारा मलबे में दफन हुआ मंदिर
स्थानीय लोग बताते हैं कि खीरगंगा ने पहले भी इस मंदिर को अपनी चपेट में लिया था। 1945 में खुदाई के बाद मंदिर में पूजा-अर्चना शुरू हुई थी, लेकिन यह फिर से प्रकृति की मार झेल रहा है। मंदिर का गर्भगृह और आसपास का क्षेत्र अब मलबे से पट चुका है। राहत कार्यों में जुटी टीमें मलबे को हटाने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन मंदिर को दोबारा उजागर करना एक बड़ी चुनौती है।
इस त्रासदी ने न केवल धराली के लोगों की जिंदगी को प्रभावित किया है, बल्कि एक ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहर को भी नुकसान पहुंचाया है। प्रशासन और राहत टीमें प्रभावित क्षेत्र में युद्धस्तर पर काम कर रही हैं, ताकि लापता लोगों को ढूंढा जा सके और इस प्राचीन मंदिर को फिर से प्रकट किया जा सके।