N/A
Total Visitor
35.8 C
Delhi
Friday, June 27, 2025

दिल्ली हाई कोर्ट का बड़ा फैसला: धारा 377 के तहत वैवाहिक बलात्कार को मान्यता नहीं

नई दिल्ली, 22 मई 2025, गुरुवार। दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में एक ऐसे मामले में अहम फैसला सुनाया, जो वैवाहिक रिश्तों और कानूनी दायरे में यौन संबंधों की परिभाषा को लेकर चर्चा का विषय बन गया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में नहीं मानती, खासकर तब जब सहमति का सवाल स्पष्ट न हो। इस फैसले ने न केवल कानूनी बहस को हवा दी है, बल्कि सामाजिक और नैतिक सवालों को भी उजागर किया है।

मामले की पृष्ठभूमि

मामला एक पति-पत्नी के बीच यौन संबंधों को लेकर था, जहां पत्नी ने अपने पति पर “अप्राकृतिक” यौन संबंध (मुख्य रूप से ओरल सेक्स) का आरोप लगाया था। निचली अदालत ने पति के खिलाफ धारा 377 के तहत मुकदमा चलाने का आदेश दिया था, जिसके खिलाफ पति ने हाई कोर्ट में अपील की। जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा की बेंच ने 13 मई को इस मामले में सुनवाई करते हुए निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया।

कोर्ट का तर्क था कि धारा 377, जो “अप्राकृतिक अपराधों” को दंडित करती है, वैवाहिक रिश्तों में तब तक लागू नहीं हो सकती, जब तक कि सहमति की कमी स्पष्ट रूप से साबित न हो। इस केस में पत्नी ने यह नहीं कहा कि यौन संबंध उसकी इच्छा के खिलाफ या बिना सहमति के हुए थे।

कोर्ट का तर्क: सहमति और कानूनी दायरा

जस्टिस शर्मा ने अपने फैसले में 2018 के ऐतिहासिक नवतेज सिंह जौहर मामले का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को आंशिक रूप से असंवैधानिक करार देते हुए दो वयस्कों के बीच सहमति से हुए यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था। दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि इस केस में सहमति का मुद्दा गायब है, और बिना इसकी स्पष्टता के धारा 377 के तहत कार्रवाई नहीं की जा सकती।
कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि ओरल सेक्स जैसे कृत्य अब आईपीसी की धारा 375(ए) के तहत बलात्कार की परिभाषा में आते हैं। हालांकि, धारा 375 में वैवाहिक बलात्कार को अपवाद के रूप में छूट दी गई है, जिसके तहत पति को कुछ कानूनी संरक्षण मिलता है। कोर्ट ने माना कि इस मामले में पति को इस अपवाद का लाभ मिलना चाहिए।

पत्नी के दावों में विरोधाभास

कोर्ट ने पत्नी के आरोपों पर गहरा संदेह जताया। पत्नी ने एक तरफ पति पर “नपुंसक” होने का इल्जाम लगाया, तो दूसरी तरफ उन पर अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने का आरोप लगाया। इसके अलावा, उसने पति और ससुर पर पैसे ऐंठने और अवैध संबंधों की साजिश रचने जैसे गंभीर आरोप भी लगाए। कोर्ट ने इन दावों में “विरोधाभास” देखा और कहा कि ये आरोप विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हैं।

पति ने अपनी दलील में कहा कि उनका विवाह कानूनी रूप से वैध था और वैवाहिक रिश्ते में यौन गतिविधियों के लिए सहमति का अनुमान लिया जाता है। कोर्ट ने इस तर्क को स्वीकार करते हुए कहा कि बिना सहमति की कमी के सबूत के, धारा 377 के तहत कार्रवाई नहीं हो सकती।

कानून और समाज के बीच बहस

यह फैसला एक बार फिर वैवाहिक बलात्कार के मुद्दे को सुर्खियों में लाता है। भारत में वैवाहिक बलात्कार को अभी तक पूर्ण रूप से अपराध घोषित नहीं किया गया है, जो कई सामाजिक कार्यकर्ताओं और कानूनी विशेषज्ञों के लिए चिंता का विषय है। दिल्ली हाई कोर्ट का यह फैसला कानून की वर्तमान स्थिति को दर्शाता है, लेकिन साथ ही यह सवाल भी उठाता है कि क्या सहमति और वैवाहिक रिश्तों की कानूनी परिभाषा को और स्पष्ट करने की जरूरत है।

Advertisement

spot_img

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

2,300FansLike
9,694FollowersFollow
19,500SubscribersSubscribe

Advertisement Section

- Advertisement -spot_imgspot_imgspot_img

Latest Articles

Translate »