नई दिल्ली, 19 मई 2025, सोमवार। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ नकदी बरामदगी मामले में FIR दर्ज करने की मांग वाली याचिका पर एक नया मोड़ लाते हुए 21 मई को सुनवाई की तारीख तय की है। यह मामला न केवल न्यायिक हलकों में, बल्कि आम जनता के बीच भी चर्चा का विषय बन गया है।
सुप्रीम कोर्ट की त्वरित प्रतिक्रिया
19 मई को मुख्य न्यायाधीश (CJI) भूषण रामकृष्ण गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने वकील मैथ्यूज नेदुम्परा की याचिका पर विचार किया। नेदुम्परा ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ तत्काल FIR दर्ज करने की मांग की, जिस पर कोर्ट ने सहमति जताई कि यदि याचिका में कोई औपचारिक खामियां दूर कर दी जाएं, तो इसे बुधवार (21 मई) को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाएगा। नेदुम्परा ने कोर्ट को बताया कि वे मंगलवार को उपलब्ध नहीं होंगे, जिसके बाद बेंच ने सुनवाई की तारीख तय की।
जस्टिस वर्मा पर क्या हैं आरोप?
यह मामला तब सुर्खियों में आया जब एक आंतरिक जांच समिति ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ नकदी बरामदगी से जुड़े आरोपों को प्रथम दृष्टया सही पाया। इसके बाद तत्कालीन CJI संजीव खन्ना ने जस्टिस वर्मा को इस्तीफा देने की सलाह दी थी। हालांकि, जस्टिस वर्मा ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया। इसके बाद CJI ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मामले की गंभीरता को रेखांकित किया।
याचिकाकर्ताओं का दावा
नेदुम्परा और तीन अन्य याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में मांग की है कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ तत्काल आपराधिक कार्रवाई शुरू की जाए। उनका तर्क है कि आंतरिक जांच से केवल अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है, लेकिन यह कानून के तहत आपराधिक जांच का विकल्प नहीं है। याचिकाकर्ताओं ने पहले मार्च में भी इसी तरह की याचिका दायर की थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने आंतरिक जांच के लंबित होने के कारण खारिज कर दिया था। अब जांच पूरी होने के बाद, याचिकाकर्ताओं का कहना है कि आपराधिक कार्रवाई में देरी अब जायज नहीं है।
क्यों है यह मामला अहम?
यह मामला न केवल न्यायपालिका की पारदर्शिता और जवाबदेही पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि उच्च पदों पर बैठे व्यक्तियों के खिलाफ आरोपों की जांच कितनी जटिल हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट का इस मामले में त्वरित सुनवाई का फैसला इसकी गंभीरता को दर्शाता है।
आगे क्या?
21 मई की सुनवाई में याचिकाकर्ताओं को अपनी दलीलें मजबूती से पेश करनी होंगी। यदि सुप्रीम कोर्ट FIR दर्ज करने का आदेश देता है, तो यह न्यायपालिका में एक ऐतिहासिक कदम हो सकता है। दूसरी ओर, जस्टिस वर्मा के पक्ष को भी सुनने का मौका मिलेगा, जिससे इस मामले में नए तथ्य सामने आ सकते हैं।
यह मामला निश्चित रूप से आने वाले दिनों में और सुर्खियां बटोरेगा। क्या सुप्रीम कोर्ट इस याचिका को स्वीकार करेगा, या फिर कोई नया मोड़ आएगा? इसका जवाब 21 मई को मिलेगा।