नई दिल्ली, 23 अप्रैल 2025, बुधवार। दिल्ली की एक अदालत में 21 अप्रैल 2025 को एक ऐसी घटना घटी, जिसने न केवल न्यायिक व्यवस्था को हिलाकर रख दिया, बल्कि समाज में महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए। द्वारका कोर्ट में चेक बाउंस (धारा 138, NI Act) के एक मामले में सुनवाई के दौरान, दोषी ठहराए गए आरोपी और उसके वकील ने न्यायिक मजिस्ट्रेट शिवांगी मंगलहड़ को न केवल खुलेआम धमकाया, बल्कि उनके खिलाफ अपमानजनक भाषा और अभद्र व्यवहार का इस्तेमाल किया। इस घटना ने देश भर में आक्रोश की लहर पैदा कर दी है, और लोग सवाल उठा रहे हैं कि जब एक महिला जज ही सुरक्षित नहीं, तो आम महिला की क्या स्थिति होगी?
कोर्ट में बेकाबू हुआ आरोपी
मामला चेक बाउंस से जुड़ा था, जिसमें जज शिवांगी मंगलहड़ ने आरोपी को दोषी ठहराते हुए सजा सुनाई। फैसला सुनते ही आरोपी का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। उसने कोर्टरूम में ही चिल्लाते हुए जज को अपमानित करने की कोशिश की और कहा, “तू है क्या चीज़?” इतना ही नहीं, उसने धमकी भरे लहजे में कहा, “बाहर मिल, देखता हूं कैसे जिंदा घर जाती है!” आरोपी ने जज की मां के खिलाफ भी अशोभनीय टिप्पणी की और गुस्से में एक वस्तु उठाकर जज की ओर फेंकने की कोशिश की। यह सब उस कोर्टरूम में हुआ, जहां न्याय का पवित्र मंदिर माना जाता है।
वकील की शर्मनाक भूमिका
आरोपी का साथ देने में उसका वकील भी पीछे नहीं रहा। उसने न केवल अपने मुवक्किल के व्यवहार को रोकने की कोशिश नहीं की, बल्कि जज पर दबाव डालते हुए कहा कि वह किसी भी तरह फैसला आरोपी के पक्ष में करवाए। दोनों ने मिलकर जज को मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने की कोशिश की। इतना ही नहीं, उन्होंने जज को इस्तीफा देने के लिए दबाव डाला और धमकी दी कि अगर आरोपी को बरी नहीं किया गया, तो उनके खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई जाएगी। यह व्यवहार न केवल आपराधिक है, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया पर सीधा हमला है।
जज शिवांगी मंगलहड़ का साहस
इस पूरे वाकये के बीच, जज शिवांगी मंगलहड़ ने अद्भुत साहस और संयम का परिचय दिया। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि वे अन्याय के सामने नहीं झुकेंगी और न्याय की रक्षा के लिए हर संभव कदम उठाएंगी। उन्होंने कहा, “मैं न्याय के लिए खड़ी हूं और इसे हर कीमत पर बनाए रखूंगी।” जज ने यह भी घोषणा की कि वे इस मामले को राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) के समक्ष ले जाएंगी और आरोपी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग करेंगी। उनका यह रुख न केवल उनकी निष्ठा को दर्शाता है, बल्कि उन सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा है, जो अपने अधिकारों के लिए लड़ रही हैं।
कोर्ट और प्रशासन की त्वरित कार्रवाई
घटना के बाद कोर्ट ने तुरंत कार्रवाई शुरू की। आरोपी के वकील को शो-कॉज़ नोटिस जारी किया गया, जिसमें पूछा गया कि उनके खिलाफ हाई कोर्ट में आपराधिक अवमानना की कार्यवाही क्यों न शुरू की जाए। साथ ही, पुलिस ने आरोपी के खिलाफ मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। दिल्ली के मुख्यमंत्री कार्यालय और अन्य अधिकारियों से भी इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की जा रही है। सोशल मीडिया पर लोग इस घटना की कड़ी निंदा कर रहे हैं और मांग कर रहे हैं कि ऐसे अपराधियों को कठोर सजा दी जाए।
समाज के लिए खतरे की घंटी
यह घटना केवल एक जज के अपमान की कहानी नहीं है; यह उस समाज की सच्चाई को उजागर करती है, जहां अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हैं कि वे कोर्ट में बैठे जज को भी धमकाने से नहीं डरते। एक यूजर ने X पर लिखा, “जब महिला जज ही सुरक्षित नहीं, तो आम महिला की बात ही छोड़ दीजिए। ऐसे मनचले वकील और दोषी को उम्रकैद की सजा होनी चाहिए।” यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हमारी न्यायिक व्यवस्था और महिलाओं की सुरक्षा के लिए पर्याप्त कदम उठाए जा रहे हैं?
आगे की राह
जज शिवांगी मंगलहड़ की हिम्मत और दृढ़ता इस बात का सबूत है कि न्याय के रास्ते में आने वाली हर बाधा को पार किया जा सकता है। लेकिन यह जिम्मेदारी केवल उनकी नहीं, बल्कि पूरे समाज और प्रशासन की है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि कोर्टरूम जैसे पवित्र स्थान अपराधियों के डर का अड्डा न बनें। इस घटना के बाद सरकार और न्यायिक संस्थानों को मिलकर ऐसी नीतियां बनानी होंगी, जो जजों और महिलाओं की सुरक्षा को प्राथमिकता दें।
आरोपी और उसके वकील को कड़ी सजा देकर एक मिसाल कायम करने की जरूरत है, ताकि भविष्य में कोई भी न्याय के मंदिर में इस तरह का दुस्साहस न कर सके। जज शिवांगी मंगलहड़ के साहस को सलाम, और उम्मीद है कि इस मामले में न्याय की जीत होगी।
न्याय जीतेगा!