नई दिल्ली, 19 मार्च 2025, बुधवार। उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले में 1981 में हुए देहुली नरसंहार मामले में अदालत ने मंगलवार को तीन दोषियों को मृत्युदंड सुनाया। इस हृदयविदारक घटना में 24 दलितों की निर्मम हत्या कर दी गई थी, जिनमें महिलाएं और मासूम बच्चे भी शामिल थे।
18 नवंबर 1981 को शाम करीब 4.30 बजे खाकी वर्दी पहने 17 डकैतों के एक गिरोह ने देहुली पर धावा बोल दिया। उन्होंने एक दलित परिवार को निशाना बनाया और 24 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी, जिनमें क्रमशः छह महीने और दो साल के बच्चे भी शामिल थे।
विशेष न्यायाधीश इंदिरा सिंह ने 12 मार्च को कप्तान सिंह (60), रामपाल (60) और राम सेवक (70) को दोषी ठहराया था। सरकारी वकील रोहित शुक्ला ने बताया कि अदालत ने न केवल तीनों को फांसी की सजा सुनाई, बल्कि उन पर 50,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया है।
इस मामले में एफआईआर दर्ज होने के बाद कुल 17 आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चला। इन पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास) और 396 (हत्या के साथ डकैती) के तहत आरोप लगाए गए थे। हालांकि, 42 साल के लंबे मुकदमे के दौरान 14 आरोपियों की मौत हो गई, जबकि एक आरोपी अब भी फरार है।
देहुली नरसंहार में चार दशक बाद आए इस फैसले से पीड़ित परिवारों को न्याय की उम्मीद जगी है। कोर्ट के इस आदेश को ऐतिहासिक माना जा रहा है, क्योंकि 42 साल बाद भी इंसाफ मिला।