नई दिल्ली, 5 फरवरी 2025, बुधवार। दिल्ली में बांग्लादेशी घुसपैठियों की बढ़ती संख्या ने स्थानीय लोगों के लिए रोजगार और संसाधनों की कमी पैदा कर दी है। एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, ये घुसपैठिए दिल्ली के कई इलाकों में बस गए हैं और स्थानीय लोगों की नौकरियों पर कब्जा कर रहे हैं। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में बताया गया है कि बांग्लादेशी घुसपैठियों की बढ़ती संख्या ने दिल्ली की जनसांख्यिकी को बदल दिया है। रिपोर्ट के अनुसार, 1951 में दिल्ली की जनसंख्या में हिन्दू 84% थे, जो 2011 तक घटकर 81% हो गए। लेकिन इसी बीच मुस्लिम आबादी 5.7% से बढ़कर 12.8% के आसपास पहुंच गई।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि बांग्लादेशी घुसपैठियों को कुछ मजहबी समूहों और राजनीतिक लोगों से समर्थन मिल रहा है। यह समर्थन उन्हें दिल्ली में बसने और स्थानीय लोगों की नौकरियों पर कब्जा करने में मदद कर रहा है। रिपोर्ट में बताया गया है कि अधिकांश बांग्लादेशी घुसपैठिए ‘फैमिली फर्स्ट’ नीति अपनाते हैं। पहले परिवार का एक आदमी दिल्ली के भीतर आकर बस जाता है, पैसा कमाता है और रहने की जगह ढूँढता है। इसके बाद वह एक-एक कर पर परिजनों को भी बांग्लादेश से लाना शुरू कर देता है।
रिपोर्ट बताती है कि यह घुसपैठिए पहले कुछ दिन सीमाई राज्यों में रुकते हैं और फिर दिल्ली की तरफ बढ़ते हैं। बीते कुछ दिनों में अवैध महिलाओं की संख्या भी बढ़ी है। दिल्ली आने वाले 43% से अधिक घुसपैठिए पश्चिम बंगाल में रुकते हैं। रिपोर्ट ने कहा गया, दिल्ली में घुसपैठियों को सहायता देने और छत, भोजन, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, कानूनी सहायता और यहाँ तक कि बैंकिंग तक पहुँच जैसी सेवाएँ देने बिना रजिस्टर किए गए NGO और मजहबी समूह महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कानूनी रूप से इनका दायरा साफ़ नहीं है। ये लोग अवैध प्रवासियों को रोजगार पाने और स्थानीय समुदायों में मिलने-घुलने में मदद करते हैं, कभी-कभी यह सरकारी नियम भी दरकिनार करते हैं।
रिपोर्ट बताती है, NGO द्वारा दी जाने वाली सहायता के अलावा, स्थानीय कई राजनीतिक हस्तियों की भी इसमें महत्वपूर्ण भागीदारी होती है। यह अक्सर राजनीतिक वफ़ादारी के बदले में अवैध प्रवासियों को सहायता देते हैं। ये राजनीतिक हस्तियाँ इन्हें घर ढूँढने के लिए फर्जी कागज तक दे सकती हैं। चुनावों के दौरान इन घुसपैठियों की कमज़ोर स्थिति का फ़ायदा उठाया जा सकता है। रिपोर्ट से यह भी सामने आया है कि यह घुसपैठिए स्थानीय लोगों का रोजगार छीन रहे हैं। इनमें से अधिकांश अकुशल क्षेत्रों में लगे हुए हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि यह घुसपैठिए दिल्ली में कम पैसों पर भी काम करने को राजी हैं। यह दिल्ली के भीतर निर्माण, घरेलू काम, सफाई और रेहड़ी जैसे कामों में जुड़े हैं। इससे दिल्ली के भीतर बेरोजगारी भी बढ़ रही है। यह लोग अपराध और गैर कानूनी धंधों में भी जुड़े हैं। यह दिल्ली की ब्लैक इकॉनमी को बढ़ावा दे रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 80% बांग्लादेशी वापस घर पैसा भेजते हैं। रिपोर्ट बताती है कि यह घुसपैठिए सिर्फ भारत में कमा कर अपना ही काम नहीं चला रहे बल्कि पैसा बांग्लादेश भी भेज रहे हैं। रिपोर्ट ने पाया है कि भारत में रहने वाले 80% बांग्लादेशी घुसपैठिए वापस अपने घर यहाँ कमाया हुआ पैसा भेजते हैं।
लगभग 50% बांग्लादेशियों ने भारत में खाते भी खुलवा लिए हैं। 20% बांग्लादेशी घुसपैठिए जमीन भी खरीद चुके हैं, जो चिंता की बात है। रिपोर्ट में बताया गया है कि दिल्ली में इस काम से अर्थव्यवस्था पर फर्क पड़ रहा है। दिल्ली में लगातार आ रहे बांग्लादेशी घुसपैठियों के चलते यहाँ की जनसांख्यिकी बिगड़ गई है। रिपोर्ट के अनुसार, 1951 में दिल्ली की जनसंख्या में हिन्दू 84% थे जो 2011 तक घट कर 81% हो गए। लेकिन इसी बीच मुस्लिम आबादी 5.7% से बढ़ कर 12.8 के आसपास पहुँच गई। इसका अर्थ है कि बाकी कारणों के सहित अवैध घुसपैठियों से दिल्ली में मुस्लिम दोगुने हो गए। रिपोर्ट में बताया गया है कि दिल्ली में रहने वाले 75% अवैध बांग्लादेशी घुसपैठिए स्वास्थ्य सुविधाओं का भी लाभ उठा रहे हैं, इसके चलते स्थानीय लोगों को इलाज नहीं मिलता।
रिपोर्ट इनके अपराध और जाली कागजों में जुड़े होने को लेकर भी चिंता जताती है। रिपोर्ट में कहा गया है, दिल्ली में घुसपैठियों से निपटने में एक महत्वपूर्ण चुनौती फर्जी पहचान दस्तावेजों का उपयोग है। यह अक्सर नकली आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड बनवाते हैं जिससे उन्हें शहर की सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था में शामिल होने का मौका मिलता है। यह कई मौकों पर पहचान चुराते भी हैं। रिपोर्ट कहती है कि इनसे देश के लोकतंत्र पर भी प्रभाव पड़ रहा है। रिपोर्ट कहती है, इन नकली दस्तावेजों की उपलब्धता भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के बारे में चिंताएँ बढ़ती हैं। अगर गैर नागरिक छोटे तौर पर भी चुनाव में हिस्सा लेते हैं तो यह संभावना एक बड़ा मुद्दा है, इसके चलते प्रवासियों के विरुद्ध कड़ी जाँच की भी बात उठती है।