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Monday, August 11, 2025

Delhi: नई सरकार के बाद बदलेगी दिल्ली दंगा पीड़ितों की स्थिति और रुकेगा हिंदू पलायन!

अनिता चौधरी

दिल्ली दंगे के पांच साल हो गए है । इन पांच सालों में दिल्ली की स्थिति काफ़ी बदल गई है और दिल्ली जनसंख्या परिवर्तन की जबरदस्त चपेट में है। 23 फरवरी 2020 को उत्तर-पूर्वी दिल्ली में जाफराबाद से शुरू हुआ दंगा , मौजपुर , मुस्तफाबाद , यमुना विहार , सिलमपुर जैसे कई अन्य क्षेत्रों में फैला था। इस दंगे में कट्टरपंथी सोच ने अपनी सारी हदें पार कर दीं थीं। ये दंगा इस्लामिक कट्टरपंथ की साजिश का वो वीभत्स रूप था जिसमें 55 से अधिक जानें गईं और 200 से अधिक लोग घायल हुए थे और अब तक इस दंगे को लेकर 760 मामले दर्ज हो चुके हैं लेकिन इंसाफ का इंतज़ार अभी तक ख़त्म नहीं हुआ है।
उत्तर-पूर्वी दिल्ली में 23 फरवरी 2020 की रात से शुरू हुआ ये दंगा 25 फरवरी तक चला था, जिसमें टारगेट सिर्फ हिन्दू परिवार को किया गया था। स्पेशल सेल की चार्ज शीट में ये स्पष्ट उल्लेख था कि इस दंगे की सोच और साजिश बेहद गहरी और गंदी थी। कट्टरपंथियों की तैयारी इतनी गहरी थी कि उनकी नज़र आईबी की मूवमेंट पर भी थी। आईबी के अंकित और दिल्ली पुलिस के रतन लाल जैसे देश के जांबाज जवान इस दंगे की चपेट में शहीद हुए थे और उनकी लाशें नालों में मिली थी। शाहरुख पठान जैसा दंगाई पुलिस वालों पर बंदूक ताने खड़ा था और पीछे से शाहरुख खान पठान को प्रोटेक्शन देने के लिए इस्लामिक कट्टरपंथी भीड़ बुरका पहनकर पेट्रोल बम फेंक रही थी। ये एक रक्तपात, संपत्ति विनाश,और हिंसक घटनाओं की एक साजिश भरी सीरियल हिंसा थी, जिसमें कट्टरपंथी मुसलमानों द्वारा हिन्दुओं पर चुन चुन कर हमले किये जा रहे थे। उनकी संपत्तियों को टारगेट कर के नष्ट किया जा रहा था। ये पूरी तैयारी आप पार्षद ताहिर हुसैन के घर पर हुई थी और मस्जिदों से फ़रमान जारी हो रहा था। रातों रात हिंदू मकान और दुकान चिन्हित किए गए थे और ताहिर के घर से पेट्रोल बम और पत्थर फेंके जा रहे थे।
24 फरवरी 2020 को मौजपुर और जाफराबाद में खतरनाक खूनी खेल का नंगा नाच हुआ और फिर मुस्तफाबाद और यमुना विहार होते हुए उत्तर पूर्व दिल्ली के लगभग सभी क्षेत्रों में मौत का तांडव होने लगा।
उल्लेखनीय है कि 23 की रात से गायब हुए आईबी कर्मी अंकित शर्मा का शव चांद बाग़ के एक नाले में 26 फ़रवरी, 2020 को मिला और चार्ज़शीट के मुताबिक़ उनके शरीर में 51 गहरी चोटें और 400 घाव पाए गए। इस वीभत्स हत्या का उल्लेख खुद इस देश के गृहमंत्री अमित शाह ने 11 मार्च, 2020 को लोकसभा में की थी और इस घटना का ज़िक्र करते हुए तब उनकी भी जुबान लड़खड़ा गई थी। इस दंगों में ड्यूटी कर रहे हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल की भी हत्या कर दी गयी थी। यहाँ तक की दंगाई कट्टरपंथी पुरुषों के नीचे के हिस्से के कपड़े उतरवा कर उनके धर्म का पता कर रहे थे और फिर उनके खिलाफ हिंसात्मक बर्ताव कर रहे थे।
इस दंगे को लेकर दाखिल चार्जशीट में जो साक्ष्य और तथ्य दिए गए हैं उससे साफ है कि दिल्ली दंगों के पीछे एक गहरी साज़िश थी, जिसकी नींव दिसंबर में सीएए और एनआरसी के प्रदर्शनों के दौरान ही रख दी गई थी और इस साज़िश के तार शरजिल इमाम , उमर ख़ालिद से होता हुआ आप पार्षद ताहिर हुसैन तक जुड़ा था और इन्हे ही दिल्ली दंगों का मास्टरमाइंड माना जाता है। कई वीडियो में ताहिर हुसैन समेत कई आम आदमी पार्टी के नेताओं और अन्य मौलानाओं को दंगाइयों के साथ मिलकर हिंसा करते हुए देखा गया जिसे चार्जशीट में साक्ष्य के रूप में कोर्ट में पेश किया गया है।
25 फरवरी 2020 के बाद मरने वाले लोगों में हिन्दूओ की संख्या बढ़ गई थी। हेलमेट पहने और लाठी, पत्थर, तलवार या पिस्तौल लेकर दंगाई अल्लाह हु अकबर के नारों के साथ हिंदू इलाकों में घुस गए, जबकि पुलिस मूकदर्शक बन कर खड़ी रही। नष्ट की गई संपत्तियां ज्यादातर हिन्दुओं की थी और दंगों मे मुस्लिम दंगाइयों ने मस्जिदों को बेस के रूप मे इस्तेमाल किया। फरवरी के अंत तक, ज्यादातर हिन्दुओ ने इन इलाकों को छोड़ दिया और लगभग 10 हजार हिन्दुओ ने दिल्ली के बाहरी क्षेत्रों में स्थित राहत शिविर में शरण लेनी पड़ी।
इस दंगे के बाद बड़ी संख्या में इन क्षेत्रों से हिंदुओं का पलायन शुरू हुआ और इन पांच सालों में स्थिति ये बन गई कि मौजपुर के बजरंग मुहल्ले में अब शायद ही कोई हिन्दू घर बचा है। इस मुहल्ले में बजरंगबली का मंदिर तो है लेकिन उनकी पूजा करने के लिए पुजारी जी के अलावा अब कोई हिन्दू नहीं है।अब वहाँ पास ही एक मस्जिद बन गई है जहां से अज़ान की आवाज साफ सुनाई पड़ती है और इस आवाज के तले मंदिर के घंटे की आवाज कहीं न कहीं दबी हुई नजर आती है। जब आस पास के मुहल्लों के लोगों से बात हुई तो उन्होंने बताया कि कभी-कभी इस मंदिर में आकर ये लोग हनुमान चालीसा का पाठ जरूर कर जाते हैं। मगर आस-पास अब गंदगी इतनी हो गई है कि आना-जाना दूभर हो गया है। लोगों ने बताया कि अब इन इलाकों में बकरीद पर अब सड़कों पर ही जीव हत्या भी शुरू हो गई है। इसी क्षेत्र में कुछ आगे बढ़ने पर जाफराबाद मेट्रो से लगे एक मुहल्ला आया सिख मुहल्ला लेकिन अब यहाँ भी कोई सिख नहीं रहता है। गुरुद्वारा तो है मगर अंधकार में डूबा हुआ और ग्रंथी साहब भी गुरुद्वारे के ऊपर ही रहते है मगर अब बस सिर्फ अरदास के लिए ही आते हैं। विजय मुहल्ला में सिर्फ एक हिन्दू परिवार नजर आया। उनका कहना है कि इस जगह अब हिंदुओं के लिए रहना बेहद मुश्किल हो गया है। पुश्तैनी मकान है देखिए कब तक निभाते हैं। क्योंकि यहां जनसंख्या में परिवर्तन इतना ज्यादा हो चुका है कि अगर कोई हिन्दू यहाँ राहत है तो उसका सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार शुरू हो जाता है। इस बहिष्कार का दंश कुछ हद तक उनका परिवार भी झेल रहा है लेकिन जिस घर में बचपन बीता उसे छोड़ कर जाने का दिल नहीं होता है।
22 फरवरी को महिलाओं सहित 500 से 1000 प्रदर्शनकारियों ने जाफ़राबाद मेट्रो स्टेशन के पास नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के विरोध में धरना दिया। विरोध प्रदर्शन ने सीलमपुर – जाफराबाद – मौजपुर मार्ग के साथ-साथ मेट्रो स्टेशन में प्रवेश और निकास को अवरुद्ध कर दिया था और 23 फरवरी तक ये विरोध प्रदर्शन वीभत्स रूप धरण कर चुका था और 24 ,25, 26 फ़रवरी तक मौत का तांडव चलता रहा।
दिसंबर 2019 से सीएए को लेकर हुआ शुरू हुआ ये विरोध प्रदर्शन आम आदमी पार्टी के जीत का कारण बना और जीत के बाद ये विरोध हिंसात्मक हो गया और फिर दंगे का डरावना रूप धरण कर लिया। वैसे साल 2020 में ये भी एक विडंबना थी दंगे से ठीक पहले 8 फरवरी 2020 को दिल्ली विधानसभा का चुनाव हुआ था, जिसमें भाजपा को आम आदमी पार्टी ने जबरदस्त रूप से हराया था। आम आदमी पार्टी की इस जीत की सबसे बड़ी वजह बनी थी दिसंबर 2019 में लागू की गई नागरिकता संशोधन कानून और उसके विरोध में शुरू हुआ शाहीन बाग विरोध प्रदर्शन जो पूरे देश में फैल चुका था और दिल्ली की हालत चक्का जाम वाली थी। जेएनयू से लेकर सभी मुस्लिम बहुल क्षेत्र में सिर्फ धर्म के नाम पर विरोध प्रदर्शन चल रहा था और विपक्ष इस विरोध के पक्ष में खुल कर मैदान में था। दिल्ली की हर दिन की खबरें अब विदेशी अखबारों के पहले पन्ने की सुर्खियां बन गई थीं। आम जनमानस परेशान था और हिन्दू अपनी दबी जुबान में अपनी परेशानी किसी तरह बता पा रहे थे। उन्हे डर था कि कहीं इस खेल में सनातन बदनाम न हो जाए और देश की साख विश्व पटल पर बर्बाद न हो जाए।
लेकिन 2025 के विधानसभा चुनाव के बाद अब दिल्ली की राजनीतिक परिस्थिति बदल चुकी है। 2020 के दंगे के ठीक पांच साल बाद 2025 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की प्रचंड जीत हुई है और भाजपा ने उत्तर पूर्वी दिल्ली की एक दो सीटों को छोड़ दें तो लगभग सभी सीटों पर जीत हासिल की है। पूर्ण बहुमत के साथ भारतीय जनता पार्टी दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुई है। दिल्ली की जनता का वोट इस बार अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए था। ऐसे में घोषणा पत्र के बहुत सारे वादों और उम्मीदों के बीच दिल्ली की बीजेपी सरकार से उम्मीद राज्य की उस जनता को भी है जिन्होंने अपना बहुत कुछ खोया मगर घोषणा पत्र में उन्हें जगह नहीं मिली है। 2020 के कट्टरपंथी दंगे में उन्हे जान -माल का तो नुकसान हुआ ही है उससे कहीं बड़ा नुकसान उनके लिए अपनी जड़ और जमीन का खोना भी है। जिस घोसले को उनके पुरखों ने संवेदनाओं के धागों से सजाया था और रंग-रोगन किया था वो अब किसी और के नाम हो गया है और अब उनकी घरों के दीवारों का रंग ही नहीं बल्कि उस पर लगी तस्वीरें भी बदल चुकी हैं। उनके लिए इस सरकार से सबसे बड़ा सवाल वही है जो उनकी दिल से जुड़ी उम्मीद है कि क्या अपने घरों से पलायन कर चुके उन परिंदों को दोबारा अपना वो घोसला मिल पाएगा ?

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