नई दिल्ली, 17 अगस्त 2025: दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक अहम टिप्पणी में कहा है कि केवल महिला के रोने से दहेज उत्पीड़न का मामला साबित नहीं होता। न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा ने यह फैसला एक महिला की याचिका को खारिज करते हुए सुनाया, जिसमें उसने अपने पति और ससुराल वालों को दहेज उत्पीड़न और क्रूरता के आरोपों से बरी करने के निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी थी।
मामला दिसंबर 2010 में हुई एक शादी से जुड़ा है। अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया था कि महिला का उसके पति और ससुराल वालों ने दहेज के लिए उत्पीड़न किया। महिला के परिवार का दावा था कि उन्होंने शादी में करीब चार लाख रुपये खर्च किए थे, लेकिन पति और ससुराल वालों ने मोटरसाइकिल, नकदी और सोने के कंगन की मांग की। महिला की 31 मार्च 2014 को मौत हो गई थी, जिसके बाद उसके परिवार ने दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया।
हाई कोर्ट ने मृतका की बहन के बयान का जिक्र किया, जिसमें उसने कहा था कि होली के मौके पर फोन पर बातचीत के दौरान उसकी बहन रो रही थी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल रोने का तथ्य दहेज उत्पीड़न का आधार नहीं बन सकता। इसके साथ ही, पोस्टमार्टम रिपोर्ट के हवाले से कोर्ट ने कहा कि महिला की मौत निमोनिया से हुई थी, न कि क्रूरता या दहेज उत्पीड़न के कारण।
निचली अदालत ने पहले ही अभियुक्तों को बरी कर दिया था, जिसे हाई कोर्ट ने सही ठहराया। यह फैसला दहेज उत्पीड़न के मामलों में ठोस सबूतों की जरूरत पर जोर देता है।